सेना, एनडीआरएफ से लेकर गांव के लोगों ने अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभायी राहुल को बचाने में

रायपुर. छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में बोरवेल में गिरे 11 वर्षीय बालक राहुल साहू को बचाने के लिए राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), सेना, जिला प्रशासन से लेकर स्थानीय ग्रामीणों ने अपने-अपने हिस्से का योगदान दिया. सभी के समन्वित प्रयास का नतीजा है कि 104 घंटे के अथक प्रयास के बाद राहुल सुरक्षित अपने परिवार में लौट सका.

छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में 10 जून को एनडीआरएफ के क्षेत्रीय प्रतिक्रिया केंद्र (आरआरसी) में दिन के प्रशिक्षण अभ्यास के बाद शाम को अधिकारी और कर्मचारी अपने कार्यों में व्यस्त थे. केंद्र में जब कुछ कर्मचारी और अधिकारी आराम कर रहे थे और कुछ अपने फोन पर व्यस्त थे तब अचानक उनके कमांंिडग आॅफिसर को जांजगीर-चांपा जिले के एक पुलिस अधिकारी का फोन आया. यह फोन भिलाई शहर से 250 किलोमीटर दूर जिले के पिहरिद गांव में एक खुले बोरवेल में गिरे 11 वर्षीय बालक को बचाने को लेकर था.

एनडीआरएफ की तीसरी बटालियन ने बोरवेल में गिरे बच्चे को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह अभियान 104 घंटे बाद मंगलवार रात में पूरा हुआ. एनडीआरएफ की तीसरी बटालियन का मुख्यालय पड़ोसी राज्य ओडिसा के कटक जिले के मुंदाली में स्थित है. इस अभियान के लिए आरआरसी केंद्र भिलाई में तैनात बटालियन के दल को बुलाया गया था.

भिलाई के केंद्र में तैनात बटालियन के निरीक्षक महाबीर मोहंती ने बुधवार को बताया, ”मुझे 10 जून को शाम 5:35 बजे जांजगीर-चांपा के एक पुलिस अधिकारी का फोन आया, जिन्होंने बोरवेल से एक बच्चे को निकालने में मदद मांगी थी.” उन्होंने बताया कि इसके बाद 22 र्किमयों के एक दल ने जरूरी सामान लिया और शाम लगभग छह बजे पिहरिद गांव के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल के लिए जाने के दौरान मोहंती ने समय बर्बाद नहीं करते हुए जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों से वीडियो कॉल के माध्यम से संपर्क किया तथा उन्हें जरूरी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी दी.

मोहंती ने बताया, ”मैंने वीडियो कॉल पर अधिकारियों से कहा कि पहले भीड़ को वहां से हटाएं और बोरवेल के भीतर एक आॅक्सीजन सप्लाई पाइप और एक लाइट डालें. मैंने अधिकारी से यह भी कहा कि बच्चे के परिवार के सदस्यों को बोरवेल के पास से बालक से बात करते रहने के लिए कहें, जिससे बालक का हौसला बना रहे.” उन्होंने बताया, ”हम शुक्रवार को रात लगभग 11 बजे गांव पहुंचे और अपना अभियान शुरू किया. इस बीच स्थानीय प्रशासन ने आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था की थी और एसडीआरएफ की एक टीम भी वहां पहुंच गई थी.’’

अधिकारी ने बताया, ”बच्चे पर नजर रखने और उससे बात करने के लिए बोरवेल के भीतर एक सीसीटीवी कैमरा और स्पीकर लगाया गया था. बोरवेल के भीतर पानी था इसलिए हमने बिना समय गंवाए अधिकारियों से कहा कि वे ग्रामीणों से कहें कि भूजल स्तर को नीचे बनाए रखने के लिए अपने बोरवेल को चालू कर दें.” उन्होंने कहा, ”बच्चे का मानसिक रूप से कमजोर होना बचाव दल के सामने एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि वह हमारी बातों का ठीक से जवाब नहीं दे रहा था. नहीं तो हम उसे एक रस्सी के माध्यम से बाहर खींच लेते.”

मोहंती ने कहा, ”बोरवेल के भीतर एक सांप और बिच्छू भी था. यह कैमरे से जुड़े मॉनिटर पर दिखाई दे रहा था. यह हमारे लिए ंिचता का विषय था. हालांकि हमने मीडिया के सामने इसका खुलासा नहीं किया क्योंकि इससे लोग परेशान हो जाते. हमने वहां तैनात चिकित्सा दल को इसकी सूचना दी, जिसने ओआरएस के जरिए बच्चे को जरूरी दवाएं दीं.’’ उन्होंने बताया कि बच्चे को रस्सी के सहारे ही केला और ओआरएस दिया गया. एनडीआरएफ अधिकारी ने बताया कि बोरवेल के समानांतर करीब 75 फीट गहरा गड्ढा किया गया और फिर बच्चे तक पहुंचने के लिए 20 फीट लंबी सुरंग बनाई गई.

मोहंती ने बताया, ” राहुल को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचावकर्मी न सोए और न ही स्रान किया. वे 104 घंटे तक चले बचाव अभियान के दौरान काम करते रहे. वहां मौजूद लोगों की उम्मीदों ने हमें लगातार काम करने के लिए प्रोत्साहित किया” उन्होंने कहा, ”सुरंग निर्माण के अंतिम चरण में एक छेद से बच्चे को देखते ही बचाव दल की आंखों में आंसू आ गए. हमने सोचा कि यह हमारा बच्चा है और पिछले पांच दिनों से हम उसे बचाने की कोशिश कर रहे थे.”

40 वर्षीय मोहंती ने बताया कि पूरे देश से उन्हें बधाई संदेश आ रहे हैं. उन्होंने कहा, ”इस तरह की कोई घटना पहले छत्तीसगढ़ और ओडिशा में सामने नहीं आई है. हम सभी प्रकार की आपात स्थितियों से निपटने में अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं, लेकिन पहली बार मेरे दल ने ऐसा अभियान किया है.” दो साल पहले एनडीआरएफ में शामिल होने से पहले मोहंती केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में थे.

राहुल को बचाने के लिए अभियान में सेना के जवानों और साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के गेवरा, कुसमुंडा और मनेंद्रगढ़ के कोयला खदानों के 12 सदस्यीय दल ने भी हिस्सा लिया. एसईसीएल के एक अधिकारी ज्ञानेंद्र शुक्ला ने बताया, ”हम शुक्रवार से घटनास्थल पर थे और समानांतर गड्ढे और सुरंग खोदने में एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के लोगों के साथ मिलकर काम रहे थे.”

शुक्ला ने बताया, ”बचावर्किमयों को कठोर डोलोमाइट चट्टानों को काटते हुए सुरंग बनाने में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा. आमतौर पर खनन गतिविधियों में विस्फोट का उपयोग कठोर चट्टानों को तोड़ने के लिए किया जाता है लेकिन इस मामले में बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह संभव नहीं था.” उन्होंने कहा कि शुरू में हमने एक ट्रॉली माउंटेड ड्रिंिलग मशीन का इस्तेमाल किया और बाद में हैंड ड्रिंिलग मशीनों और हाथ से सावधानी बरतते हुए खुदाई की गई.

जांजगीर-चांपा जिले के कलेक्टर जितेंद्र शुक्ला और पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल शुक्रवार से मौके पर पूरे अभियान की निगरानी कर रहे थे. अग्रवाल को मंगलवार को लू लग गई जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़ा. वहीं पिहरिद गांव के लोगों ने भी इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गांव के सरपंच किरण कुमार डहरिया ने कहा, ”प्रशासन ने हमसे किसी भी तरह का बड़ा सहयोग नहीं मांगा, लेकिन अभियान के दौरान ग्रामीणों ने स्वेच्छा से बचाव र्किमयों के लिए दो वक्त का भोजन और नाश्ते की व्यवस्था की.”

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