PM की अध्यक्षता वाली समिति ने नए CIC के चयन के लिए बैठक की, राहुल गांधी ने दिया असहमति पत्र

नयी दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने बुधवार को अगले मुख्य सूचना आयुक्त और आठ सूचना आयुक्तों के चयन के लिए बैठक की. बताया जा रहा है कि समिति ने मुख्य सूचना आयुक्त और आठ सूचना आयुक्तों की नियुक्ति पर निर्णय ले लिया है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हालांकि असहमति पत्र दिया है. डेढ़ घंटे से अधिक चली यह बैठक प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई, जिसमें गांधी और गृह मंत्री अमित शाह उपस्थित थे.

सूत्रों के अनुसार, विपक्ष के नेता ने नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों के बारे में अधिक जानकारी मांगी तथा उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त और आठ अन्य सूचना आयुक्तों के चयन के लिए अपनाए गए मानदंड पर सवाल उठाए. सूत्रों ने बताया कि चयन प्रक्रिया से असंतुष्ट होकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपना असहमति पत्र दिया. नियुक्तियों के निर्णय के संबंध में जानकारी नहीं मिल सकी है.

सरकार ने एक दिसंबर को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया था कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली समिति इन पदों के लिए नामों का चयन और सिफारिश करने के लिए 10 दिसंबर को बैठक कर सकती है. सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 12 (3) के तहत, प्रधानमंत्री समिति के अध्यक्ष होते हैं, जिसमें विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल होते हैं. यह समिति मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए नामों का चयन और सिफारिश करती है.

अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्त होते हैं, जो आवेदकों द्वारा उनके आवेदनों पर सरकारी अधिकारियों के असंतोषजनक आदेशों के विरुद्ध दायर शिकायतों और अपीलों का निपटारा करते हैं. सीआईसी की वेबसाइट के अनुसार, उसके पास 30,838 लंबित मामले हैं. वहीं आयोग में केवल दो सूचना आयुक्त – आनंदी रामंिलगम और विनोद कुमार तिवारी हैं, तथा आठ पद रिक्त हैं. हीरालाल सामरिया का मुख्य सूचना आयुक्त के तौर पर कार्यकाल 13 सितंबर को पूरा हुआ था. वर्ष 2014 के बाद से ऐसा सातवीं बार हुआ, जब संबंधित शिकायतों और अपीलों पर निर्णय देने वाला सर्वोच्च अपीलीय प्राधिकरण बिना प्रमुख के काम कर रहा है.

मुख्य निर्वाचन आयुक्त संबंधी समिति को लेकर प्रधानमंत्री पर भरोसा क्यों नहीं किया जा सकता: प्रसाद

कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली चयन समिति से प्रधान न्यायाधीश को बाहर रखने पर बुधवार को सरकार को आड़े हाथ लिया, जिस पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली चुनी हुई सरकार पर ‘न्यूक्लियर बटन’ का भरोसा किया जा सकता है, तो इन नियुक्तियों के समय ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता.

चुनाव सुधारों पर लोकसभा में चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के वेणुगोपाल ने दावा किया कि हाल के वर्षों में निर्वाचन आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया था कि निष्पक्ष चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग का तटस्थ होना जरूरी है. वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ने इसके उलट किया और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) एवं निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) के चयन की समिति से प्रधान न्यायाधीश को बाहर कर दिया. कांग्रेस सांसद ने कहा कि कानून मंत्री को इस पर जवाब देना चाहिए.

उनके बाद पूर्व कानून मंत्री और भाजपा सांसद प्रसाद ने कहा, ‘‘जब प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार पर न्यूक्लियर बटन का भरोसा किया जा सकता है, तो एक अच्छे सीईसी या ईसी को चुनते समय ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता.’’ उन्होंने कहा कि जब संसद ने अपनी समझ से चयन समिति के संबंध में कानून पारित किया है, जिसमें प्रधान न्यायाधीश को शामिल नहीं किया गया है, तो न्यायपालिका को हर चीज़ में क्यों शामिल किया जाना चाहिए.

प्रसाद ने दावा किया कि वेणुगोपाल भी इस बात से सहमत थे कि उच्चतम न्यायालय की पीठ द्वारा प्रस्तावित चयन समिति सिर्फ एक अंतरिम व्यवस्था थी. भाजपा नेता का न्यूक्लियर बटन से संकेत देश द्वारा अत्यंत असामान्य स्थिति में परमाणु हथियार चलाने की अनुमति देने के निर्णय से था.

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