राजग में शामिल हुई ओबीसी नेता ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा
नयी दिल्ली/लखनऊ. आगामी लोकसभा चुनावों से पहले छोटे-छोटे दलों को साधने की कोशिश में जुटी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को रविवार को एक और सफलता मिली. उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ताल्लुक रखने वाले ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल हो गई. राजभर के राजधानी दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के बाद यह घोषणा की गई.
शाह ने एक ट्वीट में कहा, “ओम प्रकाश राजभर से दिल्ली में भेंट हुई. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से जुड़ने का निर्णय लिया है. मैं राजग परिवार में उनका स्वागत करता हूं.” इसके साथ ही शाह ने इस मुलाकात की एक तस्वीर भी साझा की. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि राजभर के आने से उत्तर प्रदेश में राजग मजबूत होगा और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में गठबंधन द्वारा गरीबों व वंचितों के कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों को और बल मिलेगा.
राजभर ने एक ट्वीट में कहा, ”भाजपा और सुभासपा साथ आए. सामाजिक न्याय, देश की रक्षा-सुरक्षा, सुशासन और वंचितों, शोषितों, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं, किसानों, नौजवानों तथा हर कमजोर वर्ग को सशक्त बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी मिलकर लड़ेंगी.” उन्होंने कहा कि दिल्ली में शाह से भेंट हुई और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले राजग में शामिल होने का निर्णय लिया.
राजभर ने राजग में शामिल होने के बाद दावा किया कि समाजवादी पार्टी (सपा) का किसी के साथ गठबंधन टिक नहीं सकता है और अभी बहुत से लोग सपा छोड़कर राजग में शामिल होंगे. लखनऊ में जारी एक बयान में सुभासपा अध्यक्ष ने कहा कि सपा का किसी से गठबंधन टिक ही नहीं सकता है. कांग्रेस और बसपा के साथ ही सुभासपा के साथ हुए सपा के पूर्व गठबंधन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव की स्थिति नवासा (ससुराल की संपत्ति) पाने वाले व्यक्ति जैसी हो गई है, जो चाहता है कि गांव में सब कुछ उसी के पास रहे.
भाजपा की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, ”विपक्ष में अहम (अहंकार) है, सभी खुद को बड़ा मानते हैं. इन दलों को भाजपा से सीखना चाहिए कि कैसे छोटे-छोटे दलों को जोड़कर सत्ता हासिल की जाती है.” सुभासपा प्रमुख ने कहा कि 18 जुलाई को दिल्ली में राजग की बैठक में तय होगा कि रैलियां कैसे होंगी और सीट का बंटवारा कैसे होगा. राजभर ने उत्तर प्रदेश का पिछला विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन में लड़ा था, लेकिन उम्मीद के मुताबिक सफलता न मिलने के बाद वह सपा से अलग हो गए थे.
उन्होंने पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में राजग उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था. राजभर की पार्टी ने वर्ष 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था. सरकार बनने पर राजभर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में उन्होंने गठबंधन से नाता तोड़ लिया था.
ओम प्रकाश राजभर का विशेष रूप से राजभर समुदाय के बीच प्रभाव है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस समुदाय की अच्छी खासी तादाद है. खासतौर से गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, अंबेडकरनगर, जौनपुर, चंदौली, वाराणसी, देवरिया, संत कबीर नगर, कुशीनगर, गोरखपुर, बस्ती और बहराइच समेत कई जिलों में राजभर मतदाताओं का प्रभाव माना जाता है.
सूत्रों का कहना है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए ओमप्रकाश राजभर ने मऊ जिले की घोसी और गाजीपुर लोकसभा सीट के लिए राजग में अपना दावा ठोंका है. वह बिहार में भी एक सीट की मांग कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक ,राजभर घोसी या गाजीपुर में अपने छोटे पुत्र और पार्टी प्रवक्ता अरुण राजभर को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं. राजभर राजग में ऐसे समय में शामिल हुए हैं, जब भाजपा अपना कुनबा बढ़ाने की कोशिश कर रही है. भाजपा ने संसद के मानसून सत्र से पहले 18 जुलाई को राजग की एक बैठक बुलाई है.
भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने सहयोगी दलों को पत्र लिखकर इस बैठक के लिए आमंत्रित किया है. नड्डा ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी, शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के सुखदेव सिंह ढींडसा सहित विभिन्न नेताओं को पत्र लिखा है. पासवान और मांझी राजग की बैठक में शामिल हो सकते हैं. उम्मीद की जा रही है कि राजभर अब 18 जुलाई की बैठक में शामिल होंगे. इस बैठक को लोकसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ गठबंधन के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है.
राजभर के राजग में शामिल होने से उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूती मिलेगी. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीट है. हालांकि, इस संदर्भ में जब समाजवादी पार्टी (सपा) के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी से बातचीत की गयी तो उन्होंने कहा कि ”राजभर भी बेसहारा हैं और भाजपा भी अक्षमता की स्थिति में बेसहारा हो गयी है, इसलिए दोनों मिलकर भी कुछ नहीं कर सकते हैं.” चौधरी ने कहा कि ”भाजपा का मूल सिद्धांत आपदा में अवसर की तलाश है. भाजपा इस समय संकट में है और सत्ता में रहने के बाद भी उसे लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं.”
‘पूर्वांचल’ के एक अन्य ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान ने शनिवार को समाजवादी पार्टी के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने इससे पहले अमित शाह से मुलाकात की थी. चौहान के भी जल्द ही भाजपा में शामिल होने की संभावना है. चौहान पहले भाजपा में ही थे, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले वह सपा में शामिल हो गए थे.
नोनिया बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले चौहान 2022 में मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से चुने गये थे, जबकि 2017 में भाजपा के टिकट पर वह इसी जिले की मधुबन विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश में नोनिया बिरादरी का भी खासा प्रभाव माना जाता है. दारा सिंह चौहान 2009 में बहुजन समाज पार्टी से घोसी लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वह दो बार राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं.
राजेंद्र चौधरी ने दारा सिंह चौहान के कदम को भितरघात बताते हुए कहा कि यह राजनीति का अवमूल्यन है. दारा सिंह चौहान के भाजपा में आने के मामले पर राजभर ने कहा कि धर्म सिंह सैनी (योगी आदित्यनाथ की पिछली सरकार के मंत्री जो सपा में चले गये थे) को भी जल्द आपके सामने लाऊंगा.
राजभर ने दोहराया कि सुभासपा और भाजपा का गठबंधन होने से राजग को मजबूती मिलेगी. उन्होंने कहा कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और उनके समाज के सामाजिक संगठनों की हमेशा से कोशिश रही है कि भर/राजभर जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल कराया जाए और सुभासपा इस कार्य को पूरा करने के लिए कटिबद्ध है.