न्यायालय ने ‘जल्लीकट्टू’, ‘कंबाला’ और बैलगाड़ी दौड़ को मंजूरी देने वाले कानूनों की वैधता बरकरार रखी

न्यायालय ने ‘जल्लीकट्टू’ को मंजूरी देने वाले कानूनों की वैधता बरकरार रखी, तमिलनाडु में दलों ने किया स्वागत

नयी दिल्ली.  उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को तमिलनाडु के उस संशोधन कानून की वैधता बरकरार रखी, जिनके तहत सांडों पर काबू पाने से जुड़े खेल ‘जल्लीकट्टू’ को मंजूरी दी गई थी. अदालत के इस फैसले का तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने स्वागत किया वहीं पशु अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने इस पर असंतोष जताया.

‘जल्­लीकट्टू’ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है, जिसमें सांडों पर काबू पाना होता है. इस आयोजन में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. मदुरै के अलंगनल्लूर, पलामेडु और अवनियापुरम में जल्लीकट्टू का आयोजन होता है.

उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही महाराष्ट्र और कर्नाटक के बैलगाड़ी दौड़ और भैंसों की दौड़ से संबंधित खेल ‘कंबाला’ को भी मंजूरी दी. न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2018 में शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा संर्दिभत पांच सवालों का निस्तारण करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया. इस पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल थे.

संविधान पीठ ने कहा, ‘‘तमिलनाडु संशोधन अधिनियम के संबंध में हमारा फैसला महाराष्ट्र और कर्नाटक के संशोधित अधिनियमों पर भी लागू होगा. हम तीनों संशोधन अधिनियमों को वैध कानून पाते हैं.’’ पीठ ने ‘जल्­लीकट्टू’, बैलगाड़ी दौड़ और ‘कंबाला’ के आयोजन की अनुमति देने वाले तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कानूनों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति बोस ने कहा कि इन अधिनियमों, नियमों और अधिसूचनाओं में निहित कानून को अधिकारियों द्वारा सख्ती से लागू किया जाएगा.

पीठ ने कहा, ‘‘हम विशेष रूप से निर्देश देते हैं कि जिला मजिस्ट्रेट/सक्षम प्राधिकारी नियमों/अधिसूचनाओं में संशोधन के बाद बनाए गए कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे.’’ उसने कहा, ‘‘तमिलनाडु संशोधन अधिनियम… भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची तीन की प्रविष्टि 17 के सार से संबंधित है.’’ पीठ ने कहा कि ‘जल्लीकट्टू’ ऐसा खेल है, जिसमें मवेशी शामिल होते हैं. उसने कहा कि वह अदालत के सामने पेश की गई सामग्री के आधार पर इस बात को लेकर आश्वस्त है कि तमिलनाडु में कम से कम पिछली कुछ शताब्दियों से ‘जल्लीकट्टू’ का आयोजन किया जा रहा है.

पीठ ने कहा, ‘‘लेकिन, यह तमिल संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है या नहीं, इस बारे में जानने के लिए अधिक विस्तृत धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विश्लेषण किए जाने की जरूरत है, जो हमारी राय में एक ऐसा अभ्यास है, जिसे न्यायपालिका द्वारा नहीं किया जा सकता है.’’ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने सांडों से जुड़े खेल ‘जल्लीकट्टू’ को उच्चतम न्यायालय से हरी झंडी मिलने का स्वागत किया और कहा कि यह एक ऐसा अहम फैसला है जो राज्य के ‘इतिहास में स्वर्णाक्षरों’ में अंकित हो गया.
उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि इस खेल को मंजूरी देने वाले तमिलनाडु के कानून को शीर्ष अदालत द्वारा बरकरार रखा गया है और इसे जनवरी, 2024 के पोंगल सीजन में ‘विजय उत्सव’ के रूप में मनाया जाएगा.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रदेश इकाई ने इस खेल पर लगी पाबंदी को हटाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘निरंतर प्रयासों’ को दिया. पट्टाली मक्कल काची के संस्थापक डॉ एस रामदास, अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम के महासचिव टी टी वी दिनाकरण, भाकपा के राज्य सचिव आर मुथरासन और मक्कल नीति मैयम के प्रमुख कमल हासन ने फैसले का स्वागत किया.

वहीं पशुओं की भलाई के लिए काम करने वाले संगठन ‘पेटा इंडिया’ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘जल्लीकट्टू’ की वैधता बरकरार रखने के बाद वे सांडों की रक्षा के लिए कानूनी उपाय तलाश रहे हैं. ‘पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट आॅफ एनिमल्स’ (पेटा) की अगुवाई में अन्य पशु अधिकार संगठनों ने इन प्रथाओं को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पेटा ने सभी लोगों से बैल और भैंसों का शोषण करने वाले ऐसे ‘‘शर्मनाक कृत्यों’’ से दूर रहने का आह्वान किया.

संगठन ने कहा, ‘‘हम लंबे समय से पीड़ित इन पशुओं की रक्षा के लिए कानूनी उपाय तलाश रहे हैं.’’ मीडिया में आई विभिन्न खबरों का हवाला देते हुए पेटा इंडिया ने कहा कि तमिलनाडु द्वारा 2017 से ‘जल्लीकट्टू’ के आयोजन की अनुमति दिए जाने के बाद से कम से कम 33 सांड और 104 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 8,388 लोग घायल हुए हैं. अन्य पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी फैसले की आलोचना की है.

‘पीपुल फॉर एनिमल’ की ट्रस्टी गौरी मोलेखी ने कहा कि जल्लीकट्टू, कम्बाला और इस तरह की अन्य प्रथाएं जानवरों को अनावश्यक पीड़ा देने के अलावा और कुछ नहीं हैं. उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम आज के फैसले से बहुत निराश हैं. संस्कृति की आड़ में नैतिकता से समझौता नहीं किया जा सकता. समलैंगिक विवाह के मामले में वही अदालत संस्कृति की अलग व्याख्या करती है, लेकिन जल्लीकट्टू के आयोजनों में लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाना एक अनमोल परंपरा की तरह लगता है जिसे वे संरक्षित करना चाहते हैं.’’

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