ऋण धोखाधड़ी मामला: अदालत ने कोचर दंपति को अंतरिम जमानत दी

मुंबई. बंबई उच्च न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को ऋण धोखाधड़ी के एक मामले में सोमवार को अंतरिम जमानत दे दी. अदालत ने गिरफ्तारी ‘लापरवाही’ और बिना सोचे-समझे करने के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से नाराजगी भी जताई.

सीबीआई ने वीडियोकॉन-आईसीआईसीआई बैंक के ऋण धोखाधड़ी मामले में कोचर दंपति को 23 दिसंबर, 2022 को गिरफ्तार किया था. वे अभी न्यायिक हिरासत में हैं. दोनों ने अपनी गिरफ्तारी को गैरकानूनी और मनमाना बताते हुए उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. दोनों ने अंतरिम आदेश के माध्यम से जमानत पर छोड़े जाने की गुहार लगाई थी. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पी. के. चव्हाण की खंडपीठ ने 49 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा कि उनकी गिरफ्तारी कानून के प्रावधानों के अनुरूप नहीं थीं.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को याचिकाओं पर सुनवाई लंबित रहने और अंतिम निस्तारण होने तक जमानत पर रिहाई का हक है. उच्च न्यायालय ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए छह फरवरी की तारीख तय की. अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में गिरफ्तारी का आधार केवल असहयोग और पूरी तरह सही जानकारी नहीं देना बताया गया है.

उसने कहा कि कोचर दंपति की गिरफ्तारी दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41ए का उल्लंघन है, जिसके तहत संबंधित पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने के लिए नोटिस भेजना अनिवार्य है. अदालत ने कहा, ‘‘तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ताओं (कोचर दंपति) की गिरफ्तारी कानून के प्रावधानों के तहत नहीं की गई. धारा 41 (ए) का पालन नहीं किया गया और इसलिए वे रिहाई के हकदार हैं.’’ अदालत ने कहा, ‘‘गिरफ्तारी कानून के प्रावधानों के तहत नहीं की गई.’’ अदालत ने आदेश में कहा कि किसी मामले में गिरफ्तारी का अधिकार तभी है जब किसी जांच अधिकारी के पास यह मानने का कारण है कि गिरफ्तारी आवश्यक है और व्यक्ति ने अपराध किया है.

उन्होंने कहा, ‘‘विश्वास अच्छी सोच के साथ होना चाहिए, लापरवाही या महज संदेह के आधार पर नहीं. प्रामाणिक सामग्री के आधार पर यह विश्वास होना चाहिए और गिरफ्तारी के संबंध में कोई भी फैसला मनमर्जी से नहीं लिया जा सकता.’’ पीठ ने कहा कि ज्ञापन पत्र में याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार करने के लिये बताये गये आधार अस्वीकार्य हैं और उन आधार या कारणों के विरोधाभासी हैं जिन पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है.

अदालत की पीठ ने कहा, ‘‘अदालतों ने वैयक्तिक स्वतंत्रता का संरक्षण करने तथा जांचकर्ताओं का इस्तेमाल उत्पीड़न के साधन के तौर पर नहीं होने देने में अदालतों की भूमिका बार-बार दोहराई है.’ उसने कहा, ‘‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि हमारे संविधान के तहत किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता महत्वपूर्ण पहलू है.’’ पीठ ने कहा कि सीबीआई द्वारा दिसंबर 2017 में मामला दर्ज किये जाने के बाद कोचर दंपति न केवल एजेंसी के समक्ष पेश हुए हैं, बल्कि उन्होंने सभी दस्तावेज और विवरण जमा किया है.

उसने कहा, ‘‘2019 से जून 2022 तक, करीब चार साल तक याचिकाकर्ताओं को न तो कोई समन जारी किया गया और ना ही प्रतिवादी संख्या-1 (सीबीआई) ने याचिकाकर्ताओं के साथ कोई संपर्क स्थापित किया.’’ फैसले के मुताबिक, ‘‘गिरफ्तारी मेमो में यह नहीं बताया गया कि चार साल के बाद याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार करने की क्या वजह थी.’’

पीठ ने कहा कि विशेष सीबीआई अदालत ने कोचर दंपति की रिमांड पर सुनवाई करते हुए कानून का ध्यान नहीं रखा. उसने कहा कि यदि कानून के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया तो अदालत आरोपियों को तत्काल रिहा कराने के लिए बाध्य है. खंडपीठ ने कोचर दंपति को एक-एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा कराने का निर्देश दिया. दंपति के वकील ने बाद में कहा कि वे रिहाई के लिए सीबीआई की अदालत में आगे की प्रक्रिया शुरू करेंगे.

अदालत ने कहा कि दोनों को जांच में सहयोग करना चाहिए और जब भी तलब किया जाए, दोनों सीबीआई कार्यालय में पेश हों. कोचर दंपति को अपने पासपोर्ट सीबीआई के पास जमा कराने का निर्देश भी दिया गया. कोचर दंपति के अलावा सीबीआई ने वीडियोकॉन के संस्थापक वेणुगोपाल धूत को भी मामले में गिरफ्तार किया है और वह भी न्यायिक हिरासत में हैं.

सीबीआई ने कोचर दंपति, दीपक कोचर द्वारा संचालित नूपावर रिन्यूएबल्स (एनआरएल), सुप्रीम एनर्जी, वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड तथा वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड को भारतीय दंड संहिता की धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2019 के तहत दर्ज प्राथमिकी में आरोपी बनाया है.

एजेंसी का आरोप है कि आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन के संस्थापक वेणुगोपाल धूत द्वारा प्रर्वितत वीडियोकॉन समूह की कंपनियों को बैंंिकग विनियमन अधिनियम, भारतीय रिजÞर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों और बैंक की ऋण नीति का उल्लंघन करते हुए 3,250 करोड़ रुपये की ऋण सुविधाएं मंजूर की थीं.

प्राथमिकी के अनुसार, इस मंजूरी के एवज में धूत ने सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (एसईपीएल) के माध्यम से नूपावर रिन्यूएबल्स में 64 करोड़ रुपये का निवेश किया और 2010 से 2012 के बीच हेरफेर करके पिनेकल एनर्जी ट्रस्ट को एसईपीएल स्थानांतरित की. पिनेकल एनर्जी ट्रस्ट तथा एनआरएल का प्रबंधन दीपक कोचर के ही पास था.

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