रहस्य सुलझाया: : स्तनधारियों के पूर्वज कब गर्म खून वाले हो गए!

लंदन. स्तनधारी और पक्षी शरीर की गर्मी खुद उत्पन्न करके अपने शरीर के ताप को नियंत्रित करते हैं. इस प्रक्रिया को उष्माशोषी (एंडोथर्मी) या खून गर्म होने की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है. यह एक कारण हो सकता है कि स्तनधारी लगभग हर वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र पर विजय हासिल कर लेते हैं .

गर्म रक्त वाले पशु ठंडे खून वाले पशुओं की तुलना में दिन और रात, दोनों में अधिक सक्रिय होते हैं और वे तेजी से प्रजनन करते हैं.
लेकिन अब तक यह ठीक से ज्ञात नहीं हो पाया है कि उष्माशोषी प्रक्रिया की उत्पत्ति स्तनधारी वंश परंपरा में कब हुई थी. हाल ही में ‘नेचर’ जर्नल में हमारा नया अध्ययन प्रकाशित हुआ है.

वैज्ञानिकों की अंत:प्रज्ञा, दक्षिण अफ्रीका के कारू क्षेत्र के जीवाश्म और अत्याधुनिक तकनीक के संयोजन से जवाब मिल गया है. लगभग 23.3 करोड़ वर्ष पूर्व ट्राइसिक काल के उत्तरार्ध के दौरान स्तनधारी पूर्वजों में उषमाशोषी प्रक्रिया शुरू हुई. स्तनधारियों में उष्पमाशोषी प्रक्रिया की उत्पत्ति जीवाश्म विज्ञान के महान अनसुलझे रहस्यों में से एक रही है. इसके पहले इसका जवाब हासिल करने के लिए कई अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया गया, लेकिन अक्सर अस्पष्ट या परस्पर विरोधी परिणाम मिले. हमें लगता है कि हमारी पद्धति ज्यादा वास्तविक वादा करती है, क्योंकि इसे बहुत बड़ी संख्या में आधुनिक प्रजातियों का उपयोग करके मान्यता दी गई है.

इससे पता चलता है कि उष्माशोषिता उस समय विकसित हुई जब स्तनधारी शरीर योजना की कई अन्य विशेषताएं भी अस्तित्व में आ रही थीं. गर्म-रक्तता वह सबसे अहम चीज है जो स्तनधारियों के मौजूदा स्वरूप के लिए जिम्मेदार है. उष्माशोषित प्रक्रिया संभवत: शुरुआती ंिबदु था, जहां स्तनधारिता विकसित हुई जैसे कि उषमारोधी फर वाले कोट; एक बड़े मस्तिष्क का विकास, गर्म रक्त की आपूर्ति, तेज प्रजनन दर और एक अधिक सक्रिय जीवन. ये सभी स्तनधारी जीव के परिभाषित लक्षण हैं जो गर्म-खून के कारण विकसित हुए.

अब तक, अधिकांश वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि उष्माशोषी प्रक्रिया लाखों वर्षों के दौरान विकसित एक क्रमिक और धीमी प्रक्रिया थी, जो परमो-ट्राइसिक सीमा के करीब शुरू हुई थी. हालांकि कुछ ने सुझाव दिया कि यह प्रक्रिया लगभग 20.0 करोड़ वर्ष पहले स्तनधारियों की उत्पत्ति के करीब शुरू हुई. इसके विपरीत, हमारे परिणाम बताते हैं कि यह स्तनधारियों की उत्पत्ति से लगभग 3.3 करोड़ वर्ष पहले स्तनधारी पूर्वजों में उष्माशोषी प्रक्रिया दिखी.

वैज्ञानिकों की अंत:प्रज्ञा
हमारा शोध डॉ. अराउजो और डॉ. डेविड के आंतरिक कान के बारे में अंत:प्रज्ञा (इनट्यूशन) से शुरू हुआ. कान सुनने के अंग से अधिक है: इसमें संतुलन का अंग है, अर्धवृत्ताकार नलिकाएं भी हैं. भीतरी कान की तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएं तीन आयामों में उन्मुख होती हैं.
वे एक तरल पदार्थ से भर जाते हैं जो सिर के हिलने पर नलिकाओं में बहता है और मस्तिष्क को सिर और शरीर की सटीक त्रि-आयामी स्थिति बताने के लिए रिसेप्टर्स को सक्रिय करता है.

इस द्रव (जिसे एंडोलिम्फ कहा जाता है) की चिपचिपाहट, या बहना, अंगों की क्षमता में संतुलन के लिए अहम है. जैसे मक्खन का एक टुकड़ा गर्म कड़ाही में ठोस से तरल में बदल जाता है, या ठंडा होने पर शहद गाढ़ा हो जाता है, एंडोलिम्फ की चिपचिपाहट शरीर के तापमान के साथ बदल जाती है.

इसका मतलब है कि एंडोलिम्फ की चिपचिपाहट सामान्य रूप से शरीर के उच्च तापमान के विकास से बदल जाएगी. लेकिन शरीर को अनुकूलन करना पड़ता है, क्योंकि चिपचिपाहट में बदलाव अर्धवृत्ताकार नलिकाओं को ठीक से काम नहीं करने देगा. स्तनधारियों में नलिकाएं अपनी ज्यामिति को बदलकर शरीर के उच्च तापमान के अनुकूल हो जाती हैं. शोधकर्ताओं ने महसूस किया कि अर्धवृत्ताकार नलिकाओं के आकार में इस परिवर्तन का पता जीवाश्मों का उपयोग करके भूवैज्ञानिक समय के माध्यम से लगाना आसान होगा.

पुर्निनर्माण और अध्ययन
शुष्क कारू क्षेत्र में जीवाश्मों का खजाना है, इनमें से कई स्तनधारी पूर्वजों से संबंधित हैं. ये जीवाश्म लगभग 10.0 करोड़ वर्ष की अवधि में जीवन के विकास का एक अटूट रिकॉर्ड प्रस्तुत करते हैं. अत्याधुनिक सीटी-स्कैंिनग तकनीकों और 3डी मॉडंिलग का उपयोग करके हम दक्षिण अफ्रीकी कारू और दुनिया में कहीं और से दर्जनों स्तनधारी पूर्वजों के आंतरिक कान का पुर्निनर्माण करने में सक्षम है. हम ठीक-ठीक बता सकते हैं कि किन प्रजातियों में एक गर्म शरीर के तापमान के अनुरूप आंतरिक कान की शारीरिक रचना थी और किनमें नहीं थी.

जिस समय ये जानवर रहते थे, उस समय कारू की भौगोलिक स्थिति पर हमें एक बात का ध्यान रखना था. यह महाद्वीपीय बहाव के परिणामस्वरूप अब की तुलना में दक्षिणी ध्रुव के करीब स्थित था. इसका मतलब है कि आंतरिक कान की ज्यामिति द्वारा सुझाया गया शरीर का गर्म तापमान समग्र गर्म जलवायु के कारण नहीं हो सकता है. चूंकि दक्षिण अफ्रीकी जलवायु औसतन ठंडी थी, आंतरिक कान के द्रव की चिपचिपाहट में परिवर्तन केवल स्तनधारी पूर्वजों में आम तौर पर गर्म शरीर के तापमान के कारण हो सकता है.

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