राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ‘जुमलेबाजी’ है धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता : सिंघवी
नयी दिल्ली. धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान को ‘जुमलेबाजी’ करार देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चुनाव से पहले अक्सर ऐसी अवधारणाओं को जबरन लोगों के गले के नीचे उतारने की कोशिश की जा रही है. पिछले हफ्ते तेलंगाना से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए सिंघवी ने कहा कि अगर अवधारणाओं पर आम सहमति से काम किया जाए, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
सिंघवी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “आप अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श किए बगैर लाल किले की प्राचीर से कोई भी ‘एक्स, वाई, जेड’ घोषणा नहीं कर सकते. आज मैं गुण दोष पर नहीं, बल्कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर चर्चा कर रहा हूं. क्या आप इसे एक निश्चित उच्च स्तर के परामर्श के बिना लागू कर सकते हैं. यह कहने का क्या मतलब है कि “मैं एक समान नागरिक संहिता लाने जा रहा हूं”, लेकिन आप इसे धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता कह रहे हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि आप इसे आम सहमति से लागू नहीं कर सकते.”
चार बार के सांसद एवं जाने-माने वकील सिंघवी ने कहा, “क्या कभी इस पर ध्यान दिया गया कि उत्तराखंड में यूसीसी होगा, लेकिन जब आप उत्तर प्रदेश में कार से उतरें, तो यूसीसी नहीं होगा… क्या यह समान नागरिक संहिता है या लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है?” उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधते हुए कहा, “अगर आप उत्तराखंड के निवासी हैं, तो यह (समान नागरिक संहिता) आप पर लागू होगी, लेकिन अगर आप दिल्ली में काम करने लगेंगे, तो यह आप पर लागू नहीं होगी. ये लोगों को बेवकूफ बनाने के हथकंडे हैं. आप हर किसी को, हर समय बेवकूफ नहीं बना सकते.” सिंघवी ने कहा कि अगर अवधारणाओं को आम सहमति से लागू किया जाता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा कि इसे धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता कहना एक ‘नौटंकी’ है और नाम या ‘लेबल’ बदलने से कोई अवधारणा नहीं बदल जाती.
कांग्रेस नेता ने जोर देकर कहा कि इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं, जिन्हें समन्वय और आम सहमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता.
उन्होंने सवाल किया, “किसका कानून वह आधारभूत पैमाना होगा, जिस पर अमल किया जाएगा-पारसियों का, मुस्लिमों का, हिंदुओं का या ईसाइयों का. इसलिए समन्वय और आम सहमति की जरूरत है.” सिंघवी ने कहा, “हो यह रहा है कि आप ऐसी अवधारणाओं को जबरन (लोगों के) गले के नीचे उतारने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि सबसे बड़ी समस्या है. आप इन्हें राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, अपने एजेंडे के कुछ तत्वों को गति देने के लिए और एक तरह का बड़ा मुद्दा बनाने के लिए गढ़ रहे हैं.” उन्होंने रेखांकित किया कि ऐसा अक्सर चुनावों से पहले किया जाता है. सिंघवी ने धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के आ”ान को ‘जुमलावाद’ करार दिया.
उन्होंने कहा, “इनमें से कई चीजें ‘जुमलावाद’हैं -सुनने में अच्छा लगता हैं. ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’, ‘एक राष्ट्र एक भाषा’, समान नागरिक संहिता. इन्हें आम सहमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता.” सिंघवी ने दावा किया कि चूंकि, भाजपा इस (यूसीसी) पर आम सहमति बनाने में नाकाम रही, इसलिए पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर इसकी घोषणा नहीं कर सकी.
उन्होंने कहा, “आपने जुमलेबाजी कर इसका नाम बदलकर धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता कर दिया. असम और उत्तराखंड में इसे लागू किया गया है. यह समान कैसे है? इसलिए आप इसे धर्मनिरपेक्ष कहने लगे. यह जुमलेबाजी है. यह लोगों को गुमराह करने के लिए है. अगर आपमें हिम्मत है, तो आम सहमति कायम कर इस पर आगे बढ़ें.” सिंघवी की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह कहे जाने के कुछ दिनों बाद आई है कि देश के लिए ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ समय की मांग है. उन्होंने मौजूदा कानूनों को ‘सांप्रदायिक नागरिक संहिता’ करार देते हुए उन्हें भेदभावपूर्ण बताया था.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में मोदी ने कहा था, “देश के एक बड़े वर्ग का मानना ??है, जो सच भी है, कि नागरिक संहिता वास्तव में एक तरह से सांप्रदायिक नागरिक संहिता है. यह (लोगों के बीच) भेदभाव करती है.” उन्होंने कहा था कि देश को सांप्रदायिक आधार पर बांटने वाले और असमानता का कारण बनने वाले कानूनों की आधुनिक समाज में कोई जगह नहीं है.