जनपथ बंगले में हमेशा नहीं रहना चाहता था, निकाले जाने के तरीके से निराश हूं : चिराग
नयी दिल्ली. लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता चिराग पासवान ने बृहस्पतिवार को सरकार द्वारा उनके परिवार को जनपथ स्थित सरकारी बंगले से बेदखल किए जाने के तरीके पर निराशा जताई. चिराग ने कहा कि उन्हें कोई वैकल्पिक सरकारी आवास नहीं मुहैया कराया गया है, जिसके वह संसद के एक सदस्य के तौर पर हकदार हैं.
चिराग जनपथ स्थित उस सरकारी बंगले पर पहुंचे, जहां शहरी विकास मंत्रालय द्वारा बुधवार को परिसर को खाली कराने की कवायद शुरू की गई थी और वहां मौजूद अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की. बाद में संवाददाताओं से बातचीत में चिराग ने कहा कि वह नियम-कायदों और कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करते हैं और उन्होंने कभी भी यह मांग नहीं की कि उनके परिवार को बंगले में स्थाई रूप से रहने की इजाजत दी जाए.
चिराग ने कहा, ‘‘हमें आज नहीं तो कल, बंगला खाली करना ही था. हालांकि, मुझे बंगला खाली कराने के तरीके पर थोड़ी आपत्ति है.’’ मंत्री स्तर का यह बंगला 1990 में उनके पिता राम विलास पासवान को आवंटित किया गया था, जो तब से लेकर 2020 में अपने निधन तक की ज्यादातर अवधि में मंत्री थे. जमुई से सांसद चिराग के मुताबिक, उनका परिवार अतिरिक्त समयसीमा दिए जाने के बाद उस बंगले में रह रहा था.
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा परिवार कानूनी प्रक्रिया का पूरा सम्मान करता है. कोई व्यक्ति किसी स्थान को जबरन नहीं रख सकता, यदि वह उसका हकदार नहीं है. निश्चित तौर पर यह (बेदखली की प्रक्रिया) जिस तरह से किया गया, उससे मैं निराश हूं. मैं दूसरी बार सांसद बना हूं और मुझे कोई वैकल्पिक आवास दिया जाना चाहिए था.’’ चिराग ने कहा कि उनके पास अभी कोई सरकारी आवास नहीं है और वह राष्ट्रीय राजधानी में अपनी नानी के घर में शिफ्ट हो गए हैं. उन्होंने कहा कि बंगले से उनके पिता की कई यादें जुड़ी हुई हैं और लोजपा के संस्थापक के लगभग सौ करीबी सदस्य वहां रह रहे थे. चिराग ने कहा, ‘‘मैं इन लोगों की मदद के लिए हर संभव प्रयास करूंगा.’’
चिराग पासवान को सरकारी बंगले से बेदखल करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज
दिल्ली उच्च न्यायालय ने लोकसभा सांसद चिराग पासवान को उनके दिवंगत पिता रामविलास पासवान को आवंटित बंगले से बेदखल करने के मामले में हस्तक्षेप करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने चिराग की मां रीना पासवान की याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस स्तर पर उस प्रक्रिया को नहीं रोकेंगे, जो पहले ही शुरू हो चुकी है और संबंधित परिसर पासवान की ‘पार्टी का मुख्यालय नहीं’ है.
याचिकाकर्ता के वकील ने ‘व्यावहारिक कठिनाइयों’ का हवाला देते हुए अदालत से राष्ट्रीय राजधानी के बीचों-बीच जनपथ स्थित बंगले को खाली करने के लिए चार महीने का समय मांगा. उन्होंने अदालत को बताया कि मौजूदा समय में वहां सैकड़ों लोग रह रहे हैं और उनके पास राष्ट्रीय राजधानी में कोई और ठिकाना नहीं है. याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी दलील दी कि बंगले में दिवंगत राम विलास पासवान की याद में एक संग्रहालय बनाया गया है और वहां कई कलाकृतियां भी मौजूद हैं.
इस पर न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, ‘‘यह आपका पार्टी मुख्यालय नहीं है.’’ उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया 2020 में शुरू हुई थी और संबंधित पक्षों को नोटिस भी जारी किए गए थे. अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘‘बाहर निकलिए सर. प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. अन्य लोग भी इंतजार कर रहे हैं.’’ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने अदालत को बताया कि बंगला खाली कराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और वहां रह रहे लोगों को इसका नोटिस 2020 में ही दे दिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘‘प्रक्रिया शुरू हो गई है. बहुत कम घरेलू सामान बचा है. पांच ट्रक निकल चुके हैं.’’ शर्मा ने कहा कि अक्टूबर 2020 में रामविलास पासवान के निधन के साथ ही बंगले के आवंटन की अवधि समाप्त हो गई थी. केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा सांसद से जनपथ स्थित बंगला खाली करवाने के लिए एक टीम भेजी थी, जिसे केंद्रीय मंत्रियों को आवंटित किया जाना है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद यह बंगला लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का आधिकारिक पता बन गया है, जो चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच मतभेद के चलते दो गुटों में बंट गई है. इस बंगले का इस्तेमाल नियमित रूप से पार्टी की संगठनात्मक बैठकों और अन्य संबंधित कार्यक्रमों के आयोजन के लिए किया जा रहा था.