नक्सली सीआरपीएफ शिविरों पर हमले के लिए पटाखों और अगरबत्ती का कर रहे इस्तेमाल
नयी दिल्ली. माओवादी देश के वामपंथ उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में दूरदराज के इलाकों में सुरक्षा बलों के शिविरों पर हमला करने के लिए दिवाली के पटाखे और अगरबत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी. सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि रॉकेट और बंदूक से हमला करने से पहले शिविर में तैनात जवानों का ध्यान भटकाने के वास्ते अगरबत्ती से पटाखे फोड़ने की यह चाल 25 सितंबर को तेलंगाना के कोठागुडेम जिले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के पुसुगुप्पा शिविर के आसपास देखी गई.
नक्सल विरोधी अभियान में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उस दिन शाम करीब 6.30 बजे जब अंधेरा छाने लगा तो तेलंगाना-छत्तीसगढ. सीमा पर स्थित शिविर में तैनात जवानों को अपने शिविर की सीमा से करीब 200 मीटर की दूरी पर विस्फोटों की आवाज सुनाई दी और धुआं दिखाई दिया. अधिकारी ने बताया कि घने जंगल वाले क्षेत्र में इसे नक्सलियों का हमला समझकर जैसे ही सीआरपीएफ जवानों ने मोर्चा संभाला, वैसे ही छिपे हुए माओवादी समूहों ने गोलीबारी की और रॉकेट या बैरल ग्रेनेड लांचर (बीजीएल) से विस्फोट किया. सैनिकों ने इंसास और एके राइफलों से जवाबी गोलीबारी की.
करीब 45 मिनट तक आवाजें आती रहीं और गोलीबारी जारी रही जिसके बाद जवानों को पता चला कि नक्सली पीछे हट गए हैं. दिल्ली में मौजूद एक अन्य अधिकारी ने बताया कि शिविर के बाड़ को कुछ नुकसान पहुंचा लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ है. उन्होंने बताया, ” इससे पहले भी कुछ घटनाएं हुई हैं, जहां इस तरह की कार्यप्रणाली का इस्तेमाल जवानों का ध्यान भटकाने के लिए किया गया और फिर उनके शिविरों पर बंदूकों और रॉकेटों से हमला किया गया. लेकिन ये बातें निश्चयात्मक नहीं थीं, क्योंकि कोई सबूत नहीं मिला.”
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ”पिछले महीने पुसुगुप्पा सीआरपीएफ शिविर पर हुए हमले ने इस बात की पुष्टि की है कि नक्सली ये नई चाल अपना रहे हैं. जवानों तथा बम निरोधक टीम ने इस संबंध में सबूत जुटाए हैं.” विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि नक्सली आमने-सामने की मुठभेड़ करने की स्थिति में नहीं हैं इसलिए वे सैनिकों पर जानलेवा हमले करने के लिए पटरियों के नीचे या आसपास आईईडी का इस्तेमाल करने जैसे हमले के ”छद्म” तरीकों पर निर्भर हैं.