सुशील मोदी ने आदिवासियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखने की वकालत की

नयी दिल्ली. भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने उनकी अध्यक्षता में हुई एक संसदीय समिति की बैठक में समान नागरिक संहिता बनने की स्थिति में पूर्वोत्तर एवं अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने की वकालत की. वहीं, कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस विवादित मुद्दे पर विचार-विमर्श शुरू करने के विधि आयोग के कदम पर सवाल उठाया. सूत्रों ने यह जानकारी दी.

सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस, द्रमुक सहित ज्यादातर विपक्षी दलों के सदस्यों ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जोर दिये जाने को अगले लोकसभा चुनाव से जोड़ा . वहीं, शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि कई देशों में समान नागरिक संहिता है और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों एवं समुदायों की चिंताओं पर भी ध्यान देने को कहा. राउत ने इस विषय पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू करने के समय को लेकर भी सवाल उठाये.

कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा और द्रमुक सांसद पी विल्सन ने यूसीसी पर लोगों और अन्य हितधारकों से सुझाव आमंत्रित करने के विधि आयोग के कदम पर सवाल उठाते हुए अलग-अलग लिखित बयान सौंपा. बैठक में विधि आयोग का प्रतिनिधित्व उसके सदस्य सचिव के विस्वाल ने किया. तन्खा और विल्सन ने कहा कि ‘परिवार कानून में सुधार को लेकर 31 अगस्त 2018 के विधि आयोग के परिचर्चा पत्र को देखा है और इसमें यूसीसी को इस स्तर पर न तो जरूरी और न ही वांछनीय बताया गया है.

कांग्रेस के मणिकम टैगोर ने इस कदम की मंशा पर सवाल उठाते हुए इसे आगामी चुनाव से जोड़ा. भाजपा के महेश जेठमलानी ने हालांकि यूसीसी की पुरजोर वकालत की और संविधान सभा में इस विषय पर हुई चर्चा का हवाला दिया. सूत्रों ने बताया कि विधि से संबंधित संसदीय समिति के प्रमुख सुशील मोदी ने पूर्वोत्तर, अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों को किसी भी प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने की हिमायत की.

सूत्रों ने बताया कि समिति की बैठक में इस ओर ध्यान दिलाया गया था कि कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में बिना उनकी सहमति के केंद्रीय कानून लागू नहीं होते हैं. उन्होंने बताया कि बैठक में 31 सदस्यीय समिति के 17 सदस्य मौजूद थे. विधि आयोग के अधिकारियों ने कहा कि 13 जून के बाद से अब तक विचार- विमर्श के दौरान 19 लाख सुझाव प्राप्त हुए हैं. यह कवायद 13 जुलाई तक जारी रहेगी.

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