जम्मू-कश्मीर में चुनाव किसी भी समय हो सकते हैं, राज्य का दर्जा बहाल होने में कुछ समय लगेगा: केंद्र

नयी दिल्ली. केंद्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव ”अब किसी भी समय” हो सकते हैं क्योंकि मतदाता सूची पर अधिकांश काम पूरा हो चुका है, और इसके लिए विशिष्ट तारीखों का फैसला करना निर्वाचन आयोग पर निर्भर है.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि जम्मू और कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा “अस्थायी” है और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में “कुछ समय लगेगा”. मेहता ने पीठ को बताया कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव तीन स्तरों पर होंगे- पहला पंचायत चुनाव, दूसरा नगर निकाय चुनाव और फिर विधानसभा स्तर पर चुनाव होगा.

उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार अब से किसी भी समय चुनाव कराने के लिए तैयार है… यह भारत निर्वाचन आयोग और राज्य के चुनाव आयोग को निर्णय लेना है कि कौन सा चुनाव पहले होगा और कैसे होगा. मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और एक महीने में यह पूरी तरह संपन्न हो जाएगी.” राज्य का दर्जा बहाल किए जाने के मुद्दे पर मेहता ने कहा कि वह पहले ही एक बयान दे चुके हैं और इसके अलावा संसद के पटल पर गृह मंत्री अमित शाह का बयान था कि “जम्मू-कश्मीर में यूटी (केंद्रशासित प्रदेश) एक अस्थायी व्यवस्था है”.

मेहता ने कहा, “हम बेहद असाधारण स्थिति से निपट रहे हैं.” उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की सटीक समयसीमा फिलहाल नहीं दी जा सकती. इसमें कुछ समय लग सकता है. जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं.” मेहता ने कहा कि 2018 की तुलना में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में 45.2 प्रतिशत की कमी आई है और पूर्ववर्ती राज्य में सबसे बड़ी चिंताओं में से एक रही घुसपैठ में 90.2 प्रतिशत की कमी हो गई है.

अधिक आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “पत्थरबाजी और हड़ताल की घटनाएं जो 2018 में 1,767 थीं, अब शून्य हो गई हैं. सुरक्षार्किमयों के हताहत होने की घटनाओं में 60.9 प्रतिशत की कमी आई है, अलगाववादी समूहों द्वारा समन्वित संगठित बंद की घटनाएं 2018 में 52 थीं जो 2023 में शून्य हो गई हैं.” उन्होंने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं और लगभग 7,000 करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया गया है, जिसमें से 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश पहले ही किया जा चुका है.

मेहता ने कहा कि कई परियोजनाएं जारी हैं और 53 प्रधानमंत्री विकास परियोजनाओं में से 32 पूरी हो चुकी हैं. पीठ उनके द्वारा दिए गए आंकड़े दर्ज कर रही थी. मेहता ने कहा कि जहां तक लद्दाख का सवाल है, तो वहां लेह और करगिल दो क्षेत्र हैं. उन्होंने कहा कि लेह से संबंधित पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव संपन्न हो गए हैं, और करगिल के लिए चुनाव अगले महीने होगा.

जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अधिवक्ता सिब्बल ने पीठ द्वारा केंद्र सरकार के दिए गए आंकड़ों को रिकॉर्ड करने पर आपत्ति जताई और कहा कि इसे रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि यह अदालत के “दिमाग को प्रभावित करेगा” जो अनुच्छेद 370 के संवैधानिक मुद्दे की पड़ताल कर रही है. प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सिब्बल को आश्वासन दिया कि सॉलिसिटर जनरल ने जो भी डेटा दिया है, उसका पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किए जा रहे संवैधानिक मुद्दे पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

पीठ ने कहा, “उन्होंने जो दिया है वह अदालत के सवाल और चुनावी लोकतंत्र को बहाल करने के लिए भारत संघ द्वारा उठाए गए कदमों के अनुरूप है. हमें सॉलिसिटर जनरल के प्रति निष्पक्ष होना चाहिए क्योंकि उन्होंने केवल रोडमैप दिया है.” इसने कहा, “जिस विकास की प्रकृति के बारे में सरकार कहती है कि यह अगस्त 2019 के बाद हुआ, यह आपकी संवैधानिक चुनौती के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकता और इसलिए, वे संवैधानिक चुनौती पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, इससे स्वतंत्र रूप से निपटना होगा.”

सिब्बल ने कहा, ”वे कह रहे हैं कि हड़ताल शून्य हो गई हैं. पांच हजार लोगों को नजरबंद कर दिया गया. हड़ताल कैसे होंगी, जब आप उन्हें अस्पताल जाने तक की इजाजत नहीं देंगे. इस अदालत की कार्यवाही टेलीविजन पर प्रसारित की जाती है और ये आंकड़े एक राय बनाने में मदद कर सकते हैं.”

प्रधान न्यायाधीश ने सिब्बल से कहा, “ये ऐसे मामले हैं जहां नीतिगत मतभेद हो सकते हैं और होने भी चाहिए लेकिन यह संवैधानिक तर्कों को प्रभावित नहीं कर सकते.” केंद्र ने 29 अगस्त को शीर्ष अदालत से कहा था कि जम्मू-कश्मीर की केंद्रशासित प्रदेश की स्थिति “स्थायी” नहीं है और वह 31 अगस्त को अदालत में इस जटिल राजनीतिक मुद्दे पर एक विस्तृत बयान देगा. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सरकार से पूर्ववर्ती राज्य में चुनावी लोकतंत्र की बहाली के लिए एक विशिष्ट समयसीमा निर्धारित करने को कहा था.

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