पीएमएलए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार उच्चतम न्यायालय पहुंची

नयी दिल्ली. छत्तीसगढ़ सरकार ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए बुधवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया और आरोप लगाया कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल गैर-भाजपा सरकार को डराने, परेशान करने तथा सामान्य कामकाज को बाधित करने के लिए किया जाता है. इसके साथ ही, छत्तीसगढ़ इस मामले में न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाला पहला राज्य बन गया है.

भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत अधिनियम को चुनौती देते हुए मूल मुकदमा दायर किया. यह अनुच्छेद किसी राज्य को केंद्र या किसी अन्य राज्य के साथ विवाद की स्थिति में सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख करने का अधिकार देता है.

इस प्रकार छत्तीसगढ़ पीएमएलए और इसके प्रावधानों को चुनौती देने वाला पहला राज्य बन गया है. इससे पहले, निजी व्यक्तियों और दलों ने विभिन्न आधारों पर कानून को चुनौती दी थी, लेकिन पिछले साल शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पीएमएलए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था.

इस मामले में कहा गया है कि राज्य सरकार को उसके अधिकारियों और राज्य के निवासियों की ओर से कई शिकायतें मिल रही हैं कि ईडी जांच की आड़ में उन्हें “यातना दे रही है तथा गाली-गलौज और मारपीट” कर रही है. याचिका में कहा गया है कि शक्तियों के “अत्यधिक दुरुपयोग” के कारण छत्तीसगढ़ को अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ से कहा कि यह मुद्दा संवैधानिक महत्व का है और इस पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है.
पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई चार मई को होगी.

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