अदालत ने मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा

नयी दिल्ली/अलीगढ़/हाथरस. दिल्ली की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को आॅल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर द्वारा 2018 में एक ंिहदू देवता के बारे में किये गये एक ‘‘आपत्तिजनक ट्वीट’’ से संबंधित मामले में उनकी जमानत याचिका पर आदेश शुक्रवार के लिए सुरक्षित रख लिया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने आरोपी के साथ-साथ अभियोजन पक्ष के वकील की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया. एक मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले में दो जुलाई को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत (जेसी) में भेज दिया था.

अदालत ने पांच दिन की हिरासत में पूछताछ के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा था. आरोपी ने जमानत खारिज करने के मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती दी है. बृहस्पतिवार को बहस के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा कि मामले के केंद्र में तस्वीर के साथ, जुबैर ने लोगों को भड़काने के इरादे से ‘2014 से पहले’ और ‘2014 के बाद’ का इस्तेमाल किया था.

सत्र अदालत ने तब पूछा कि सरकार को छोड़कर 2014 में क्या बदला, और क्या यह ट्वीट सरकार की आलोचना थी. लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि आरोपी लोगों को भड़काना चाहते थे और उनमें द्वेष पैदा करना चाहते थे. अदालत ने अभियोजन पक्ष से पूछा कि क्या जांच एजेंसी ने उन लोगों के बयान एकत्र किए हैं जो आहत महसूस करते हैं. न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘कितने लोगों को बुरा लगा? आपने कितने बयान एकत्र किए हैं.’’ अभियोजक ने अदालत से कहा कि यह काम नियत समय में किया जाएगा.

जुबैर की ओर से पेश अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने अदालत को बताया कि आरोपी को व्यक्तिगत रूप से या उनकी कंपनी ‘प्रावदा मीडिया’ को कोई विदेशी चंदा नहीं मिला. अधिवक्ता ने कहा, ‘‘हमारी वेबसाइट पर कहा गया है कि हमें विदेशी योगदान नहीं मिलता है क्योंकि हम एफसीआरए प्रावधानों के तहत पंजीकृत नहीं हैं. मेरी वेबसाइट के अनुसार केवल भारतीय अकाउंट वाले भारतीय नागरिक ही योगदान कर सकते हैं. हम पैन नंबर, ई-मेल आईडी सहित दाता की सभी जानकारी मांगते हैं.’’ उन्होंने कहा कि ‘रेजर पे’ के सीईओ, जिसके माध्यम से कंपनी को पैसा मिला, ने अपनी गिरफ्तारी के बाद एक बयान दिया कि आॅल्ट न्यूज को केवल घरेलू भुगतान प्राप्त करने के लिए सक्षम किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, यह दावा कि प्रावदा मीडिया को कुछ मुस्लिम देशों से धन प्राप्त हुआ दुर्भाग्यपूर्ण है और ऐसा केवल मामले को संवेदनशील बनाने के लिए किया गया है.’’ उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में, ‘‘फर्जी समाचार लोगों को निर्णय लेने में मदद नहीं करने वाला है इसलिए कम पैसे वाले लोग भी मेरे काम में मदद कर रहे हैं.’’ अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी की कंपनी की वेबसाइट पर कहा गया है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही भुगतान करना चाहिए, लेकिन वे दूसरों से पैसा भी प्राप्त कर रहे हैं. अभियोजन पक्ष ने कहा, ‘‘कोई भुगतान कर रहा है और आप इसे स्वीकार कर रहे हैं … एफसीआरए के उल्लंघन में 56 लाख रुपये प्राप्त हुए हैं.’’ अभियोजक ने कहा, ‘‘इसमें जालसाजी भी की गई थी जिसकी हम जांच कर रहे हैं.’’

हाथरस की अदालत ने जुबैर को 27 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में भेजा

हाथरस की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को ‘आॅल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को 27 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया. जुबैर पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप हैं. यह जानकारी जुबैर के अधिवक्ता ने दी.
मोहम्मद जुबैर को बृहस्पतिवार दोपहर भारी सुरक्षा के बीच हाथरस के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट शिवकुमारी के सामने पेश किया गया. अदालत ने उसे इसी महीने 27 जुलाई को पेश करने का आदेश देने के साथ न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

जुबैर को हाथरस सदर कोतवाली थाने में दर्ज एक मामले के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा वारंट के तहत तिहाड़ जेल से हाथरस अदालत लाया गया था. दीपक शर्मा नामक एक दक्षिणपंथी कार्यकर्ता ने 14 जून, 2022 को आरोप लगाया कि चार साल पहले एक ट्विटर पोस्ट में उन्होंने हिंदू धार्मिक भावनाओं को आहत किया था. जुबैर के वकील उमंग रावत के मुताबिक मामला चार साल पुराना है, इसलिए यह गिरफ्तारी ‘दुर्भावनापूर्ण’ है और ‘राजनीतिक दबाव’ में यह कदम उठाया गया है.

जुबैर ने उच्चतम न्यायालय से उप्र में दर्ज छह प्राथमिकियां रद्द करने की अपील की

‘आॅल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपने खिलाफ दर्ज छह प्राथमिकियों को रद्द करने की अपील की. जुबैर ने नयी याचिका में सभी छह मामलों में अंतरिम जमानत देने की अपील भी की है. याचिका में इन छह मामलों की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विशेष जांच दल गठित किये जाने को भी चुनौती दी गई है.

याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में दर्ज जिन छह मामलों को जांच के लिए एसआईटी को सौंपा गया है, वह उस प्राथमिकी में शामिल विषय है, जिसकी जांच दिल्ली पुलिस का विशेष प्रकोष्ठ कर रहा है. अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, सौतिक बनर्जी, देविका तुलसियानी और मन्नत टिपणिस द्वारा तैयार और अधिवक्ता आकर्ष कामरा द्वारा दाखिल वैकल्पिक याचिका में छह प्राथमिकियों को दिल्ली में दर्ज प्राथमिकी के साथ मिलाने का भी अनुरोध किया गया है.

Related Articles

Back to top button