अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार ख़तरे में पड़ जाएगी: धनखड़

नयी दिल्ली. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को याद करते हुए कहा कि अगर पार्टियां धर्म को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार ख.तरे में पड़ जाएगी. संविधान को अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर साल भर चलने वाले समारोहों की शुरुआत के लिए पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि रणनीति के रूप में अशांति फैलाना लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए खतरनाक है.

धनखड़ ने कहा, ”अब समय आ गया है कि हम रचनात्मक संवाद, बहस और सार्थक चर्चा के माध्यम से अपने लोकतांत्रिक मंदिरों की पवित्रता को बहाल करें ताकि लोगों की प्रभावी रूप से सेवा की जा सके..” इस बात का उल्लेख करते हुए कि संविधान ने शानदार तरीके से लोकतंत्र के तीन स्तंभों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका– को स्थापित किया और प्रत्येक की एक निर्धारित भूमिका है, धनखड़ ने कहा, ”लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तब होता है जब इसकी संवैधानिक संस्थाएं अपने अधिकार क्षेत्र का पालन करते हुए आपसी सामंजस्य और एकजुटता के साथ काम करती हैं.” उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार के इन अंगों के कामकाज में, अपने-अपने क्षेत्र की विशिष्टता ही वह तत्व है जो भारत को समृद्धि और समानता की अभूतपूर्व ऊंचाइयों की ओर ले जाने में अभूतपूर्व योगदान देती है.

उन्होंने कहा, ”हमारा संविधान मौलिक अधिकारों को लागू करने का आश्वासन देता है और मौलिक कर्तव्यों का निर्धारण करता है. यह नागरिकों को हर जानकारी से अवगत रहने की व्यवस्था को परिभाषित करता है और डॉ. आंबेडकर की इस चेतावनी को व्यक्त करता है कि बाहरी खतरों से ज़्यादा आंतरिक संघर्ष लोकतंत्र को ख.तरे में डालते हैं.” उन्होंने कहा, ”अब समय आ गया है कि हम राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा, एकता को बढ.ावा देने, राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने और अपने पर्यावरण की सुरक्षा करने के अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हों.” धनखड़ ने कहा कि आधुनिक काल में जब संसदीय विमर्श में शिष्टाचार और अनुशासन की कमी हो गई है तो आज हमें अपनी संविधान सभा की सुन्दर कार्यप्रणाली के प्राचीन गौरव को दोहराते हुए सभी समस्याओं को हल करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा, ”संविधान की प्रस्तावना के प्रारंभिक शब्द, ‘हम भारत के लोग’ बहुत गहरे अर्थ रखते हैं. वे लोकतंत्र में नागरिकों के अधिकार को स्थापित करते हैं.” राज्यसभा के सभापति ने कहा कि हमेशा देश को सर्वोपरि रखते हुए पहले से कहीं ज़्यादा सतर्क रहने की ज.रूरत है. उन्होंने कहा कि ये प्रतिबद्धताएं हमारे विकसित भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने और एक ऐसा राष्ट्र बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं जो प्रगति और समावेशन का उदाहरण हो.

धनखड़ ने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में आंबेडकर के आखिरी संबोधन का हवाला देते हुए कहा, ”मुझे इस बात से बहुत परेशानी होती है कि भारत ने न केवल एक बार अपनी स्वतंत्रता खोयी है, बल्कि उसने इसे अपने ही कुछ लोगों के कपट और विश्वासघात के कारण खो दिया है. तो क्या इतिहास खुद को दोहराएगा? आंबेडकर के संबोधन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ”यही विचार मुझे चिंता से भर देता है. यह चिंता इस तथ्य के अहसास से और भी गहरी हो जाती है कि जातियों और पंथों के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा हमारे पास कई राजनीतिक दल होंगे जिनके राजनीतिक पंथ अलग-अलग और परस्पर विरोधी होंगे. क्या भारतीय लोग देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या वे पंथ को देश से ऊपर रखेंगे?”

आंबेडकर के हवाले से धनखड़ ने कहा, ”मुझे नहीं पता. लेकिन इतना तो निश्चित है कि अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार ख.तरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी.” उन्होंने कहा कि इस संभावित स्थिति से सभी को पूरी तरह से सावधान रहना चाहिए.

उन्होंने कहा, ”हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए दृढ. संकल्पित होना चाहिए.” धनखड़ ने अपने संबोधन के अंत में लोगों से भारतीय संविधान के निर्माता से प्राप्त बुद्धिमत्ता भरी सलाह पर ध्यान देने की अपील की.
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा में सदन के नेता जे पी नड्डा, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे (राज्यसभा) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू मंच पर मौजूद थे.

इस अवसर पर भारत के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ को सर्मिपत एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया गया. साथ ही ‘भारत के संविधान का निर्माण: एक झलक’ और ‘भारत के संविधान का निर्माण और इसकी गौरवशाली यात्रा’ शीर्षक वाली पुस्तकों का विमोचन किया गया. राष्ट्रपति ने संविधान के संस्कृत और मैथिली अनुवादों का अनावरण किया. यह समारोह ‘हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान’ अभियान का हिस्सा है. इसका उद्देश्य संविधान में निहित मूल मूल्यों को दोहराते हुए संविधान के निर्माताओं के योगदान का सम्मान करना है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button