27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में भाजपा की वापसी तय, केजरीवाल, सिसोदिया सहित कई दिग्गज हारे

नयी दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार को जारी मतगणना के आए रुझानों से अब लगभग स्पष्ट हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी करने जा रही है। रुझानों के मुताबिक आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरंिवद केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित सत्तारूढ़ दल के कई अन्य प्रमुख नेता चुनाव हार गए हैं।

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक दोपहर एक बजे तक आए रुझानों में भाजपा दिल्ली की 70 में से 48 सीट पर निर्णायक बहुमत की ओर बढ़ती दिख रही है जबकि आप 22 सीट पर सिमटने के कगार पर है।
दिल्ली में पांच फरवरी को हुए चुनाव में 1.55 करोड़ पात्र मतदाताओं में से 60.54 प्रतिशत ने मतदान किया था।

भाजपा ने 1993 में दिल्ली में सरकार बनाई थी। उस चुनाव में उसे 49 सीट पर जीत मिली थी। अन्ना आंदोलन से नेता के रूप में उभरे अरंिवद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने 2015 में 67 सीट जीतकर सरकार बनाई और 2020 में 62 सीट जीतकर सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी।

इसके पहले 2013 के अपने पहले चुनाव में आप ने 31 सीट जीती थीं लेकिन वह सत्ता से दूर रह गई थी। बाद में कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। इस बार सत्ता की अग्रसर भाजपा 2015 के चुनाव में सिर्फ तीन सीट पर सिमट गई थी जबकि 2020 के चुनाव में उसके सीट की संख्या बढकर आठ हो गई थी।

वैकल्पिक और ईमानदार राजनीति के साथ भ्रष्टाचार पर प्रहार के दावे के साथ राजनीति में कदम रखने वाले केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को इस चुनाव से पहले कई आरोपों का भी सामना करना पड़ा और उसके कई नेताओं को जेल भी जाना पड़ा।

भाजपा ने शराब घोटाले से लेकर ‘शीशमहल’ बनाने जैसे आरोप लगाकर केजरीवाल और आप के कथित भ्रष्टाचार को इस चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इन विषयों पर लगातार हमले किए।
हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में भाजपा को मिली जीत कई मायनो में अहम है। आप संयोजक दिल्ली को विकास का ‘केजरीवाल मॉडल’ बताकर चुनाव मैदान में थे जबकि भाजपा ने इसके विरुद्ध विकास का ‘मोदी मॉडल’ पेश किया था।

इसके तहत भाजपा ने जहां अपने संकल्प पत्र में मुफ्त बिजली, पानी सहित आप सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने के साथ ही महिलाओं को 2500 रुपये का मासिक भत्ता और 10 लाख रुपये तक का ‘मुफ्त’ इलाज सहित कई अन्य वादे किए थे।

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