विवादित किताब के मामले में प्राचार्य ने खुद को बेकसूर बताया, ABVP ने की “निष्पक्ष जांच” की मांग

इंदौर. इंदौर के शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय के पुस्तकालय में एक विवादित किताब को लेकर गंभीर कानूनी प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज होने के बाद संस्थान के प्राचार्य ने सोमवार को खुद को बेकसूर बताया. मामले के आरोपियों में शामिल प्राचार्य ने दावा किया कि यह पुस्तक इस पद पर उनकी नियुक्ति से पांच साल पहले खरीदी गई थी और किताब से जुड़े विवाद की कानूनी जिम्मेदारी उन पर नहीं डाली जा सकती.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का आरोप है कि कानून के विद्यार्थियों को पढ़ाई जा रही इस किताब में ंिहदू समुदाय और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक बातें लिखी गई हैं जिनसे धार्मिक कट्टरता को बल मिलता है. पुलिस ने बताया कि ‘‘सामूहिक हिंसा एवं दांडिक न्याय पद्धति’’ के शीर्षक वाली पुस्तक की लेखिका डॉ. फरहत खान, प्रकाशक अमर लॉ पब्लिकेशन, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. इनामुर्रहमान और संस्थान के प्राध्यापक मिर्जा मोजिज बेग के खिलाफ तीन दिसंबर को प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

उच्च शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि विवाद बढ़ने पर महाविद्यालय के प्राचार्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था जिसे मंजूरी के लिए राज्य सरकार को भेजा गया है. डॉ. इनामुर्रहमान ने ‘‘पीटीआई-भाषा’’ से कहा, ‘‘मैं 2019 में महाविद्यालय के प्राचार्य के रूप में पदस्थ हुआ था. यह किताब इस पद पर मेरी नियुक्ति से पहले 2014 में खरीदी गई थी और इसे पुस्तकालय में रखवाने से मेरा कोई लेना-देना नहीं है.’’ उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए कहा कि विवादित पुस्तक के लिए महाविद्यालय के प्राचार्य को आखिर किस तरह जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इनामुर्रहमान ने यह भी कहा कि इस मामले में पुस्तकालय प्रमुख के खिलाफ अब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.

उधर, पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) राजेश कुमार सिंह ने कहा कि विवादित किताब के मामले में चार आरोपियों के अलावा अन्य लोगों की भूमिका के बारे में भी जांच जारी है. डीसीपी ने बताया कि इस मामले में अब तक किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.
पुलिस के मुताबिक, विवादित पुस्तक को लेकर शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय के एलएलएम पाठ्यक्रम के छात्र और एबीवीपी नेता लकी आदिवाल (28) की शिकायत पर भारतीय दंड विधान की धारा 153-ए (धर्म के आधार पर दो समूहों के बीच वैमनस्य फैलाना), 295-ए (किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जान-बूझकर किए गए विद्वेषपूर्ण कार्य) और अन्य संबद्ध प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज है.

आदिवाल ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि पुलिस के साथ ही उच्च शिक्षा विभाग मामले की निष्पक्ष जांच करे. हमने विवादित किताब के अलावा महाविद्यालय से जुड़ी अन्य गंभीर गड़बड़ियों को लेकर भी प्राचार्य को शिकायत की थी जिनमें संस्थान के कुछ शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों के बीच धार्मिक कट्टरता और लव जिहाद को बढ़ावा दिए जाने की बातें शामिल हैं.” गौरतलब है कि महाविद्यालय में विवाद की शुरुआत एक दिसंबर को हुई, जब एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने ये गंभीर आरोप लगाते हुए जमकर हंगामा किया कि संस्थान के कुछ शिक्षक नये विद्यार्थियों के बीच धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं और उनके मन में देश की सरकार तथा सेना को लेकर नकारात्मक बातें भर रहे हैं.

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