काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर सुनवाई टली

प्रयागराज. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समय की कमी के चलते काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर सुनवाई छह जुलाई तक के लिए शुक्रवार को टाल दी. वाराणसी के अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद द्वारा दायर की गयी याचिका पर संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने इस मामले में सुनवाई छह जुलाई तक के लिए टाल दी.

मंदिर पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने अपनी दलील में कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983, 28 जनवरी, 1983 से प्रभाव में है. उन्होंने इस अधिनियम की धारा चार की उप धारा नौ में उल्लिखित इस मंदिर की परिभाषा का जिक्र किया जिसके मुताबिक, मंदिर का अर्थ आदि विश्वेश्वर के मंदिर से है जिसे श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जाना जाता है. उनका कहना था कि यह वाराणसी नगर में स्थित है जिसका उपयोग लोक धार्मिक पूजा के स्थान के तौर पर किया जाता है. उन्होंने कहा कि यह ज्योतिर्लिंग के रूप में ंिहदुओं द्वारा पूजा जाता है.

रस्तोगी ने कहा कि इसकी परिभाषा में सभी अधिनस्थ मंदिर, धार्मिक स्थल, उप धार्मिक स्थल और अन्य सभी छवियां और देवी-देवता, मंडप, कुंए और अन्य आवश्यक ढांचे और भूमि का स्वामित्व शामिल है. उन्होंने कहा कि इस मंदिर के स्वामित्व का अधिकार श्री काशी विश्वनाथ में निहित है जिसका उल्लेख इस अधिनियम की धारा पांच में है. उन्होंने कहा कि इस मंदिर में स्थित ंिलग स्वयंभू है और इस ज्योतिर्लिंग का एक लंबा इतिहास रहा है जिसका उल्लेख पुराणों में भी है.

रस्तोगी ने कहा कि 1983 के अधिनियम को उच्चतम न्यायालय तक चुनौती दी गई और उच्चतम न्यायालय ने श्री आदि विश्वेश्वर एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में 1983 के अधिनियम की वैधता की पुष्टि की और कहा कि वाराणसी में गंगा नदी के तट पर भगवान शिव की प्रतिमा भारत में पांच ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे स्वयंभू माना जाता है.

उल्लेखनीय है कि मूल वाद वर्ष 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में दायर किया गया था, जिसमें वाराणसी में जहां ज्ञानवापी मस्जिद मौजूद है, वहां प्राचीन मंदिर बहाल करने की मांग की गई थी. वाराणसी की अदालत ने आठ अप्रैल, 2021 को पांच सदस्यीय समिति गठित कर सदियों पुरानी ज्ञानवापी मस्जिद का समग्र भौतिक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था.

याचिकाकर्ताओं ने आठ अप्रैल के इस आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में यह कहते हुए चुनौती दी कि वाराणसी की अदालत का यह आदेश अवैध और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का है. याचिका में कहा गया कि वाराणसी की अदालत में यह विवाद सुनवाई योग्य है या नहीं, यह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विचाराधीन है.

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