एनईपी में त्रि-भाषा नीति पूरे देश के लिए अच्छी है: रीजीजू

भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवादी होना नहीं है: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन

तिरुवनंतपुरम/चेन्नई. केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू ने बृहस्पतिवार को कहा कि नयी शिक्षा नीति (एनईपी) में त्रि-भाषा नीति पूरे देश के लिए अच्छी है. एनईपी में त्रि-भाषा नीति पर जारी गंभीर बहस के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कुछ गलतफहमी है या कुछ लोग जानबूझकर ”राजनीति करने का प्रयास कर रहे हैं”.

केंद्रीय संसदीय कार्य एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने यहां संवाददाताओं से कहा, ”राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रि-भाषा नीति पूरे देश के लिए अच्छी है.” रीजीजू दक्षिणी क्षेत्र के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (पीएमजेवीके) पर क्षेत्रीय समीक्षा बैठक और प्रशिक्षण कार्यशाला में शामिल होने के लिए तिरुवनंतपुरम में थे.

रीजीजू ने कहा, ”श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन हिन्दी उनकी मातृभाषा नहीं है, उनकी मातृभाषा गुजराती है. हमारे गृह मंत्री अमित शाह जी की मातृभाषा भी गुजराती है. शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान की मातृभाषा उड़िया है और मेरी मातृभाषा अरुणाचली है, लेकिन हम अपने देश के हितों को सर्वोपरि रखते हुए एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं.” उन्होंने कहा, ”इसलिए हमें देश को धर्म या भाषा के आधार पर नहीं बांटना चाहिए.”

रीजीजू ने कहा, ”हम सभी भारतीय हैं; आइए हम सब मिलकर काम करें और प्रधानमंत्री मोदी जी ने लगातार कहा है कि भारत में हर क्षेत्र, हर समुदाय और हर कोई समान है तथा सभी को समान संरक्षण और समान वरीयता दी जाएगी, इसलिए हमें देश को जाति, पंथ, धर्म या समुदाय या राज्य या क्षेत्र के आधार पर नहीं बांटना चाहिए.”

भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवादी होना नहीं है: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के अध्यक्ष एम के स्टालिन ने बृहस्पतिवार को कहा कि भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवादी होना नहीं है. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि ”असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी ही हिंदी कट्टरपंथी हैं” जो मानते हैं कि उनका अधिकार स्वाभाविक है लेकिन विरोध देशद्रोह है.

स्टालिन ने सोशल मीडिया में अपने पोस्ट में कहा, ” जब आप विशेषाधिकार के आदी हो जाते हैं तो समानता उत्पीड़न जैसी लगती है. मुझे याद है जब कुछ कट्टरपंथियों ने हमें तमिलनाडु में तमिलों के उचित स्थान की मांग करने के ‘अपराध’ के लिए अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी करार दिया.” उन्होंने कहा, ” गोडसे की विचारधारा का महिमामंडन करने वाले लोग उस द्रमुक और उसकी सरकार की देशभक्ति पर सवाल उठाने का दुस्साहस करते हैं, जिसने चीनी आक्रमण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और करगिल युद्ध के दौरान सबसे अधिक धनराशि का योगदान दिया, जबकि उनके वैचारिक पूर्वज वही हैं जिन्होंने ‘बापू’ गांधी की हत्या की थी.”

साथ ही उन्होंने कहा, ” भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवाद नहीं है. क्या आप जानना चाहते हैं कि अंधराष्ट्रवाद क्या होता है? अंधराष्ट्रवाद 140 करोड़ नागरिकों पर शासन करने वाले तीन आपराधिक कानूनों को एक ऐसी भाषा देना है जिसे तमिल लोग न बोल सकते हैं और न ही पढ़कर समझ सकते हैं. अंधराष्ट्रवाद उस राज्य के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करना है जो देश में सबसे अधिक योगदान देता है और ‘एनईपी’ नामक जहर को निगलने से इनकार करने पर उसे उचित हिस्सा देने से मना किया जाता है.” उन्होंने कहा, ”किसी भी चीज को थोपने से दुश्मनी पैदा होती है, दुश्मनी एकता को खतरे में डालती है. इसलिए, असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी ही हिंदी के कट्टरपंथी हैं जो मानते हैं कि उनका हक स्वाभाविक है लेकिन हमारा विरोध देशद्रोह है.”

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