बजट में ऐसा कुछ नहीं जो रोजगार बढ़ाए, आयकर प्रणाली अब भी जटिल

नयी दिल्ली. बजट में पूंजीगत व्यय अच्छा-खासा बढ़ाकर आर्थिक वृद्धि को गति देने की बात कही गयी है, लेकिन वास्तव में जिस तरीके से इस मद में राशि का आवंटन किया गया है, उसमें कई खामियां है और यह अर्थव्यवस्था में पर्याप्त तेजी लाने में असमर्थ है. साथ ही कर मोर्चे पर कुछ सुधार के बाद भी कई ‘स्लैब’ और विकल्पों के साथ व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था अब भी जटिल बनी हुई है. पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने यह बात कही है.
उन्होंने यह भी कहा कि बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे रोजगार बढ़े या महंगाई पर काबू पाने में मदद मिले. यह अलग बात है कि हाल में खुदरा मुद्रास्फीति कुछ कम हुई है, लेकिन यह अब भी ऊंची बनी हुई है और इसपर ध्यान रखने की जरूरत है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में पूंजीगत व्यय 33 प्रतिशत बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया है. वित्त वर्ष 2022-23 के बजट अनुमान में यह 7.5 लाख करोड़ रुपये था.
गर्ग ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘बजट में पूंजीगत व्यय अच्छा-खासा बढ़ाकर वृद्धि को गति प्रदान करने की बात कही गयी है. हालांकि, दक्षता के स्तर पर इसमें कई गंभीर मुद्दे हैं. पूंजीगत व्यय में एक हिस्सा (1.30 लाख करोड़ रुपये) राज्यों को दिया जाने वाला कर्ज है. यह कर्ज राज्यों को पूंजीगत व्यय के रूप में दिया जाता है. यानी यह पूंजीगत व्यय के स्तर पर कोई इजाफा नहीं कर रहा है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसी प्रकार पूंजीगत व्यय में अच्छा खासा हिस्सा वह है, जो सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजी व्यय के स्थान पर है. जैसे इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (आईआरएफसी) जिस पूंजी की व्यवस्था बाजार से करती थी, उसका वित्तपोषण इस बार पूंजीगत व्यय के रूप में बजट से किया गया है. आईआरएफसी के लिये पिछले साल बजट में आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधन (आईईबीआर) के रूप में 66,500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य था. जबकि कंपनी इस साल बाजार से कुछ नहीं उठाएगी.
आईआरएफसी जो स्वयं से पूंजी जुटाकर व्यय करती, उसकी जगह बजट में रेलवे के बजटीय पूंजीगत व्यय आवंटन को 2022-23 के बजटीय अनुमान 1.37 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2023-24 में 2.40 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है.’’ उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में पूंजीगत व्यय दो माध्यमों…बजट और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के आंतरिक और अतिरिक्त-बजटीय संसाधनों से होता है. आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधन कंपनी की अपने स्तर पर पूंजी जुटाने की क्षमता को बताता है.
गर्ग ने कहा कि इसके अलावा पूंजीगत व्यय में 30,000 करोड़ रुपये पूंजीगत समर्थन के रूप में पेट्रोलियम विपणन कंपनियों को देने का प्रस्ताव है. यह कुछ और नहीं बल्कि संभवत: एक तरह से राजस्व समर्थन है जो इक्विटी के रूप में एलपीजी और तेल उत्पादों की बिक्री पर हुए नुकसान की भरपाई को पूरा करने के लिये है. पूर्व वित्त सचिव ने कहा कि इस प्रकार देखा जाए, तो वास्तव में पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष के बजटीय अनुमान 7.5 लाख करोड़ रुपये से कम बैठेगा.
उन्होंने यह भी कहा कि वास्तव में केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय और विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि में सीधा संबंध नहीं है. पिछले साल के बहुत अधिक पूंजीगत व्यय के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र में केवल 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. आयकर को लेकर बजट में किये गये प्रस्ताव के बारे में पूछे जाने पर गर्ग ने कहा, ‘‘सरकार ने कई सारे स्लैब और विकल्पों के साथ व्यक्तिगत आयकर व्यवस्था को अधिक जटिल बना रखा है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब व्यक्तिगत कर प्रावधान के तहत सात लाख रुपये की सकल आय वाले को कोई कर नहीं देना होगा. उन्हें लोक भविष्य निधि (पीपीएफ), एलआईसी प्रीमियम जैसी बचत की जरूरत नहीं होगी. लेकिन सात लाख रुपये से 15 लाख रुपये तक की आय वाले को विकल्प चुनने पड़ेंगे. पुन: जिन लोगों की आय 15 लाख रुपये से अधिक है और जिन्होंने मकान में निवेश कर रखा है औेर अच्छा खासा बचत तथा निवेश है, वे नई कर व्यवस्था में नहीं जाएंगे.’’
उल्लेखनीय है कि 2023-24 के बजट में किये गये प्रस्ताव के तहत नई कर व्यवस्था में सात लाख रुपये तक की आय पर अब कोई कर नहीं लगेगा. इसके अलावा पहली बार नई कर व्यवस्था के तहत भी 50,000 रुपये की मानक कटौती के लाभ का प्रस्ताव किया गया है. हालांकि, निवेश और आवास भत्ता जैसी छूट वाली पुरानी कर व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया गया है. एक अन्य सवाल के जवाब में गर्ग ने कहा कि बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे रोजगार बढ़े या महंगाई नियंत्रण में योगदान हो. यह अलग बात है कि हाल में खुदरा महंगाई कुछ कम हुई है, लेकिन यह अब भी ऊंची बनी हुई है.
विनिवेश लक्ष्य में कमी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि सरकार ने एक तरह से निजीकरण कार्यक्रम को छोड़ दिया है. संभवत: सरकार के लिये बैंकों और अन्य उद्यमों में हिस्सेदारी बेचना राजनीतिक रूप से कठिन लग रहा है.’’ उल्लेखनीय है कि सरकार ने अगले वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में विनिवेश लक्ष्य कम कर 51,000 करोड़ रुपये रखा है. साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए विनिवेश लक्ष्य को 65,000 करोड़ रुपये से घटाकर 50,000 करोड़ रुपये का संशोधित लक्ष्य रखा गया है.
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