रोड रेज के 34 साल पुराने मामले में सिद्धू को एक साल के कठोर कारावास की सजा

कानून का सम्मान करूंगा : सिद्धू ने एक साल की सजा सुनाए जाने के बाद कहा

नयी दिल्ली/चंडीगढ़/पटियाला.  उच्चतम न्यायालय ने क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को 1988 के ‘रोड रेज’ मामले में बृहस्पतिवार को एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई. अदालत ने कहा कि अपर्याप्त सजा देने के लिए किसी भी “अनुचित सहानुभूति” से न्याय प्रणाली को अधिक नुकसान होगा और इससे कानून पर जनता के विश्वास में कमी आएगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि संबंधित परिस्थितियों में भले ही आपा खो गया हो, लेकिन आपा खोने का परिणाम भुगतना होगा.
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने सिद्धू को दी गई सजा के मुद्दे पर पीड़ित परिवार द्वारा दायर पुर्निवचार याचिका को स्वीकार कर लिया. इसने कहा कि मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस नेता पर केवल जुर्माना लगाते समय “सजा से संबंधित कुछ मूल तथ्य” छूट गए.

शीर्ष अदालत ने मई 2018 में सिद्धू को मामले में 65 वर्षीय व्यक्ति को “जानबूझकर चोट पहुंचाने” के अपराध का दोषी ठहराया था, लेकिन केवल 1,000 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था. यह उल्लेख करते हुए कि हाथ भी अपने आप में तब एक हथियार साबित हो सकता है जब कोई मुक्केबाज, पहलवान, क्रिकेटर, या शारीरिक रूप से बेहद फिट व्यक्ति किसी व्यक्ति को धक्का दे, शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका मानना ??है कि सजा के स्तर पर सहानुभूति दिखाने और सिद्धू को केवल जुर्माना लगाकर छोड़ देने की आवश्यकता नहीं थी.

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘…हमें लगता है कि रिकॉर्ड में एक त्रुटि स्पष्ट है…. इसलिए, हमने सजा के मुद्दे पर पुर्निवचार आवेदन को स्वीकार किया है. लगाए गए जुर्माने के अलावा, हम एक साल के कठोर कारावास की सजा देना उचित समझते हैं.’’ इसने कहा कि कुछ भौतिक पहलू जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता थी, ऐसा प्रतीत होता है कि सजा के चरण में किसी तरह से छोड़ दिए गए थे, जैसे कि सिद्धू की शारीरिक फिटनेस, क्योंकि वह एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे तथा लंबे और तंदुरुस्त थे तथा उन्हें अपने हाथ के प्रहार की शक्ति के बारे में पता था.

पीठ ने कहा, ‘‘यह प्रहार शारीरिक रूप से समान व्यक्ति पर नहीं, बल्कि 65 वर्षीय एक व्यक्ति पर किया गया था, जो उनसे दोगुनी से अधिक उम्र का था. प्रतिवादी संख्या-1 (सिद्धू) यह नहीं कह सकते कि उन्हें प्रहार के प्रभाव के बारे में पता नहीं था या इस पहलू से अनभिज्ञ थे.’’ अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि किसी को उन्हें यह याद दिलाना पड़ता कि उनके प्रहार से कितनी चोट लग सकती है. हो सकता है कि संबंधित परिस्थितियों में आपा खो गया हो, लेकिन आपा खोने के परिणाम भुगतने होंगे.’’

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के तहत साधारण चोट के अपराध के लिए दोषी ठहराते समय कुछ हद तक छूट प्रदान की और सवाल यह है कि क्या केवल समय बीतने पर 1,000 रुपये का जुर्माना पर्याप्त सजा हो सकता है, जब 25 साल के सिद्धू के हाथों से किए गए प्रहार के कारण एक व्यक्ति की जान चली गई. भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने) के तहत अधिकतम एक वर्ष तक की कैद या 1,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘हाथ अपने आप में एक हथियार भी हो सकता है जब कोई मुक्केबाज, पहलवान या क्रिकेटर या शारीरिक रूप से बेहद फिट कोई व्यक्ति प्रहार करे.” इसने कहा कि जहां तक ??चोट लगने की बात है तो शीर्ष अदालत ने मृतक के सिर पर हाथ से वार करने संबंधी याचिका को स्वीकार कर लिया है.

पीठ ने कहा, “हमारे विचार में इसका महत्व है जो रिकॉर्ड में एक स्पष्ट त्रुटि है जिसमें कुछ सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है.” न्यायालय ने अपने 24 पन्नों के फैसले में अपराध की गंभीरता और सजा के बीच उचित अनुपात बनाए रखने की आवश्यकता पर  विचार किया. इसने कहा कि किसी आपराधिक अपराध के संबंध में उचित सजा का सिद्धांत “सजा का आधार” है.

पीठ ने कहा, “एक महत्वपूर्ण पहलू को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अपर्याप्त सजा देने के लिए कोई भी अनुचित सहानुभूति न्याय प्रणाली को अधिक नुकसान पहुंचाएगी तथा कानून की प्रभावकारिता में जनता के विश्वास को कम करेगी.” सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार द्वारा दायर की गई पुर्निवचार याचिका पर गौर करने पर सहमत हो गई थी और नोटिस जारी किया था, जो सजा की मात्रा तक सीमित था.

शीर्ष अदालत ने पूर्व में सिद्धू से उस अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें कहा गया था कि मामले में उनकी दोषसिद्धि केवल जानबूझकर चोट पहुंचाने के छोटे अपराध के लिए ही नहीं होनी चाहिए थी. सिद्धू ने 25 मार्च को शीर्ष अदालत से कहा था कि उन्हें दी गई सजा की समीक्षा से संबंधित मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने का आग्रह करने वाली याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग है. नोटिस का दायरा बढ़ाने का आग्रह करने वाली याचिका के जवाब में सिद्धू ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सामग्री का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद सजा की अवधि तक इसके दायरे को सीमित कर दिया है.

जवाब में कहा गया था, “यह अच्छी तरह से तय है कि जब भी यह अदालत सजा को सीमित करने के लिए नोटिस जारी करती है, तब तक केवल उस प्रभाव के लिए दलीलें सुनी जाएंगी जब तक कि कुछ असाधारण परिस्थिति/सामग्री अदालत को नहीं दिखाई जाती है. यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि वर्तमान आवेदनों की सामग्री केवल खारिज किए गए तर्कों को दोहराती है और इस अदालत से सभी पहलुओं पर हस्तक्षेप करने के लिए कोई असाधारण सामग्री नहीं दिखाती है.’’ इसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत ने मेडिकल साक्ष्य सहित रिकॉर्ड में मौजूद सभी सबूतों का अध्ययन किया, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि गुरनाम सिंह की मौत के कारण का पता नहीं लगाया जा सका.

सिद्धू ने कहा था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि “मौत प्रतिवादी के एक ही आघात से हुई थी (यह मानते हुए कि घटना हुई थी) और इस अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला कि यह भादंसं की धारा 323 के तहत आएगा.” शीर्ष अदालत ने 15 मई 2018 को सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराने तथा मामले में तीन साल कैद की सजा सुनाने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया था लेकिन इसने उन्हें एक वरिष्ठ नागरिक को चोट पहुंचाने का दोषी ठहराया था.

शीर्ष अदालत ने सिद्धू के सहयोगी रूंिपदर सिंह संधू को भी सभी आरोपों से यह कहते हुए बरी कर दिया था कि दिसंबर 1988 में अपराध के समय सिद्धू के साथ उनकी उपस्थिति के बारे में कोई भरोसेमंद सबूत नहीं है. बाद में सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर पुर्निवचार याचिका पर गौर करने के लिए सहमत हुई थी.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, सिद्धू और संधू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला में शेरांवाला गेट क्रॉसिंग के पास एक सड़क के बीच में खड़ी एक जिप्सी में थे. उस समय गुरनाम सिंह और दो अन्य लोग पैसे निकालने के लिए बैंक जा रहे थे. जब वे चौराहे पर पहुंचे तो मारुति कार चला रहे गुरनाम सिंह ने जिप्सी को सड़क के बीच में पाया और उसमें सवार सिद्धू तथा संधू को इसे हटाने के लिए कहा. इससे दोनों पक्षों में बहस हो गई और बात हाथापाई तक पहुंच गई. गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई.

सितंबर 1999 में निचली अदालत ने सिद्धू को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था. हालांकि, उच्च न्यायालय ने फैसले को उलट दिया था और दिसंबर 2006 में सिद्धू तथा संधू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया था. इसने उन्हें तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी और उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.

कानून का सम्मान करूंगा : सिद्धू ने एक साल की सजा सुनाए जाने के बाद कहा

उच्चतम न्यायालय द्वारा एक साल के कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि वह ”कानून का सम्मान करेंगे.” सिद्धू महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए पटियाला में थे. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “कानून का सम्मान करूंगा….”

न्यायालय के फैसले के बाद गुरनाम सिंह के परिवार ने ईश्वर को दिया धन्यवाद
नवजोत सिंह सिद्धू को एक साल के कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार ने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया. फैसले पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर गुरनाम सिंह की बहु परवीन कौर ने कहा, ‘‘हम बाबा जी (भगवान) का शुक्रिया अदा करते हैं. हमने इसे बाबाजी पर छोड़ दिया था. बाबाजी ने जो किया सही किया.’’ उन्होंने और कुछ कहने से इनकार कर दिया. परिवार पटियाला शहर से पांच किलोमीटर दूर घलोरी गांव में रहता है. गुरनाम सिंह के पोते सैबी सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘‘हम भगवान के शुक्रगुजार हैं.’’

कारावास की सजा के बावजूद चुनाव लड़ सकते हैं सिद्धू

भारत के चुनावी कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए एक कानूनी विशेषज्ञ ने कहा कि एक साल के कारावास की सजा सुनाए जाने के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू भविष्य में चुनाव लड़ सकेंगे. जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 की धारा 8 का हवाला देते हुए लोकसभा के पूर्व महासचिव पी. डी.टी. आचारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘अगर दो साल या उससे ज्यादा कारावास की सजा होती, तो वह अगले छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाते.’’

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