अदालत ने विपक्षी दलों को ‘इंडिया’ नाम के इस्तेमाल के खिलाफ याचिका पर जवाब के लिए समय दिया

नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अनेक विपक्षी दलों को उस याचिका पर जवाब देने के लिए समय दिया जिसमें उन्हें अपने गठबंधन का संक्षिप्त नाम ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) इस्तेमाल करने से रोकने का अनुरोध किया गया है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र को भी जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया. याचिका में आरोप लगाया गया है कि विपक्षी दल ‘इंडिया’ संक्षिप्त नाम का इस्तेमाल कर ‘हमारे देश के नाम का अनुचित लाभ’ उठा रहे हैं.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने केंद्र सरकार की ओर से कहा, ”हमें अपना जवाब देने के एक सप्ताह से दस दिन का समय और चाहिए.” कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक समेत नौ राजनीतिक दलों की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि याचिका के खिलाफ ‘प्रारंभिक आपत्तियां’ हैं और उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे को पहले ही देख चुका है.
पिछली सुनवाई में उन्होंने कहा था कि याचिका विचारणीय नहीं है.

पीठ में न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा भी शामिल रहीं. पीठ ने मामले में सुनवाई के लिए चार जनवरी की तारीख तय की. याचिकाकर्ता गिरीश भारद्वाज ने उच्च न्यायालय में संपर्क किया था और 26 राजनीतिक दलों द्वारा संक्षिप्त नाम ‘इंडिया’ के इस्तेमाल और इसके साथ राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग पर भी रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी करने का अनुरोध किया था.

वकील वैभव सिंह के माध्यम से दायर याचिका के अनुसार इन दलों ने कहा है कि वे भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयानों का जिक्र किया.

याचिका में कहा गया है, ”हमारे देश के नाम का इस्तेमाल करके मिस्टर (राहुल) गांधी ने बहुत चतुराई से उनके गठबंधन के नाम को हमारे देश के नाम की तरह प्रस्तुत किया और यह दर्शाने का प्रयास किया कि राजग/भाजपा और माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हमारे ही देश से विरोध है जो ‘इंडिया’ है और गांधी के इस प्रयास ने आम जनता के मन में संशय पैदा कर दिया है कि 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव राजनीतिक दलों या गठबंधन ‘इंडिया’ और हमारे देश के बीच होंगे.” इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने भारत निर्वाचन आयोग को भी इस संबंध में ज्ञापन दिया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई जिसके बाद वह उच्च न्यायालय पहुंचे.

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