अनुच्छेद 370 के निरसन का फैसला बरकरार, जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटाने, चुनाव कराने का निर्देश

संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था : उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को सोमवार को सर्वसम्मति से बरकरार रखा और केंद्र शासित प्रदेश (जम्मू कश्मीर) का राज्य का दर्जा ”जल्द से जल्द” बहाल किए जाने एवं अगले साल 30 सितंबर तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दशकों पुरानी बहस पर विराम लगाते हुए तीन अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मति वाले फैसले सुनाए, जिनमें 1947 में भारत संघ में शामिल होने पर जम्मू- कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाली संवैधानिक व्यवस्था को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा गया.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपने और न्यायमूर्ति बी आर गवई एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास तत्कालीन राज्य की संविधान सभा की गैरमौजूदगी में इसे रद्द करने की शक्ति है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त करने संबंधी सरकार के फैसले को बरकरार रखने के न्यायालय के निर्णय को ”ऐतिहासिक” करार दिया और कहा कि यह ”जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के लिए आशा, प्रगति और एकता की शानदार घोषणा” है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने इस मामले पर अलग-अलग, किंतु सर्वसम्मत फैसले लिखे.
शीर्ष अदालत ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को अलग करने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखा. केंद्र सरकार ने इसी दिन अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित कर दिया था.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस बयान का जिक्र किया कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के गठन को छोड़कर, जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. उन्होंने कहा, ”इस बयान के मद्देनजर हमें यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर राज्य का दो केंद्र शासित प्रदेशों-लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में पुनर्गठन अनुच्छेद तीन के तहत स्वीकार्य है या नहीं.” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”हम स्पष्टीकरण एक के साथ अनुच्छेद तीन (ए) को पढ़े जाने के मद्देनजर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय की वैधता को बरकरार रखते हैं, जो किसी भी राज्य से एक क्षेत्र को अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है.” प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि भारत का संविधान संवैधानिक शासन के लिए एक पूर्ण संहिता है.

उन्होंने कहा, ”राष्ट्रपति के पास संविधान सभा की सिफारिश के बिना भी अनुच्छेद 370(3) को रद्द करने की घोषणा करने वाली अधिसूचना जारी करने का अधिकार है. राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1) के तहत अपनी शक्ति का निरंतर इस्तेमाल इंगित करता है कि संवैधानिक एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया जारी थी.” न्यायालय ने कहा, ”हम निर्देश देते हैं कि भारत का निर्वाचन आयोग 30 सितंबर, 2024 तक पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाए. राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए.” उन्होंने कहा कि विलय पत्र के क्रियान्वयन और 25 नवंबर, 1949 की वह उद्घोषणा जारी होने के बाद, जिसके जरिए भारत के संविधान को अपनाया गया था, पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य की ‘संप्रभुता का कोई तत्व” बरकरार नहीं रहा.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”अनुच्छेद 370 विषम संघवाद की विशेषता थी, न कि संप्रभुता की.” उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा सीओ 272 (जिसके द्वारा भारतीय संविधान को जम्मू-कश्मीर में लागू किया गया था) जारी करने के लिये अनुच्छेद 370(1)(डी) के तहत शक्ति का इस्तेमाल दुर्भावनापूर्ण नहीं था.

उन्होंने कहा, ”राष्ट्रपति अनुच्छेद 370(3) के तहत शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एकतरफा अधिसूचना जारी कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है.” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”जम्मू-कश्मीर में संविधान के सभी प्रावधानों को लागू करते समय राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370(1)(डी) की दूसरी शर्त के तहत राज्य सरकार या राज्य सरकार की ओर से कार्य करने वाली केंद्र सरकार की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि शक्ति के इस तरह इस्तेमाल का प्रभाव अनुच्छेद 370(3) के तहत शक्ति के प्रयोग के समान ही होता है, जिसके लिए राज्य सरकार की सहमति या सहयोग की आवश्यकता नहीं होती.”

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 और जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 92 के तहत उद्घोषणा जारी करने को तब तक चुनौती नहीं दी, जब तक कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त नहीं किया गया. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”उद्घोषणाओं को चुनौती पर फैसला सुनाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि चुनौती मुख्य रूप से उन कार्रवाइयों को लेकर दी गई है, जो उद्घोषणा जारी होने के बाद की गई थीं.”

उन्होंने कहा, ”अनुच्छेद 356 के तहत उद्घोषणा जारी होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा शक्ति का इस्तेमाल न्यायिक समीक्षा के अधीन है. राष्ट्रपति द्वारा शक्ति के इस्तेमाल का उद्घोषणा के उद्देश्य के साथ उचित संबंध होना चाहिए.” उन्होंने कहा कि शक्ति के इस्तेमाल को चुनौती देने वालों को प्रथम दृष्टया यह स्थापित करना होगा कि शक्ति का दुर्भावनापूर्ण या असंगत इस्तेमाल किया गया.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़. ने कहा, ”एक बार प्रथम दृष्टया मामला बन जाने पर ऐसी शक्ति के इस्तेमाल को उचित ठहराने की जिम्मेदारी केंद्र पर आ जाती है.” न्यायमूर्ति कौल ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को धीरे-धीरे अन्य भारतीय राज्यों के बराबर लाना था. उन्होंने सरकार और सरकार से इतर तत्वों द्वारा कम से कम 1980 के बाद से किये गए मानवाधिकार के उल्लंघनों की जांच के लिए ” निष्पक्ष सत्य-एवं-सुलह आयोग” गठित करने का निर्देश दिया.

न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने अलग फैसले में प्रधान न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति कौल से सहमति जताई और निष्कर्ष के लिए स्वयं के कारण बताए. नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर न्यायालय के फैसले से निराश हैं, लेकिन हतोत्साहित नहीं हैं.

अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”निराश हूं, लेकिन हतोत्साहित नहीं हूं. संघर्ष जारी रहेगा.” डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को आए उच्चतम न्यायालय के फैसले को ”दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण” बताया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ”हमें इसे स्वीकार करना होगा”.

संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था : उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को फैसला सुनाया कि तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद 370 एक ”अस्थायी प्रावधान” था. एक ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को बरकरार रखा, जबकि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल करने और 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तीन अलग-अलग, लेकिन सर्वसम्मति वाले निर्णयों में इस सवाल पर विचार किया कि क्या अनुच्छेद 370 के प्रावधान अस्थायी प्रकृति के थे या उसने 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के कार्यकाल के अंत में संविधान में स्थायी दर्जा हासिल कर लिया था.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपने और न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तरफ से लिखे फैसले में कहा, ”जिस ऐतिहासिक संदर्भ में इसे शामिल किया गया था, उसे पढ़ते हुए हमने अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान माना है.” उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पेश किया गया था, जिसमें संक्रमणकालीन उद्देश्य-राज्य की संविधान सभा के गठन तक अंतरिम व्यवस्था प्रदान करने का शामिल था और यह विलय पत्र में निर्धारित मामलों के अलावा अन्य मामलों पर संघ की विधायी क्षमता पर निर्णय ले सकता है और संविधान की पुष्टि कर सकता है.

जम्मू-कश्मीर के पास अलग से कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है : उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के पास ऐसी कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है, जो देश के अन्य राज्यों को प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग हो. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ कहा कि जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता के संदर्भ का स्पष्ट अभाव है, इसके विपरीत, भारत का संविधान अपनी प्रस्तावना में इस बात पर जोर देता है कि लोगों ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का संकल्प लिया है.

इसने कहा, ”जम्मू और कश्मीर राज्य के पास ऐसी कोई ‘आंतरिक संप्रभुता’ नहीं है, जो देश के अन्य राज्यों द्वारा प्राप्त शक्तियों और विशेषाधिकारों से अलग हो.” पीठ ने कहा कि देश के सभी राज्यों के पास अलग-अलग स्तर की विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं.
पीठ ने कहा, ”संविधान किसी विशिष्ट राज्य की खास चिंताओं को उस राज्य के लिए विशिष्ट व्यवस्थाएं प्रदान करके समायोजित करता है. अनुच्छेद 371ए से 371जे विभिन्न राज्यों के लिए विशेष व्यवस्थाओं के उदाहरण हैं. यह विषम संघवाद की एक विशेषता है, जैसे संविधान को अपनाने पर जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 370 लागू हुआ.”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विषम संघवाद में, एक विशेष राज्य कुछ हद तक स्वायत्तता का आनंद ले सकता है जो दूसरे राज्य को नहीं मिलता है. पीठ ने कहा, ”हालांकि, अंतर (शक्तियों के) स्तर का है, न कि प्रकार का. विभिन्न राज्यों को संघीय व्यवस्था के तहत अलग-अलग लाभ मिल सकते हैं लेकिन सामान्य सूत्र संघवाद है.”

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