प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत के साथ मजबूत संबंधों के पैरोकार थे हेनरी किसिंजर

निक्सन और किसिंजर की जोड़ी के मुकाबले 1971 में बीस साबित हुए थे इंदिरा और पी एन हक्सर : रमेश

वाशिंगटन/नयी दिल्ली/सिडनी. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का बुधवार को निधन हो गया. वह 100 वर्ष के थे. उन्हें 1970 के दशक में भारतीय नेतृत्व के प्रति उनकी उपेक्षा और उदासीनता के लिए जाना जाता है. यहां तक कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए नस्लीय और असंसदीय शब्दों तक का इस्तेमाल किया था.

अक्टूबर 1974 में भारत की पहली यात्रा से लेकर मार्च 2012 में भारत की यात्रा के बीच उन्होंने वैश्विक मंच पर हिंदुस्तान के बढ़ते कद को पहचान लिया था और वह पिछले एक दशक से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अमेरिका और भारत के मजबूत संबंधों की वकालत कर रहे थे.

सत्तर के दशक की शुरुआत से अमेरिका-चीन संबंधों को आकार देने में अहम भूमिका निभाने वाले किसिंजर का बुधवार को कनेक्टिकट में उनके आवास पर निधन हो गया. उनकी परामर्श कंपनी ‘किसिंजर एसोसिएट्स’ ने यह जानकारी दी. हालांकि मृत्यु का कारण नहीं बताया. भारत के साथ उनके संबंध 1970 के दशक में तनावपूर्ण हो गए थे जब वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री के रूप में तत्कालीन अमेरिकी प्रशासन में थे. लेकिन चीन की ओर रुख करने से पहले उनकी पहली प्राथमिकता भारत को लेकर थी.

सितंबर 2020 में ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने व्हाइट हाउस टेप के गोपनीयता के दायरे से बाहर किए गए तत्कालीन नए भंडार पर आधारित एक लेख प्रकाशित किया जिसमें 1970 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसिंजर द्वारा अपनाए गए “पक्षपातपूर्ण रवैये के चौंकाने वाले सबूत” प्रदान किए गए थे.

टेप के अंश में बताया गया है कि निक्सन के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए किसिंजर ने कैसे उन्हें समझाया : “वे (भारतीय) बहुत मंझे हुए चापलूस हैं, राष्ट्रपति महोदय. ये चापलूसी में माहिर होते हैं. वे गूढ़ चापलूसी में माहिर होते हैं. इसी तरह वे 600 वर्षों तक जीवित रहे. वे जी हुजूरी करते हैं – उनकी सबसे बड़ी खूबी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों की खुशामद करना है.” सार्वजनिक किए गए टेपों के आधार पर निक्सन-किसिंजर जोड़ी के बीच इस तरह के आदान-प्रदान का विवरण देते हुए, राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर गैरी जे. बैस ने बताया कि इन टेपों की पूरी सामग्री से पता चलता है कि कैसे “निक्सन के नेतृत्व में अमेरिकी नीति दक्षिण एशिया और भारतीयों के प्रति उनकी नफरत से प्रभावित थी.”

बैस ने कहा, “दशकों से निक्सन और किसिंजर ने खुद को वास्तविक राजनीति के प्रतिभाशाली खिलाड़ी के रूप में चित्रित किया है, एक ऐसी विदेश नीति चलायी है जो निष्पक्ष रूप से अमेरिका के हितों की सेवा करती है. लेकिन ये सार्वजनिक किए गए व्हाइट हाउस टेप एक बिल्कुल अलग तस्वीर दिखाते हैं: उच्चतम स्तर पर नस्लवाद और स्त्री द्वेष, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा के हास्यास्पद दावों के पीछे दशकों तक छिपाया जाता रहा. निक्सन और किसिंजर के निष्पक्ष ऐतिहासिक मूल्यांकन की जब बात आती है तो इसमें पूर्ण सत्यता और स्पष्टता को शामिल किया जाना चाहिए.” वाशिंगटन में निक्सन, किसिंजर और राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ के बीच 5 नवंबर, 1971 को हुई बातचीत के सार्वजनिक टेप से पता चला कि निक्सन और किसिंजर दोनों ने बार-बार इंदिरा गांधी के लिये एक खास अपशब्द का इस्तेमाल किया.

मार्च 2012 में एक मीडिया कॉन्क्लेव में भारत में इस मुद्दे पर किसिंजर ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जिक्र करते हुए असंसदीय भाषा के अपने इस्तेमाल का बचाव करते हुए कहा, “मैं दबाव में था और मैंने आवेश में आकर ये टिप्पणियां कर दीं. लोगों ने उन टिप्पणियों को संदर्भ से बाहर करके देखा.” उस समय खबरों के मुताबिक, उन्होंने यह भी कहा कि उनके मन में इंदिरा गांधी के लिए बेहद सम्मान है. उससे पहले, उनकी पहली प्राथमिकता भारत था जैसा कि 1970 के दशक में ‘यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स’ को उनकी सलाह पर ‘यूएस इंडिया बिजनेस काउंसिल’ (यूएसआईबीसी) की स्थापना से स्पष्ट था.

तत्कालीन भारतीय नेतृत्व के साथ हालांकि बहुत अच्छे संबंध नहीं होने के बावजूद 1972 की शुरुआत में किसिंजर ने भारत और जापान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की वकालत की थी. सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अभिलेखीय राजनयिक वार्तालापों से इसका पता चलता है. एक अन्य ‘यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम’ (यूएसआईएसपीएफ) कार्यक्रम में बोलते हुए, उस समय 96 वर्ष के रहे किसिंजर ने कहा कि बांग्लादेश संकट ने दोनों देशों को “टकराव के मुहाने” पर धकेल दिया था.
अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अब गोपनीयता के दायरे से बाहर किए जा चुके कुछ दस्तावेजों के अनुसार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश के अलग देश बनने के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को किसिंजर ने बताया था कि उन्होंने “पश्चिम पाकिस्तान को बचा लिया.”

अक्टूबर 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया . इसके कुछ महीनों बाद किसिंजर ने इंदिरा गांधी से मुलाकात की और तत्कालीन राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड से कहा कि इंदिरा गांधी को मजबूरी में अमेरिका की आलोचना करनी पड़ी होगी. लेकिन उन्होंने साथ ही वाशिंगटन द्वारा भारत को “दुनिया में एक महत्वपूर्ण देश” के रूप में मान्यता देने के बाद “अधिक समान” आधार पर भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार की इच्छा व्यक्त की थी.

साल 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसिंजर भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत कर रहे थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनके साथ कुछ बैठकें की थीं. जब मोदी इस साल जून में आधिकारिक राजकीय यात्रा पर अमेरिका पहुंचे थे तो किसिंजर सेहत ठीक नहीं होने के बावजूद उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की संयुक्त मेजबानी में विदेश विभाग में आयोजित समारोह में मोदी का भाषण सुनने के लिए वाशिंगटन तक आए थे.

किसिंजर को तब विदेश विभाग के फॉगी बॉटम मुख्यालय में सातवीं मंजिल पर स्थित ऐतिहासिक बेंजामिन फ्रेंकलिन रूम तक व्हीलचेयर पर लाया गया. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने लिफ्ट में उनका अभिवादन किया. दोपहर के भोज पर आयोजित इस कार्यक्रम में बुजुर्ग अमेरिकी राजनेता ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को पूरे धैर्य के साथ सुना और उनसे बातचीत भी की. अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर किसिंजर का अत्यधिक प्रभाव माना जाता है.

उन्होंने जून 2018 में ‘यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम’ (यूएसआईएसपीएफ) के पहले स्थापना दिवस के मौके पर संस्थान से जुड़े जॉन चैंबर्स के साथ भारत को लेकर अपने रुख को सार्वजनिक किया. उनकी बातचीत में मीडिया आमंत्रित नहीं था, लेकिन वहां उपस्थित अन्य लोग याद करते हुए बताते हैं कि किस तरह किसिंजर ने पुरजोर तरीके से भारत-अमेरिका संबंधों की वकालत की थी.

किसिंजर ने जून 2018 में यूएसआईएसपीएफ के पहले वार्षिक नेतृत्व सम्मेलन में कहा था, ”जब मैं भारत के बारे में सोचता हूं तो मैं उनकी रणनीति की प्रशंसा करता हूं.” इस सम्मेलन में उनकी मौजूदगी बहुत महत्वपूर्ण थी. किसिंजर ने अमेरिका के दो राष्ट्रपतियों निक्सन और फोर्ड के कार्यकाल में अपनी सेवाएं दी थीं. वर्ष 1973 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

निक्सन और किसिंजर की जोड़ी के मुकाबले 1971 में बीस साबित हुए थे इंदिरा और पी एन हक्सर : रमेश

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर के निधन के बाद बृहस्पतिवार को कहा कि वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और किसिंजर ने भारत के लिए बड़ा सिरदर्द पैदा किया था, लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सहयोगी पी. एन. हक्सर दोनों के मुकाबले बीस साबित हुए.

पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, “हेनरी किसिंजर का निधन हो गया है. वह जितने विवादास्पद थे उतने ही महत्वपूर्ण भी थे. उनके लंबे और घटनाओं से पूर्ण जीवन में उनकी प्रशंसा भी की गई और निंदा भी की गई. लेकिन उनकी बौद्धिक प्रतिभा और अद्भुत करिश्मे के बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता.”

रमेश ने कहा, “पिछले तीन दशकों से उन्होंने खुद को भारत के एक महान मित्र और समर्थक के रूप में स्थापित किया और वास्तव में वह थे भी. लेकिन यह हमेशा ऐसा नहीं था, विशेष रूप से 1971 में, जब राष्ट्रपति निक्सन और किसिंजर ने भारत के लिए बड़ा सिरदर्द पैदा किया और सोचा कि उन्होंने हमें घेर लिया है, लेकिन इंदिरा गांधी और पी. एन. हक्सर उनके मुकाबले बीस साबित हुए.”

किसिंजर वर्ष 1971 में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे. उस समय हक्सर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव थे. उस वर्ष भारत के सहयोग से बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था. रमेश ने कहा, “मैंने अपनी पुस्तक ‘इंटरट्वाइंड लाइव्स: पीएन हक्सर एन्ड इंदिरा गांधी’ में किसिंजर-हक्सर और निक्सन-इंदिरा गांधी के आमने-सामने होने का विस्तार से वर्णन किया है.” उन्होंने कहा कि अमेरिकी लेखक गैरी बैस ने अपनी पुस्तक ‘द ब्लड टेलीग्राम: निक्सन, किसिंजर एंड ए फॉरगॉटन जेनोसाइड’ में 1971 के बांग्लादेश के निर्माण की घटनाओं में उनकी भूमिका के लिए किसिंजर को जिम्मेदार ठहराया है.

हेनरी किसिंजर : अमेरिकी विदेश नीति के नायक ने दुनिया को बदल दिया, चाहे अच्छा हो या बुरा

हेनरी किसिंजर अमेरिका की विदेश नीति की लड़ाई के अंतिम पुरोधा थे. पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री का एक शताब्दी तक जीवित रहने के बाद 29 नवंबर, 2023 को निधन हो गया. स्वतंत्र विश्व की भू-राजनीति पर उनके प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता. दूसरे विश्व युद्ध से लेकर, जब वह अमेरिकी सेना में सैनिक थे, शीत युद्ध की समाप्ति तक और यहां तक ??कि 21वीं सदी में भी, वैश्विक मामलों पर उनका महत्वपूर्ण, निरंतर प्रभाव रहा.

जर्मनी से अमेरिका तक और फिर वापस 1923 में जर्मनी में जन्मे, वह 15 साल की उम्र में शरणार्थी के रूप में अमेरिका आए. उन्होंने किशोरावस्था में अंग्रेजी सीखी और उनके लहजे में जर्मन पुट उनकी मृत्यु तक उनके साथ रहा. सेना में भर्ती होने और अपने देश जर्मनी में सेवा करने से पहले उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में जॉर्ज वाशिंगटन हाई स्कूल में पढ़ाई की. ख.ुफ.यिा कोर में काम करते हुए, उन्होंने गेस्टापो अधिकारियों की पहचान की और देश को नाज.यिों से मुक्त कराने के लिए काम किया. इसके लिए उन्हें कांस्य स्टार से दिया गया.

किसिंजर अमेरिका लौटे और विश्वविद्यालय के संकाय में शामिल होने से पहले हार्वर्ड में अध्ययन किया. उन्होंने उदारवादी रिपब्लिकन न्यूयॉर्क के गवर्नर नेल्सन रॉकफेलर – जो कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे – को सलाह दी और परमाणु हथियार रणनीति पर विश्व विशेषज्ञ बन गए.

जब 1968 की प्राइमरी में रॉकफेलर के मुख्य प्रतिद्वंद्वी रिचर्ड निक्सन की जीत हुई, तो किसिंजर तुरंत निक्सन की टीम में चले गए.
व्हाइट हाउस में एक सशक्त भूमिका निक्सन के व्हाइट हाउस में रहते, वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने और बाद में साथ ही विदेश मंत्री का पद भी संभाला. उसके बाद से किसी ने भी एक ही समय में यह दोनों भूमिकाएँ नहीं निभाईं.

निक्सन के लिए, किसिंजर की कूटनीति ने वियतनाम युद्ध के अंत और चीन के उभार की व्यवस्था की: शीत युद्ध के समाधान में दो संबंधित और महत्वपूर्ण घटनाएं. उन्होंने अपनी वियतनाम कूटनीति के लिए 1973 का नोबेल शांति पुरस्कार जीता, लेकिन कंबोडिया में बमबारी अभियान सहित संघर्ष के दौरान कथित अमेरिकी ज्यादतियों के लिए वामपंथियों ने उन्हें युद्ध अपराधी के रूप में निंदा की, जिसमें संभवत? सैकड़ों हजारों लोग मारे गए थे.

आलोचना के बावजूद वह बने रहे चीन की ओर झुकाव ने न केवल वैश्विक शतरंज की बिसात को पुनर्व्यवस्थित किया, बल्कि इसने लगभग तुरंत ही वैश्विक बातचीत को वियतनाम में अमेरिकी हार से सोवियत विरोधी गठबंधन में बदल दिया. वाटरगेट घोटाले के कारण निक्सन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होने के बाद, किसिंजर ने निक्सन के उत्तराधिकारी गेराल्ड फोर्ड के अधीन विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया.

उस संक्षिप्त, दो-वर्षीय प्रशासन के दौरान, किसिंजर का कद और अनुभव संकटग्रस्त फोर्ड पर भारी पड़ गया. फोर्ड ने ख.ुशी से अमेरिकी विदेश नीति किसिंजर को सौंप दी ताकि वह राजनीति पर ध्यान केंद्रित कर सकें और उस कार्यालय के लिए चुनाव लड़ सकें जिसके लिए लोगों ने उन्हें कभी नहीं चुना था. 1970 के अशांत दशक के दौरान, किसिंजर का कद और रूतबा लगातार बढ़ता रहा.

यह भले बेहद आकर्षक न रहे हों, लेकिन वैश्विक शक्ति के ओहदे ने उन्हें एक आभा दी, जिसे हॉलीवुड अभिनेत्रियों और अन्य मशहूर हस्तियों ने देखा. उनका रोमांटिक जीवन कई गॉसिप कॉलम का विषय था. उनके लिए यह तक कहा गया कि ”ताकतवर होना परम कामोत्तेजक है”.

फोर्ड प्रशासन के बाद अमेरिकी विदेश नीति में उनकी विरासत बढ़ती रही. उन्होंने निगमों, राजनेताओं और कई अन्य वैश्विक नेताओं को सलाह दी, अक्सर बंद दरवाजों के पीछे और कई बार सार्वजनिक रूप से भी.

आलोचना और निंदा
किसिंजर की कठोर आलोचना हुई और हो रही है. रोलिंग स्टोन पत्रिका के किसिंजर के मृत्युलेख का शीर्षक है ”अमेरिका के शासक वर्ग का प्रिय युद्ध अपराधी, अंतत? मर गया”. विभाजनकारी वियतनाम वर्षों के दौरान अमेरिकी विदेश नीति के साथ उनका जुड़ाव कुछ आलोचकों के लिए एक जुनून जैसा है, जो वियतनाम के निर्दोष लोगों के खिलाफ युद्ध के भयानक कृत्यों को अंजाम देने वाले भ्रष्ट निक्सन प्रशासन के रूप में उनकी भूमिका को माफ नहीं कर सकते.

किसिंजर के आलोचक उन्हें अमेरिकी राजनीति के सर्वोत्तम व्यक्तित्व के रूप में देखते हैं – व्यक्तिगत सत्ता के लिए या विश्व मंच पर अपने देश के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार. लेकिन मेरी राय में यह व्याख्या ग.लत है. नियाल फग्र्यूसन की 2011 की जीवनी, किसिंजर, एक बहुत अलग कहानी बताती है. 1,000 से अधिक पृष्ठों में, फग्र्यूसन ने युवा किसिंजर पर द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव का विवरण दिया है.

पहले वहां से भागना, फिर उसके खिलाफ लड़ने के लिए वापस आना, एक अनैतिक शासन ने भावी अमेरिकी विदेश मंत्री को दिखाया कि वैश्विक शक्ति को अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाना चाहिए और अंतत? लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए.

चाहे वह प्रशंसनीय शांति वार्ता स्थापित करने के लिए वियतनाम युद्ध नीति पर निक्सन को सलाह दे रहे थे, या सोवियत संघ को शह और मात में डालने के लिए चीन के लिए खुलेपन के विवरण की व्यवस्था कर रहे थे, किसिंजर की नज.र हमेशा अधिनायकवाद और नफरत की ताकतों के खिलाफ पश्चिम के उदार मानवीय मूल्यों को संरक्षित करने और आगे बढ़ाने पर थी. जिस तरह से उन्होंने इसे देखा, ऐसा करने का एकमात्र तरीका अमेरिका और उसके सहयोगियों की प्रधानता के लिए काम करना था. इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए हेनरी किसिंजर से अधिक किसी ने प्रयास नहीं किया. इसके लिए उनकी प्रशंसा भी की जाएगी और निंदा भी.

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