विपक्ष शासित राज्यों में मतदाताओं की संख्या घटाने के लिये SIR का हो रहा इस्तेमाल : योगेंद्र यादव

कोलकाता. चुनाव विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने रविवार को दोहराया कि बिहार और पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) इस कवायद को बड़े पैमाने पर शुरू किए जाने से पहले एक परीक्षण मात्र है.

यहां भारत सभा हॉल में एक बैठक को संबोधित करते हुए यादव ने दावा किया कि भाजपा 2026 के बंगाल चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी और मतदाताओं की संख्या कम करने के लिए एसआईआर प्रक्रिया का इस्तेमाल एक साधन के रूप में कर रही है.
उन्होंने हिंदी में कहा, “मैंने शुरू से ही कहा है कि एसआईआर बंगाल पर केंद्रित है. चूंकि बिहार चुनाव कुछ ही महीने दूर थे, इसलिए निर्वाचन आयोग ने एसआईआर को लागू करने के लिए राज्य को परीक्षण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया. अब भाजपा बंगाल में पूरी ताकत झोंकना चाहती है.” यादव ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अतीत में कोई प्रभाव छोड़ने में विफल रहने के बाद, भाजपा अब ऐसे राज्यों में मतदाताओं की संख्या कम करने के लिए अंतिम उपाय के रूप में एसआईआर का उपयोग करने पर तुली हुई है. उन्होंने बंगाल में एसआईआर कवायद को देश में अब तक का सबसे बड़ा मताधिकार हनन बताया.

उन्होंने कहा, “एसआईआर एक वोटबंदी कवायद है, जिसका उद्देश्य भारत के उन वयस्क मतदाताओं को कमजोर करना और उन्हें मताधिकार से वंचित करना है, जिन्होंने वैध मतदाता के रूप में नामांकन के लिए 2002 के समय को मानकर पिछले चुनावों में मतदान किया था.” विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के इस दावे का जिक्र करते हुए कि एसआईआर के बाद एक करोड़ मतदाता हट सकते हैं, यादव ने कहा, “दुनिया में नहीं तो कम से कम पश्चिम बंगाल में भारत में सबसे बड़ा मताधिकार हनन देखने को मिलेगा.”

एसआईआर के लिए राज्यों के चयन के मानदंडों पर सवाल उठाते हुए यादव ने कहा कि अगर निर्वाचन आयोग सीमा पार करके देश में बसने वाले घुसपैठियों को लेकर चिंतित था, तो “उन्होंने असम को पहले राज्य के रूप में क्यों छोड़ दिया? क्योंकि असम में विपक्षी सरकार नहीं है?” निर्वाचन आयोग ने 27 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल और आठ अन्य राज्यों तथा तीन केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर की घोषणा की, जबकि बिहार में यह प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है.

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