अदालत ने मोहम्मद जुबैर से पूछताछ के लिए हिरासत की अवधि चार दिन बढ़ाई

नयी दिल्ली. दिल्ली की एक अदालत ने एक हिंदू देवता के खिलाफ 2018 में एक ‘आपत्तिजनक ट्वीट’ करने से जुड़े मामले में आॅल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर से पूछताछ के लिए हिरासत की अवधि मंगलवार को चार दिन के लिए बढ़ा दी. मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट स्रिग्धा सरवरिया ने दिल्ली पुलिस और आरोपी की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुनाया.

दिल्ली पुलिस ने जुबैर की हिरासत में पूछताछ की एक दिन की अवधि समाप्त होने के बाद उसे मंगलवार को सरवरिया के समक्ष पेश किया और आरोपी की हिरासत पांच दिन बढ़ाने का अनुरोध अदालत से किया. पुलिस ने अदालत से कहा कि आरोपी जांच एजेंसी के साथ सहयोग नहीं कर रहा और उस उपकरण के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उससे हिरासत में पूछताछ जरूरी है जिससे आरोपी ने ट्वीट किया था.

सुनवाई के दौरान मोहम्मद जुबैर की ओर से वकील ने अदालत में कहा कि आरोपी ने ट्वीट में जिस तस्वीर का इस्तेमाल किया था वह 1983 में आई ऋषिकेश मुखर्जी की हिंदी फिल्म ‘किसी से ना कहना’ की है और उस फिल्म पर रोक नहीं लगी थी. हालांकि, अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया.

न्यायाधीश ने तीन पन्नों के आदेश में कहा, ‘‘कथित ट्वीट को पोस्ट करने के लिए आरोपी मोहम्मद जुबैर द्वारा इस्तेमाल उसके मोबाइल फोन या लैपटॉप को उसके बताये अनुसार उसके बेंगलोर आवास से बरामद करना है और आरोपी ने अब तक सहयोग नहीं किया है, इसे ध्यान में रखते हुए आरोपी की चार दिन की पुलिस हिरासत की अनुमति दी जाती है क्योंकि आरोपी को बेंगलोर लेकर जाना है.’’ न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि जुबैर को दो जुलाई को अदालत में पेश किया जाए. अदालत ने जांच अधिकारी को नियमों के अनुसार आरोपी का मेडिकल कराने को भी कहा.

उन्होंने कहा, ‘‘नियमों के अनुसार कोविड-19 के दिशानिर्देशों का पालन किया जाए.’’ पुलिस ने अदालत में दलीलों के दौरान कहा कि आरोपी एक प्रवृत्ति का अनुसरण कर रहा था जिसमें उसने प्रसिद्धि पाने की कोशिश में धार्मिक ट्वीटों का इस्तेमाल किया. पुलिस ने कहा, ‘‘यह सामाजिक वैमनस्य पैदा करने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने का उसका जानबूझकर किया गया प्रयास था.’’ उसने कहा कि जुबैर की गिरफ्तारी के दौरान प्रक्रिया का पालन किया गया.

पुलिस ने कहा कि वह जांच में तो शामिल हुआ लेकिन सहयोग नहीं किया और उसके फोन से अनेक सामग्री हटा दी गयी है. आरोपी की ओर से अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने पुलिस की याचिका का विरोध किया और आरोप लगाया कि एजेंसी ने जुबैर को किसी और मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था लेकिन उसे हड़बड़ी में इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया.

ग्रोवर ने कहा, ‘‘गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अंदर यह अदालत उपलब्ध होती, लेकिन फिर भी जुबैर को एक ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जहां पुलिस ने उसकी सात दिन की हिरासत की मांग की.’’ उन्होंने कहा कि जिस ट्वीट की बात हो रही है, वह जुबैर ने 2018 में किया था. वकील ने कहा, ‘‘किसी ने पिछले दिनों 2018 के जुबैर के ट्वीट को पोस्ट कर दिया और यह मामला दायर किया गया. किसी गुमनाम ट्विटर हैंडल से यह पहला ट्वीट था जिसमें जुबैर के ट्वीट का उपयोग किया गया. एजेंसी गड़बड़ कर रही है.’’

ग्रोवर ने कहा, ‘‘वे दावा कर रहे हैं कि मैंने कथित तस्वीर के साथ छेड़छाड़ की. ट्वीट 2018 से है. 2018 से इस ट्वीट ने कोई बखेड़ा खड़ा नहीं किया. अनेक ट्विटर उपयोगकर्ताओं ने इस तस्वीर को साझा किया है. प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता.’’ ग्रोवर ने कहा कि उनकी टीम ने कल दाखिल रिमांड अर्जी की प्रतियों को एक आॅनलाइन टीवी चैनल से डाउनलोड किया और पुलिस ने अब तक उन्हें प्रति नहीं दी है.

उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है. वे मेरे (जुबैर के) लैपटॉप को बरामद करना चाहते हैं क्योंकि मैं एक पत्रकार हूं और इसमें कई संवेदनशील जानकारियां हैं.’’ दिल्ली पुलिस ने जुबैर को उसके एक ट्वीट से कथित रूप से धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में सोमवार को गिरफ्तार किया था. उसे कल रात एक ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया जिन्होंने उसे एक दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया.

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