अगर संप्रग प्रमुख की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया नहीं देता तो अपनी शपथ के साथ न्याय नहीं करता : धनखड़

नयी दिल्ली. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की अध्यक्ष सोनिया गांधी की न्यायपालिका के संदर्भ में की गई अपनी टिप्पणियों का बचाव करते हुए शुक्रवार को कहा कि अगर उन्होंने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी होती तो वह अपनी शपथ के साथ अन्याय करते और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहते.

धनखड़ ने कहा कि संप्रग अध्यक्ष की टिप्पणी उन्हें ‘‘आरोप लगी कि वह न्यायपालिका को कमजोर करने वाली व्यवस्था का हिस्सा हैं’’. उन्होंने कहा कि आसन को इस प्रकार के रुख के सिलसिले में घसीटे जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. धनखड़ ने यह भी कहा कि उन्होंने गांधी की टिप्पणी पर उच्च सदन में ‘‘बड़े पैमाने पर होमवर्क’’ के बाद यह प्रतिक्रिया दी और यह इससे अधिक ‘‘उच्चतम स्तर को प्रतिंिबबित’’ नहीं कर सकती थी.

उन्होंने कहा कि सदन में उनकी प्रतिक्रिया ‘‘प्रतिक्रिया का सबसे निचला स्तर’’ थी और वह इसे टाल नहीं सकते थे. ज्ञात हो कि सोनिया गांधी ने पिछले दिनों कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में कहा था कि न्यायपालिका पर सुनियोजित तरीके से हमला किया जा रहा है और मंत्रियों से लेकर एक उच्च संवैधानिक पद को इसके लिए लगाया गया है. उन्होंने इसे बहुत परेशान करने वाला घटनाक्रम करार दिया था.

उच्च सदन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने व्यवस्था का प्रश्न खड़ा करते हुए सोनिया गांधी के बयान पर सभापति धनखड़ की टिप्पणी का मुद्दा उठाया और कहा कि नेताओं द्वारा सदन के बाहर की गई टिप्­पणियों पर सभापति की प्रतिक्रिया परंपराओं के विपरीत है.

तिवारी ने कहा ‘‘अगर लोकसभा सदस्य (सोनिया गांधी) बाहर कुछ कहती हैं तो उस पर राज्यसभा में चर्चा नहीं की जानी चाहिए. अगर आसन की ओर से उस पर प्रतिक्रिया आती है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा कभी नहीं हुआ.’’ विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने उनकी बात का समर्थन किया.

उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ कहा गया है उसे कृपया कार्यवाही से निकाल दिया जाए. अगर इसे कार्यवाही से नहीं निकाला जाएगा तो यह अच्छी मिसाल पेश नहीं करेगा.’’ खरगे ने कहा कि संप्रग अध्यक्ष दूसरे सदन की सदस्य हैं और उच्च सदन की यह परंपरा रही है कि यहां अन्य सदन के सदस्य के वक्तव्य पर चर्चा नहीं की जाती है.

केंद्रीय मंत्री और सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि खरगे को यह देखना चाहिए कि सदन पर, उच्च संवैधानिक प्राधिकारी पर आक्षेप लगाए गए… जिन्हें संसद के दोनों सदनों द्वारा चुना गया है और जो भारत के उपराष्ट्रपति हैं. इस मुद्दे पर कुछ अन्य सदस्यों ने भी टिप्पणियां कीं.

धनखड़ ने कहा, ‘‘…टिप्पणियां उसके संबंध में थीं जो मैंने आठ दिसंबर को इस आसन से की थीं.’’ उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को यह कहना अतिवाद की सीमा होगा कि न्यायपालिका को कमतर करने के मामले में सरकार ने राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति को शामिल किया.

उन्होंने कहा कि यदि उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं की होती, तो उसके काफी ‘‘अपमानजनक परिणाम’’ होते और इस तरह की धारणा बनाई जा रही थी कि न्यायपालिका को कमतर करने के लिए सरकार की शह पर आसन एक प्रतिकूल एवं दुरभिसंधि का पक्ष बन गया है.
सभापति ने कहा कि न्यायपालिका को कमतर करने का अर्थ लोकतंत्र का गला घोंटना है. उन्होंने कहा कि इस पक्षपातपूर्ण विवाद का खात्मा होना चाहिए.

धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं सदस्यों को आश्वस्त कर सकता हूं कि इस विषय के जानकार लोगों के साथ मैंने व्यापक तैयारी की (टिप्पणी से पहले), पूर्व के महासचिवों के साथ बातचीत की और फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अगर मैं प्रतिक्रिया नहीं देता हूं तो मैं अपनी शपथ के साथ अन्याय करूंगा और अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने में विफल रहूंगा.’’

सभापति ने 22 दिसंबर को कहा था कि संप्रग अध्यक्ष का बयान उनके विचारों से पूरी तरह से भिन्न है और न्यायपालिका को कमतर करना उनकी सोच से परे है. उन्होंने कहा कि संप्रग अध्यक्ष का बयान पूरी तरह अनुचित है और लोकतंत्र में उनके विश्वास की कमी का संकेत देता है.

इससे पहले संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को पार्टी संसदीय दल की बैठक में आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार सुनियोजित ढंग से न्यायपालिका के प्राधिकार को कमजोर करने का प्रयास कर रही है, जो बहुत ही परेशान करने वाला घटनाक्रम है. संप्रग अध्यक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया थी कि वह जनता की नजर में न्यायपालिका की स्थिति को कमतर बनाने का प्रयास कर रही है.

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