दोबारा आतंकवाद को जड़े नहीं जमाने नहीं देंगे: ग्रामीण

जम्मू. जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सुदूरवर्ती महोर इलाके में स्थित छोटा सा कस्बा कभी आतंकवाद का गढ़ था . लेकिन पिछले दिनों वहां के ग्रामीणों ने बहादुरी का परिचय देते हुए भारी हथियारों और गोलाबारूद से लैस लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकवादियों को पकड़कर सुरक्षार्किमयों को सौंपा है. ग्रामीणों का कहना है कि अब वे अपने क्षेत्र में फिर से आतंकवाद को नहीं पनपने देंगे.

ग्रामीणों द्वारा पकड़े गए आतंकवादियों की पहचान लश्कर कमांडर तालिब हुसैन शाह के तौर पर की गई जिसे उसके गृह जिले राजौरी में हुए कई धमाकों का मास्टरमाइंड माना जाता है. वहीं दूसरे आतंकवादी की पहचान उसके सहयोगी फैसल अहमद डार के तौर पर की गई जो दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले का रहने वाला है. दोनों शनिवार रात को सुरक्षाबलों से बचकर आश्रय लेने गांव में गए थे.
छह निहत्थे करीबी रिश्तेदार पहाड़ी पर बसे गांव में हथियारों से लैस इन दो आतंकवादियों से भिड़ गए. इस गांव तक पैदल करीब दो घंटे की चढ़ाई कर पहुंचा जा सकता है.

मोहम्मद युसूफ ने कहा,‘‘जब मैं काम करके शनिवार की शाम को अपने ‘ढोक’ (गांव) पहुंचा, तो मैंने अपने घर में दो अज्ञात लोगों को देखा, जिससे मुझे आशंका हुई. उन्होंने अपना परिचय कारोबारी के तौर पर दिया. उन्होंने मुझे फोन बंद करने और जमीन पर रखने का आदेश दिया. उन्होंने मुझे बाहर जाने से भी रोका.’’ युसूफ ने बताया कि अंधेरा होने की वजह से उन्होंने चालाकी की और एक हाथ से मोबाइल फोन जमीन पर रखने के साथ दूसरे हाथ से उठा लिया और उनसे शौच के लिए बाहर जाने देने की गुहार लगाई.

उन्होंने बताया, ‘‘ मकान से बाहर आने के बाद मैंने अपने भाई को फोन किया और कहा कि ‘‘यह संभवत: हमारी आखिरी बातचीत है क्योंकि कुछ लोग मेरे घर आए हैं और उन्होंने हमारे पूरे कुनबे की जानकारी जुटाई हुई है. संभवत: वे हमारी हत्या कर देंगे.’’ युसूफ ने बताया कि फोन कॉल से घबराए उनके भाई नजीर अहमद ने अन्य रिश्तेदारों, रोशन दीन, शमसुद्दीन, मुश्ताक अहमद और मोहम्मद को संपर्क किया. उन्होंने बताया कि सभी रिश्तेदारों ने मिलकर आतंकवादियों से मोर्चा लेने का फैसला किया क्योंकि सुरक्षा बलों को घने जंगलों से गुजर कर गांव तक आने में काफी समय लगता.

अहमद ने बताया, ‘‘हम मौके पर देर रात पहुंचे, हमने देखा कि आतंकवादी घर में सोए हैं जबकि युसूफ भी वहीं पर लेटा है. हमने उन्हें नहीं छेड़ा और सुनिश्चित किया कि सुबह हो जाए ताकि वे दिन के उजाले में भाग नहीं सके.’’ इकबाल ने बताया कि छह में से चार लोग रविवार सुबह परिसर के अंदर गए जबकि दो बाहर निगरानी के लिए रूक गए. जैसे ही उन्हें पता चला कि आतंकवादियों ने बैग में अपने हथियार छिपाए हैं तो सबसे पहले उस बैग को आतंकवादियों से दूर करने का फैसला किया गया.

उन्होंने कहा, ‘‘हमने रणनीति के तहत भारी असलहे और गोलाबारूद से भरे बैग को पहले छीना और फिर उन पर टूट पड़े. शाह ने प्रतिवाद किया और बचने की कोशिश की और घर में करीब एक घंटे तक हुई हाथापाई के दौरान वह दरवाजे तक भी पहुंच गया था. मुश्ताक ने आतंकवादी को कई चांटें मारे और हमने उसे काबू में किया.’’ इकबाल ने कहा कि वे अपने डर पर इसलिए काबू कर सके क्योंकि सेना और पुलिस नियमित तौर पर उनसे संवाद करती रहती है और स्थिति को संभालने के लिए प्ररेणादायक व्याख्यान देती है.
मुश्ताक ने कहा, ‘‘माहोर एक समय आतंकवाद का गढ़ था और लोगों ने तब राहत की सांस ली थी जब सेना ने करीब एक दशक पहले इसे खत्म किया. हम अपनी सेना और पुलिस के साथ हैं और आतंकवाद को एक बार फिर सिर उठाने नहीं देंगे.’’

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