बजट में सब्सिडी में कमी के जरिये राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को कम रख सकती है सरकार

नयी दिल्ली. चुनावी वर्ष से पहले सरकार के अगले वित्त वर्ष के लिये अंतिम पूर्ण बजट में पूंजीगत व्यय बढ़ाने की उम्मीद है. हालांकि, इसके बावजूद सब्सिडी में कमी और बजट का आकार बढ़ने से राजकोषीय घाटे का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के मुकाबले कम रखे जाने की संभावना है. आर्थिक विशेषज्ञों ने यह अनुमान जताया है.

उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में सब्सिडी करीब 3.56 लाख करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 6.4 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी गयी थी. कुल सब्सिडी में खाद्य सब्सिडी की हिस्सेदारी दो लाख करोड़ रुपये से अधिक है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को 2023-24 का बजट पेश करेंगी. यह इस सरकार का अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले आखिरी पूर्ण बजट है. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार पूंजीगत व्यय समेत सामाजिक कल्याण योजनाओं में खर्च बढ़ाएगी.
कृषि अर्थशास्त्री और लखनऊ स्थित गिरि विकास अध्ययन संस्थान (जीआईडीएस) के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सरकार ने कोविड संकट के दौरान गरीबों को राहत देने के लिये अप्रैल, 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की थी. इसके तहत हर महीने पांच किलो मुफ्त खाद्यान्न प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए), अंत्योदय अन्न योजना और प्राथमिकता वाले परिवारों को दिया जा रहा था. दिसंबर, 2022 तक जारी सभी सात चरणों में इस योजना पर सरकार का कुल व्यय करीब 3.91 लाख करोड़ रुपये रहा है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘ केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 की शुरुआत से एनएफएसए के तहत लाभार्थियों को मुफ्त राशन देने का निर्णय किया जबकि कोविड-19 को लेकर स्थिति बेहतर होने के साथ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएम-जीकेएवाई) 31 दिसंबर, 2022 से समाप्त कर दी गयी. अब जबकि पीएम-जीकेएवाई योजना समाप्त हो गयी है, इससे इस मद में खर्च होने वाली करीब 3.91 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी की बचत होगी. इससे सरकार के पास बजट में दूसरे मदों में खर्च के लिये अतिरिक्त राशि उपलब्ध होगी और राजकोषीय घाटा लक्ष्य कम रखे जाने का अनुमान है.’’

जाने-माने अर्थशास्त्री और वर्तमान में बेंगलुरु स्थित डॉ. बी आर अंबेडकर स्कूल आॅफ इकनॉमिक्स यूनिर्विसटी के कुलपति एन आर भानुमूर्ति ने भी कहा, ‘‘सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाकर और वर्तमान मूल्य पर जीडीपी में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि को देखते हुए अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य कम रहने की संभावना है.’’ कुमार ने कहा, ‘‘ योजना ने संकट के समय गरीबों, जरूरतमंदों और कमजोर परिवारों/लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की. लेकिन इसने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत लाभार्थियों को सामान्य रूप से वितरित किए जाने वाले मासिक खाद्यान्न की मात्रा को प्रभावी रूप से दोगुना कर दिया था.’’

उल्लेखनीय है कि जहां प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज दिया जा रहा था, वहीं एनएफएसए के तहत प्रति व्यक्ति तीन रुपये किलो चावल और दो रुपये किलो गेहूं की दर से पांच किलो अनाज (प्रति परिवार अधिकतम 35 किलो) दिया जा रहा था और यह अतिरिक्त था. अब एक जनवरी, 2023 से गरीबों को राशन की दुकानों के जरिये एनएफएसए के तहत जो दो रुपये गेहूं और तीन रुपये किलो चावल मिल रहा था, अब वह मुफ्त मिलेगा.’’

भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘अब जब कोविड संकट को लेकर स्थिति बेहतर हुई है, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को वापस लेना सही कदम है. इससे सब्सिडी में कमी आने की उम्मीद है.’’ एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘ पूंजीगत व्यय में वृद्धि का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर अच्छा रहा है. इसको देखते हुए अगले वित्त वर्ष के बजट में भी इसमें 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि का अनुमान है.’’ मौजूदा वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय का अनुमान 7,50,246 करोड़ रुपये रखा गया है.

रेंिटग एजेंसी इक्रा ने हाल में एक रिपोर्ट कहा है कि अगले साल चुनाव होने हैं. ऐसे में बजट में सरकार पूंजीगत व्यय 8.5 से नौ लाख करोड़ रुपये निर्धारित कर सकती है जो मौजूदा वित्त वर्ष में 7.5 लाख करोड़ रुपये है. वहीं दूसरी तरफ खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में कमी के जरिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.8 प्रतिशत रख सकती है.’’ एक सवाल के जवाब में कुमार ने कहा, ‘‘बजट में खाद्य समेत विभिन्न सब्सिडी की स्थिति के बारे में अनुमान जताना कठिन है. लेकिन इतना जरूर है कि खाद्य और उर्वरक समेत सभी सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक उर्वरक सब्सिडी का सवाल है, इस दिशा में सुधार की सख्त जरूरत है. आंकड़ों के अनुसार, फास्फोरस और पोटाश की तुलना में नाइट्रोजन को भारी सब्सिडी दी जाती है जिसके परिणामस्वरूप यूरिया (एन) का अत्यधिक उपयोग होता है और फास्फोरस (पी) और पोटाश (के) का बहुत कम उपयोग होता है. एन-पी-के उपयोग का उपयुक्त अनुपात 4:2:1 है, जबकि वर्तमान में पंजाब में यह अनुपात 31.4:8:1 है.’’

कुमार ने कहा, ‘‘उर्वरकों का सही अनुपात में उपयोग नहीं होने के कारण न केवल मृदा के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित होती है.’’ चालू वित्त वर्ष में उर्वरक सब्सिडी 1.05 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान है. सब्सिडी के विभिन्न मदों में खाद्य और उर्वरक के अलावा पेट्रोलियम सब्सिडी और अन्य सब्सिडी (विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिये ब्याज सब्सिडी,कृषि उपज के लिये कीमत समर्थन योजना को लेकर सब्सिडी आदि) शामिल हैं.

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