आरबीआई इस बार भी नीतिगत दर को रख सकता है यथावत

मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक इस सप्ताह पेश मौद्रिक नीति समीक्षा एक बार फिर नीतिगत दर को यथावत रख सकता हैं. इसका कारण आर्थिक वृद्धि को लेकर चिंता दूर होने और इसके करीब आठ प्रतिशत रहने के साथ केंद्रीय बैंक का अब और अधिक जोर मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के लक्ष्य पर लाने पर हो सकता है. विशेषज्ञों ने यह बात कही.

साथ ही नीतिगत दर पर निर्णय लेने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) अमेरिका और ब्रिटेन जैसे कुछ विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों के रुख पर गौर कर सकती है. ये केंद्रीय बैंक नीतिगत दर में कटौती को लेकर स्पष्ट रूप से ‘देखो और इंतजार करो’ का रुख अपना रहे हैं. विकसित देशों में स्विट्जरलैंड पहली बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसने नीतिगत दर में कटौती की है. वहीं दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान आठ साल बाद नकारात्मक ब्याज दर की स्थिति को समाप्त किया है.

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास की अध्यक्षता वाली एमपीसी की तीन दिवसीय बैठक तीन अप्रैल को शुरू होगी.मौद्रिक नीति समीक्षा की की घोषणा पांच अप्रैल को की जाएगी. यह वित्त वर्ष 2024-25 की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा होगी. एक अप्रैल, 2024 से शुरू वित्त वर्ष में एमपीसी की छठ बैठकें होगी. आरबीआई ने पिछली बार फरवरी 2023 में रेपो दर बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत किया था. उसके बाद लगातार छह द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में इसे यथावत रखा गया है.

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ”मुद्रास्फीति अभी भी पांच प्रतिशत के दायरे में है और खाद्य मुद्रास्फीति के मोर्चे पर भविष्य में झटका लगने की आशंका है, इसको देखते हुए एमपीसी इस बार भी नीतिगत दर और रुख पर यथास्थिति बनाए रख सकता है.” उन्होंने कहा कि जीडीपी अनुमान में संशोधन हो सकता है. इस पर सबकी बेसब्री से नजर होगी.
सबनवीस ने कहा, ”वित्त वर्ष 2023-24 में आर्थिक वृद्धि उम्मीद से कहीं बेहतर रही है और इसीलिए केंद्रीय बैंक को इस मामले में चिंताएं कम होंगी और वह मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने पर ज्यादा ध्यान देना जारी रखेगा.”

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