हमारे कंधे काफी चौड़े हैं: चुनावी बॉण्ड आदेश पर सोशल मीडिया टिप्पणियों को लेकर न्यायालय ने कहा

नयी दिल्ली. चुनावी बॉण्ड संबंधी मामलों पर उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बाद उसे ”र्शिमंदा” करने के इरादे से सोशल मीडिया पर साझा की गई पोस्ट का मामला उठाए जाने पर शीर्ष अदालत ने कहा कि एक संस्था के रूप में ”हमारे कंधे काफी चौड़े” हैं. चुनावी बॉण्ड मामले की सुनवाई कर रही पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब कोई अदालत फैसला सुनाती है तो वह निर्णय चर्चा के लिए राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है.

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की चिंता केवल अपने 15 फरवरी के फैसले में दिए गए निर्देशों को लागू करने को लेकर है. संविधान पीठ ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र की चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ”असंवैधानिक” करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का 13 मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था.

उसने निर्देश दिया था कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) 12 अप्रैल, 2019 से आज तक खरीदे गए चुनावी बॉण्ड का विवरण निर्वाचन आयोग को सौंपे. न्यायालय ने 11 मार्च को एसबीआई को बड़ा झटका देते हुए चुनावी बॉण्ड संबंधी जानकारी का खुलासा करने के लिए समयसीमा बढ.ाने का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी थी और उससे पूछा था कि उसने अदालत के निर्देश के अनुपालन के लिए क्या कदम उठाए हैं.

न्यायालय ने सोमवार को एसबीआई को पुन: फटकार लगाते हुए उसे मनमाना रवैया न अपनाने और 21 मार्च तक चुनावी बॉण्ड योजना से संबंधित सभी जानकारियों का ”पूरी तरह खुलासा” करने को कहा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा, ”मैं कुछ साझा करना चाहता हूं और अदालत के बाहर हो रही इस चीज को बहुत कष्ट के साथ देख रहा हूं. माननीय न्यायाधीश एक तरह से अलग-थलग रहकर काम करते हैं. आप एकांत में काम करते हैं. मैं यह नकारात्मक संदर्भ में नहीं कह रहा, लेकिन हमें यहां जो चीजें पता चलती है, वे माननीय न्यायाधीशों को कभी पता नहीं चलतीं.” उन्होंने कहा कि केंद्र का तर्क यह था कि वह काले धन पर अंकुश लगाना चाहता था और शीर्ष अदालत ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया.

उन्होंने कहा, ”हममें से हर कोई जानता है कि न्यायालय के निर्णय और निर्देशों के जरिए माननीय न्यायाधीशों ने किसी को निशाना बनाने की कोशिश नहीं की लेकिन किसी अन्य स्तर पर निशाना बनाने की कोशिश शुरू हो गई है, यह सरकारी स्तर पर नहीं है.” मेहता ने कहा कि एसबीआई की अर्जी पर 11 मार्च को सुनवाई के दौरान अदालत ने स्थिति को स्पष्ट किया, ”लेकिन सबसे गंभीर चीजें इसके बाद घटीं. अदालत के सामने मौजूद लोगों ने अदालत को जानबूझकर र्शिमंदा करने के लिए प्रेस साक्षात्कार देने शुरू कर दिए और इस खेल में समान अवसर नहीं हैं. इस तरफ से, कोई भी इसका खंडन नहीं कर सकता. न तो सरकार ऐसा कर सकती है, न ही एसबीआई ऐसा कर सकती है. कोई और भी ऐसा नहीं कर सकता.”

उन्होंने कहा, ”तथ्यों को तोड़-मरोड़कर और अन्य आंकड़ों के आधार पर किसी भी तरह की पोस्ट साझा की जा रही हैं. मैं जानता हूं कि माननीय न्यायाधीश इन पर नियंत्रण नहीं कर सकते.” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सरकार को केवल फैसले में जारी निर्देशों को लागू करने की चिंता होती है.

उन्होंने कहा, ”न्यायाधीशों के रूप में हम संविधान के अनुसार निर्णय लेते हैं. हम कानून के शासन के अनुसार काम करते हैं. हम सोशल मीडिया और प्रेस में टिप्पणियों का विषय भी बनते हैं लेकिन निश्चित रूप से, एक संस्था के रूप में हमारे कंधे काफी चौड़े हैं.”  यमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”हमारी अदालत को उस राजनीति में एक संस्थागत भूमिका निभानी है जो संविधान और कानून के शासन द्वारा शासित होती है. हमारा यही एकमात्र काम है.” उन्होंने कहा कि एक बार जब अदालत फैसला सुना देती है, तो यह निर्णय देश की संपत्ति बन जाता है जिस पर बहस हो सकती है. मेहता ने कहा कि उनका उद्देश्य शीर्ष अदालत को यह सूचित करना था कि ”कुछ और ऐसा चल रहा है” जो न तो न्यायालय का इरादा था और न ही इस योजना का इरादा था.

चुनावी बॉण्ड कार्यालय में भेजे गए, डाक से हासिल हुए: राजनीतिक दल

कई राजनीतिक दलों ने विभिन्न कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए चुनावी बॉण्ड देने वालों का विवरण साझा करने से इनकार कर दिया है जबकि कुछ दलों ने कहा कि उन्हें “ड्रॉप बॉक्स” या डाक के माध्यम से चंदा मिला है, जिन पर किसी का नाम नहीं था.

एक लॉटरी कंपनी से अधिकांश चंदा हासिल करने वाली द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) ने 2019 में उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार चुनावी बॉण्ड का विवरण प्राप्त करने के लिए अपने दानकर्ताओं से संपर्क किया था. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चंदा देने वालों का खुलासा न करने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम तथा आयकर अधिनियम के संबंधित पहलुओं का हवाला दिया.

भाजपा ने निर्वाचन आयोग को लिखे अपने पत्र में कहा, “विधिवत प्रस्तुत किया जा चुका है कि चुनावी बॉण्ड योजना केवल राजनीतिक वित्तपोषण में धन का हिसाब-किताब रखने और दानदाताओं को किसी भी परिणाम से बचाने के उद्देश्य से पेश की गई थी. कांग्रेस ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को एक पत्र लिखकर चुनावी बॉण्ड दाताओं, धनराशि, तारीख और उस बैंक खाते का विवरण मांगा, जिसमें ये जमा किए गए थे.

एसबीआई ने कांग्रेस को जवाब दिया कि चुनावी बॉण्ड का विवरण राजनीतिक दलों के पास उपलब्ध है और बैंक खाते की जानकारी आयोग के साथ साझा की गई है. समाजवादी पार्टी ने 1 लाख रुपये और 10 लाख रुपये की अपेक्षाकृत छोटी राशि के बॉण्ड का विवरण साझा किया. पार्टी ने बताया कि उसे 1 करोड़ रुपये के 10 बॉण्ड बिना किसी नाम के डाक से प्राप्त हुए थे.

लगभग 77 प्रतिशत चंदा ‘लॉटरी किंग’ कहे जाने वाले सैंटियागो मार्टिन की कंपनी फ्यूचर गेमिंग से हासिल करने वाली द्रमुक ने कहा कि उसने दान का विवरण हासिल करने के लिए दानदाताओं से संपर्क किया था. द्रमुख ने कहा, “इस योजना के तहत दान लेने वाले को दानकर्ता का विवरण देने की भी आवश्यकता नहीं थी. … फिर भी, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए, हमने अपने दानदाताओं से संपर्क करके विवरण हासिल किया.ह्व तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) ने दानदाताओं के नामों की जानकारी वाले कॉलम में “तत्काल उपलब्ध नहीं” लिखा है.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने कहा कि चुनावी बॉण्ड पार्टी कार्यालय में भेजे गए थे और उन्हें “ड्रॉप बॉक्स में डाल दिया गयाह्व था.
टीएमसी ने कहा कि पार्टी का समर्थन करने की इच्छा रखने वाले विभिन्न व्यक्तियों की ओर से दूतों के माध्यम से कुछ बॉण्ड भेजे गए थे, जिनमें से कई ने गुमनाम तरीके से दान किया.

उस समय शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा ने बॉण्ड देने वालों का विवरण प्रस्तुत करने में असमर्थता व्यक्त की क्योंकि पार्टी ने विवरण नहीं रखा था और न ही कोई रसीद जारी की थी. राकांपा ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि उसके कई पदाधिकारी चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं.

राकांपा ने कहा, “जहां भी संभव हुआ हमने उस व्यक्ति का नाम बताया है जिसके माध्यम से पार्टी को बॉण्ड प्राप्त हुए थे.” कांग्रेस की गोवा इकाई ने पार्टी को मिले 30 लाख रुपये के चुनावी बॉण्ड का विवरण प्राप्त करने के लिए अपने दानदाता वी एम सालगांवकर एंड ब्रदर्स से संपर्क किया. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कहा कि 1.5 करोड़ रुपये के दान के बारे में विवरण आसानी से उपलब्ध नहीं है. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) ने आयोग को बताया है कि किसी ने 2019 में उसके कार्यालय में 10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉण्ड वाला एक लिफाफा दिया था, जिसे पार्टी ने भुना लिया.

न्यायालय का चुनावी बॉन्ड मामले में एसोचैम, सीआईआई की दलीलों पर विचार करने से इनकार

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उद्योग मंडल एसोचैम और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की याचिका सूचीबद्ध नहीं होने के कारण चुनावी बॉण्ड विवरण के खुलासे के खिलाफ उनकी दलीलों पर विचार करने से इनकार कर दिया. न्यायालय ने कहा कि 12 अप्रैल, 2019 से पहले चुनावी बॉण्ड के विवरण का खुलासा करने का आदेश न देना संविधान पीठ का एक ‘सचेत विकल्प’ था.

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले में शीर्ष अदालत द्वारा अप्रैल 2019 में पारित अंतरिम आदेश का हवाला दिया. उच्चतम न्यायालय ने 12 अप्रैल, 2019 को एक अंतरिम आदेश जारी कर निर्देश दिया था कि राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे की जानकारी एक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपनी होगी.

सोमवार को पीठ ने बॉण्ड विवरण के खुलासे के खिलाफ उद्योग निकायों- एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की गैर-सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. एसोचैम और सीआईआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने उद्योग निकायों द्वारा दायर आवेदनों का हवाला दिया तो सीजेआई ने कहा, “हमारे बोर्ड में ऐसा कोई आवेदन नहीं है.” रोहतगी ने कहा कि अब ब्योरा देने के लिए कैसे कहा जा सकता है, जब चुनावी बॉण्ड योजना ने राजनीतिक दलों को गुमनाम वित्तीय योगदान देने की शुरुआत की थी.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हमने 12 अप्रैल, 2019 से विवरण एकत्र करने का निर्देश दिया था. उस वक्त सभी को नोटिस दिया गया था. यही कारण है कि हमने अंतरिम आदेश से पहले बेचे गए बॉण्ड का खुलासा करने के लिए नहीं कहा. यह संविधान पीठ का एक सचेत निर्णय था.”

 

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