नये सिरे से किये जा रहे हैं शिवसेना को खत्म करने के प्रयास : उद्धव

मुंबई/नयी दिल्ली. शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी को पहले भी विभाजित करने के प्रयास किये गये थे, लेकिन इस बार नये सिरे से पार्टी को खत्म करने की कोशिश की जा रही है. उद्धव ठाकरे ने यहां अपने आवास मातोश्री में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.

दरअसल, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले एक धड़े ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट के मद्देनजर शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट द्वारा दायर याचिकाओं में उठाये गये कुछ संवैधानिक सवालों को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे-नीत प्रतिद्वंद्वी गुट से बुधवार को नये सिरे से जवाब दाखिल करने को कहा.

उद्धव ठाकरे ने कहा, “पहले, शिवसेना को विभाजित करने के प्रयास किए गए थे लेकिन अब पार्टी को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है.” ठाकरे स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जे. पी. नड्डा की उन टिप्पणियों का जिक्र कर रहे थे, जिसमें नड्डा ने कहा था कि आने वाले समय में केवल भाजपा जैसी विचारधारा से प्रेरित राजनीतिक दल ही बचेंगे, जबकि परिवारों द्वारा शासित अन्य दल तबाह हो जाएंगे. ठाकरे ने यह भी आरोप लगाया था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा शिवसेना सांसद संजय राउत के आवास पर रविवार को की गई तलाशी पार्टी को खत्म करने की एक “साजिश” का हिस्सा थी.

न्यायालय ने उद्धव गुट की याचिका पर शिंदे गुट से नए सिरे से जवाब देने को कहा

उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक संकट के मद्देनजर शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट द्वारा दायर याचिकाओं में उठाए गए कुछ संवैधानिक सवालों को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत प्रतिद्वंद्वी गुट से बुधवार को नए सिरे से जवाब दाखिल करने को कहा.

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ शिवसेना और बागी विधायकों द्वारा दायर याचिकाओं में पार्टी के विभाजन, विलय, बगावत और अयोग्यता को लेकर उठाए गए संवैधानिक सवालों पर सुनवाई कर रही थी. न्यायालय में उद्धव ठाकरे गुट का पक्ष रखने के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि शिंदे गुट में जाने वाले विधायक संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से तभी बच सकते हैं, अगर वे अलग हुए गुट का किसी अन्य पार्टी में विलय कर देते हैं.

उन्होंने पीठ से कहा कि उनके बचाव का कोई अन्य रास्ता नहीं है. शिंदे गुट का पक्ष रखने के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि दलबदल कानून उन नेताओं के लिए हथियार नहीं है जो पार्टी के सदस्यों को एकजुट रखने में सफल नहीं हुए हैं.
तथ्यात्मक पहलुओं का संदर्भ देते हुए साल्वे ने कहा कि यह मामला विधायकों द्वारा स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़े जाने का नहीं है.

साल्वे ने कहा, ‘‘यह दलबदल नहीं है. यह पार्टी की आंतरिक बगावत का मामला है और किसी ने भी स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता नहीं छोड़ी है.’’ दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार को करेगी और निर्णय देने के मुद्दे को तय करेगी. न्यायालय ने साल्वे से कानूनी सवालों का पुन: जवाब तैयार करने को कहा. पीठ बृहस्पतिवार को सबसे पहले इस मामले पर सुनवाई करेगी.

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