शाही परिवार की संपत्तियां बेचकर रेलवे लाइन के ख्वाब को पूरा करने वाले राजा
कोच्चि. अभी यह बहस खत्म नहीं हुई है कि क्या केरल प्रस्तावित सिल्वर लाइन सेमी हाईस्पीड रेल गलियारे का भारी भरकम बजट वहन कर सकता है लेकिन राज्य सरकार ने यह साफ कर दिया है कि वह करोड़ों रुपये की इस परियोजना को किसी भी कीमत पर नहीं रोकेगी.
एक सदी पहले भी यहां इसी प्रकार की स्थिति पैदा हुई थी, जब बुनियादी ढांचे संबंधी एक परियोजना ने एक रियासत को फिक्रमंद कर दिया था और तब दूरदर्शी राजा ने अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए अपने महल के हाथियों का सोने का साजो सामान बेचकर निधि अर्जित की थी. जब छह जुलाई 1902 को पहली यात्री ट्रेन नव निर्मित षोरणूर-कोचीन रेलवे लाइन से गुजरी, तो इसके पीछे तत्कालीन राजा की कड़ी मशक्कत थी, जिन्होंने अपनी रियासत में ट्रेन दौड़ते हुए देखने का ख्वाब देखा था.
यह प्रगतिशील राजा कोई और नहीं, बल्कि कोचीन के तत्कालीन महाराजा राम वर्मा पंचदश थे. ऐसा बताया जाता है कि जब वह अपनी छोटी-सी रियासत को षोरणूर से जोड़ने का प्रस्ताव लेकर अंग्रेजों के पास गए तो उन्होंने उनकी खिल्ली उड़ायी थी. षोरणूर की सीमा ब्रिटिश जिलाधिकारी द्वारा शासित मालाबार की तत्कालीन रियासत के साथ लगती थी.
ब्रितानियों ने राजा और उनके प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया था क्योंकि उन्हें लगता था कि कोचीन जैसी रियासत रेलवे लाइन निर्माण का बजट वहन नहीं कर सकती. 19वीं सदी में भी इसका बजट लाखों रुपये में था. कोच्चि नगर निगम द्वारा प्रकाशित एक स्मारिका के अनुसार, वर्मा ने यहां तिरुपुणिथुरा में मशहूर श्री पूर्णाथरईसा मंदिर में रखे महल के हाथियों के ‘‘सोने के 14-15 साजोसामान’’ बेचकर पर्याप्त निधि जुटाकर अंग्रेजों को हैरत में डाल दिया था. श्री पूर्णाथरईसा तत्कालीन कोचीन राजाओं के कुलदेवता थे.
रेलवे लाइन के लिए पक्का इरादा रखने वाले राजा ने आसपास के कुछ मंदिरों के आभूषण भी बेच दिए थे और महल का मुद्रा भंडार भी दान कर दिया था. स्मारिका में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, ‘‘उस समय मद्रास से षोरणूर तक एक रेलवे लाइन थी. कोचीन के लोगों को भी ट्रेन की आवाज सुननी पसंद थी लेकिन क्या किया जाए? पैसा नहीं था.’’ स्मारिका में कहा गया है कि कोचीन के महाराजा इसका समाधान लेकर आए और रेलवे लाइन के लिए निधि इकट्ठा की.
इसमें कहा गया, ‘‘ उस समय के दौरान श्री पूर्णथ्रईसा मंदिर में 15 ‘थंगा नेट्टीपट्टम’ (सोने के मुकुट) थे. उनमें से 14 मुकुट, पास के कुछ मंदिरों के गहने और महल के पैसे का इस्तेमाल रेलवे लाइन के लिए किया गया था. इस प्रकार, पहली भाप ट्रेन छह जुलाई, 1902 को यात्रियों के साथ एर्नाकुलम पहुंची.’’ उनकी आत्मकथा ‘‘सर श्री राम वर्मा रार्जिष’ में उनके पोते आई के के मेनन ने कहा कि राजा ने रेलवे लाइन के सपने को साकार करने के लिए 50 लाख रुपये दिए थे.
प्रख्यात इतिहासविद एम जी शशिभूषण ने ‘पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘राजा राम वर्मा पंचदश असल में एक गुमनाम नायक हैं. वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने चालक्कुडी वन ट्रामवे के निर्माण की राह प्रशस्त की, जिसे लकड़ियों और यात्रियों के परिवहन के लिए बनाया गया. वह चालक्कुडी शहर के भी निर्माता थे.’’ केरल विधानसभा में त्रिपुनिथुरा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस विधायक के. बाबू ने कहा कि कोचीन के राजाओं को उनकी विनम्रता, सादगीपूर्ण जीवनशैली और लोगों के लिए उठाए गए कल्याणकारी कदमों के लिए जाना जाता है.
उन्होंने बताया कि कोचीन के राज परिवार अन्य तत्कालीन रियासतों के अपने समकक्षों के मुकाबले ज्यादा अमीर नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन फिर भी उन्होंने लोगों की भलाई एवं विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए, राम वर्मा का हाथियों का साजोसामान समेत शाही परिवार की संपत्तियां बेचकर रेलवे लाइन के लिए पैसे जुटाने का कदम इसके उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है.’’ वाम सरकार की महत्वाकांक्षी सिल्वर लाइन रेल परियोजना के लिए अनुमानित 64,000 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है.