फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ संबंधी याचिकाओं पर विचार से न्यायालय का इनकार, उच्च न्यायालय जाने की सलाह

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को विवादित फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ से संबंधित विभिन्न याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा. इनमें से एक याचिका जमीयत उलेमा-ए-ंहिंद की ओर से दायर की गई थी. इन याचिकाओं में आशंका जताई गई थी कि इस फिल्म के प्रदर्शन से समाज में नफरत और दुश्मनी पैदा हो सकती है.

यह फिल्म पांच मई को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. फिल्म केरल में हिंदू महिलाओं को इस्लाम में धर्मांतरित कर उन्हें आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) में शामिल किए जाने के आरोपों पर आधारित है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए याचिकाओं का उल्लेख किया गया. इसमें से एक में मांग की गयी है कि फिल्म में यह ‘डिस्क्लेमर’ होना चाहिए कि यह कल्पना पर आधारित है.

पीठ ने कहा कि हर मामले में अनुच्छेद 32 को आधार नहीं बनाया जा सकता है और उच्च न्यायालय के अनुभवी न्यायाधीश स्थानीय परिस्थितियों से वाकिफ हैं. इसने कहा, ‘‘अनुच्छेद 32 के तहत जो राहत मांगी गयी है उसे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष उचित कार्यवाही के लिए रखा जा सकता है.’’ संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों के रिट अधिकारों से संबंधित है. पीठ ने कहा कि फिल्म पांच मई को रिलीज होने वाली है, ऐसे में उच्च न्यायालय मामले को जल्द सूचीबद्ध करने पर विचार कर सकता है.

जमीयत उलेमा-ए-ंिहद ने अपनी याचिका में अनुरोध किया था कि यह फिल्म रिलीज करने की अनुमति नहीं देने का केंद्र और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को निर्देश दिया जाए. उसने याचिका में कहा था कि इस फिल्म से देश में ‘नफरत’ और ‘समाज के विभिन्न वर्गों के बीच कटुता’ पैदा होने की आशंका है.

सुनवाई के दौरान, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि फिल्म के खिलाफ केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की गयी है और यह पांच मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है और उसी दिन फिल्म पूरे भारत में रिलीज होगी. पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय में अनुभवी न्यायाधीश हैं. उन्हें स्थानीय हालात पता हैं. हम सुपर (अनुच्छेद) 226 अदालत क्यों बनें?’’ उसने याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय जाने को कहा. उसने कहा कि उच्च न्यायालय उनकी याचिकाओं के जल्द निस्तारण के अनुरोध पर विचार कर सकता है.

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