कुतुब मीनार परिसर में मूर्तियों को पुन: स्थापित करने संबंधी अर्जी का एएसआई ने किया विरोध

नयी दिल्ली. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कुतुब मीनार परिसर के अंदर ंिहदू और जैन देवताओं की मूर्तियों को पुन: स्थापित करने के अनुरोध वाली एक याचिका का मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत में विरोध करते हुए कहा कि यह उपासना स्थल नहीं है और स्मारक की मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता.

यह टिप्पणी एएसआई की ओर से की गई जबकि जबकि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश निखिल चोपड़ा ने कहा कि याचिका से उत्पन्न मुख्य मुद्दा ‘‘उपासना का अधिकार’’ है, और सवाल किया कि कोई भी व्यक्ति ऐसी किसी चीज की बहाली के लिए कानूनी अधिकार का दावा कैसे कर सकते हैं, जो 800 साल पहले हुई है. अतिरिक्त जिला न्यायाधीश निखिल चोपड़ा ने याचिका पर फैसला नौ जून के लिए सुरक्षित रख लिया.

एएसआई ने यह भी कहा कि ‘‘केंद्र संरक्षित’’ इस स्मारक में उपासना के मौलिक अधिकार का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति की दलील से सहमत होना कानून के विपरीत होगा. हालांकि, एएसआई ने यह भी कहा कि कुतुब परिसर के निर्माण में ंिहदू और जैन देवताओं की स्थापत्य सामग्री और उत्कीर्ण छवियों का पुन: उपयोग किया गया था.

एएसआई ने कहा, ‘‘भूमि की स्थिति का किसी भी तरह से उल्लंघन करते हुए मौलिक अधिकार का लाभ नहीं उठाया जा सकता. संरक्षण का मूल सिद्धांत उस स्मारक में कोई नयी प्रथा शुरू करने की अनुमति नहीं देना है, जिसे कानून के तहत संरक्षित और अधिसूचित स्मारक घोषित किया गया है.’’ एएसआई ने कहा कि ऐसे किसी स्थान पर उपासना फिर से शुरू करने की अनुमति नहीं दी जाती, जहां स्मारक को संरक्षण में लेने के दौरान यह उपासना व्यवहार में नहीं थी.

उसने कहा, ‘‘कुतुब मीनार उपासना का स्थान नहीं है और केंद्र सरकार द्वारा इसके संरक्षण के समय से, कुतुब मीनार या कुतुब मीनार का कोई भी हिस्सा किसी भी समुदाय द्वारा उपासना के अधीन नहीं था.’’ इस बीच, दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अमानतुल्ला खान ने एएसआई के महानिदेशक को लिखे एक पत्र में कुतुब मीनार परिसर में ‘‘प्राचीन’’ कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में यह दावा करते हुए नमाज की अनुमति देने का अनुरोध किया है कि इसे एएसआई अधिकारियों ने रोका था. पिछले सप्ताह लिखे गए पत्र पर एएसआई की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है.

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश निखिल चोपड़ा के समक्ष सुनवायी के दौरान एएसआई के वकील सुभाष गुप्ता ने कहा कि कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में फारसी शिलालेख से यह बहुत स्पष्ट है कि उसे 27 मंदिरों के नक्काशीदार स्तंभों और अन्य वास्तुशिल्प से बनाया गया था.

अधिवक्ता ने कहा, ‘‘शिलालेख से स्पष्ट है कि इन मंदिरों के अवशेषों से मस्जिद का निर्माण किया गया था. लेकिन कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि मंदिरों को ध्वस्त करके सामग्री प्राप्त की गई थी. साथ ही, यह भी स्पष्ट नहीं है कि उन्हें उसी स्थल से हासिल किया गया था या बाहर से लाया गया था… ध्वस्तीकरण नहीं बल्कि निर्माण के लिए मंदिरों के अवशेष प्रयोग किये गए हैं.’’ गुप्ता ने कहा कि प्राचीन स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष (एएमएएसआर) अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत किसी स्मारक में उपासना शुरू की जा सके.

उन्होंने कहा, ‘‘कानून का उद्देश्य स्पष्ट है कि स्मारक को भावी पीढ़ी के लिए इसकी मूल स्थिति में संरक्षित किया जाना चाहिए. इसलिए, मौजूदा संरचना में कोई भी बदलाव एएमएएसआर अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन होगा और इस प्रकार इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलों के अनुसार, स्मारक 800 वर्षों से इसी स्थिति में है. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा हाल में हुआ है कि ऐसी चीजें सामने आ रही हैं.’’ सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि दक्षिण भारत में कई ऐसे स्मारक हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है और उपासना नहीं की जा रही है. न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘अब आप चाहते हैं कि स्मारक को एक मंदिर में बदल दिया जाए. मेरा सवाल यह है कि आप ऐसी किसी चीज की बहाली के लिए कानूनी अधिकार का दावा कैसे कर सकते हैं, जो 800 साल पहले हुई है.’’

इस पर याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘देवता की सम्पत्ति, हमेशा देवता की संपत्ति रहती है. यह कभी नहीं खोती और पूजा करना उनका ‘‘मौलिक अधिकार’’ है. उनकी दलील के बाद न्यायाधीश ने कहा कि मुख्य मुद्दा ‘‘उपासना का अधिकार’’ है. न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस अधिकार के समर्थन में क्या है? मूर्ति वहां मौजूद है या नहीं, यह मामला नहीं है.’’ सुनवाई के दौरान, एएसआई ने यह भी कहा कि जब परिसर का निर्माण किया गया था, तो सामग्री का इस्तेमाल बेतरतीब तरीके से किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप कुछ जगहों पर उकेरी आकृतियों को उल्टा कर दिया गया था.

भगवान गणेश की एक छवि दीवार के निचले हिस्से पर है और कहा जाता है कि इसे ग्रिल से संरक्षित किया गया है. भगवान गणेश की एक और छवि परिसर में उलटी स्थिति में पायी गई है. हालांकि, यह दीवार में अंत:स्थापित है, इसलिए, यह कहा जाता है कि इसे हटाना या ठीक करना संभव नहीं है.

अदालत एक मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव की ओर से वकील हरिशंकर जैन द्वारा दायर एक वाद को खारिज कर दिया था. उक्त वाद में दावा किया गया था कि मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 27 मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था और सामग्री का पुन: उपयोग करके परिसर के अंदर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को खड़ा किया गया था. जैन ने कहा कि प्राचीन काल से परिसर में भगवान गणेश की दो मूर्तियां हैं और उन्हें आशंका है कि एएसआई उन्हें वहां से हटाकर केवल कलाकृतियों के रूप में किसी राष्ट्रीय संग्रहालय में भेज देगा.

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