रसायन का नोबेल पुरस्कार कैरोलिन बेरटोजी, बैरी शार्पलेस और मॉर्टेन मिएलडॉल को

स्टॉकहोम. स्वीडन के स्टॉकहोम स्थित नोबेल कमेटी ने बुधवार को रसायन के नोबेल पुरस्कार का एलान कर दिया। अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की कैरोलिन बेरटोजी, स्क्रिप्स रिसर्च के बैरी शार्पलेस और डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के मॉर्टेन मिएलडॉल को साझा तौर पर यह सम्मान दिया गया है। तीनों को केमिस्ट्री की एक अहम खोज- ‘क्लिक केमिस्ट्री’ के लिए इस पुरस्कार के लिए चुना गया। इन वैज्ञानिकों की खोज कितनी अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दवाओं के निर्माण से लेकर मरीजों के डायग्नोस्टिक और नए पदार्थों के निर्माण में भी क्लिक केमिस्ट्री का अहम योगदान है।

क्या है तीनों वैज्ञानिकों की खोज?

क्लिक केमिस्ट्री अणुओं (मॉलिक्यूल्स) को एक साथ मिलाकर नए अणु बनाने की प्रक्रिया है। मान लीजिए कि आप छोटे अणुओं को एक साथ मिला सकें और फिर इन्हें लगातार मिलाकर बड़े, जटिल और विविध अणु (मॉलिक्यूल्स) बना सकें। इससे नए पदार्थ बनाना काफी आसान हो जाता है। क्लिक केमिस्ट्री का यही आधार है। हालांकि, दो अलग-अलग अणुओं के बीच प्रतिक्रिया होना हमेशा तय नहीं होता।

कैसे सुलझी अणुओं के बीच प्रतिक्रिया न होने की समस्या?
20 साल पहले वैज्ञानिकों के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती थी। समस्या यही थी अणु बिना एक-दूसरे से प्रतिक्रिया किए आपस में जुड़ नहीं सकते। मॉर्टेन मिएलडॉल और बैरी शार्पलेस ने इन्हें जोड़ने के लिए ऐसे केमिकल एजेंट्स की खोज की, जो कि अणुओं से जुड़ सकते थे और फिर एक के बाद एक अन्य अणुओं को भी जोड़कर अणुओं का जटिल गुच्छा बना सकते थे। इन्हें ‘केमिकल बकल्स’ कहा गया। जैसे बेल्ट को जोड़ने वाले ‘बकल’।

बैरी शार्पलेस और मॉर्टेन मिएलडॉल ने अलग-अलग स्तर पर स्वतंत्र रूप से पहले ऐसे बकल्स की खोज की, जो कि अणुओं से प्रतिक्रिया कर उनसे जुड़ जाएं। इन बकल्स की खासियत यह थी कि यह खास तरह के अणु से ही जुड़ सकते थे, न कि हर तरह के अणु से। इन्हें वैज्ञानिक अपनी तरह से मॉडिफाई भी कर सकते हैं, ताकि अलग-अलग तरह के अणुओं को जोड़ कर उनकी लंबी चेन बनाई जा सके। इस क्लिक केमिस्ट्री के जरिए आज अणुओं को जोड़कर इनका बड़ा और जटिल ढांचा तैयार किया जा रहा है। इनका इस्तेमाल दवाएं बनाने से लेकर पॉलीमर और नए पदार्थ बनाने में किया जा रहा है।

चिकित्सा क्षेत्र के लिए कैसे ज्यादा महत्वपूर्ण बन गई यह खोज?
हालांकि, यह भी एक अहम खोज है कि आखिर क्यों कोई इन अणुओं को मिलाकर जटिल अणुओं को पैदा करना चाहेगा। तो मान लीजिए कि आप इंसान में मौजूद कोशिकाओं में मौजूद जीवाणुओं से एक चमकने वाले अणु को मिला सकें। इसके बाद आप उन जीवाणुओं की माइक्रोस्कोप में भी निगरानी (ट्रैकिंग) कर सकेंगे। यानी आप उनकी स्थिति का हर वक्त पता लगा सकते हैं। इंसानी शरीर में किसी भी कोशिका की ट्रैकिंग अपने आप में एक बड़ी खोज साबित हुई है। यही खोज स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की कैरोलिन बेरटोजी ने की।

हालांकि, बेरटोजी को ऐसी क्लिक रिएक्शन ढूंढनी थीं, जिसमें इन खास अणुओं का कोशिकाओं से जुड़ना कोशिकाओं के लिए जहरीला न साबित हो जाए। बेरटोजी ने इसे बायो-ऑर्थोगॉनल केमिस्ट्री नाम दिया। ऐसी रसायनिक प्रतिक्रियाएं जो अणुओं के जुड़ने के बावजूद कोशिकाओं पर कोई असर नहीं डालतीं। यानी बेरटोजी की खोज से अणुओं को इंसानी कोशिकाओं से जोड़ना आसान हो गया, जो कि काफी उपयोगी खोज है। अब अणुओं से जुड़ी कोशिकाओं की निगरानी आसान है, जिससे शरीर का डायग्नोस्टिक किया जा सकता है। इसके अलावा इंसानों के शरीर में किसी लक्षित जगह पर दवाओं को पहुंचाने के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

जानें कौन हैं यह तीनों वैज्ञानिक?
1. कैरोलिन बेरटोजी
कैरोलिन बेरटोजी अमेरिकी के विज्ञान क्षेत्र का जाना-माना चेहरा हैं। वे रसायन विज्ञान के साथ जीव विज्ञान के क्षेत्र में भी काफी काम कर चुकी हैं। उन्होंने जीवित प्रणालियों और रासायनिक पदार्थों की अनुकूल प्रतिक्रिया की खोज की थी और इसे बायोऑर्थोगॉनल केमिस्ट्री का नाम दिया था। मौजूदा समय में वे कैंसर, वायरल इंफेक्शन पर केमिकल रिएक्शंस को लेकर रिसर्च कर रही हैं। उन्होंने बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक स्टार्टअप की भी शुरुआती की है।
2. कार्ल बैरी शार्पलेस
अमेरिका के कार्ल बैरी शार्पलेस उन चुनिंदा वैज्ञानिकों में से हैं, जिन्हें अब तक कुल दो बार नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। इससे पहले उन्हें 2001 में भी रसायन का नोबेल मिला था। तब उनकी खोज ऑक्सीडेशन रिएक्शन से जुड़ी थी। इसके जरिए कई ऐसे पदार्थ, जिनका पहले सामान्यतः बनना असंभव माना जाता था, का निर्माण संभव हुआ। 2022 में उन्हें जिस क्लिक केमिस्ट्री के लिए नोबेल दिया गया है, वह शब्द भी उन्होंने ही 1998 में दिया था।
3. मॉर्टेन मेएलडॉल
मॉर्टेन मेएलडॉल मौजूदा समय में डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके नाम से कई उपलब्धियां जुड़ चुकी हैं। उनकी ओर से खोजी गई तकनीकों से आज कैंसर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमताओं की चिह्नित किया जाता है। मेएलडॉल को 2022 में जो नोबेल मिला है, वह अजाइड-एल्काइन अणुओं को तांबे के जरिए जोड़ने की प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए है। दरअसल, इसी प्रक्रिया से दवाओं को विकसित करने में काफी मदद मिल रही है। इसके अलावा डीएनए की पहचान में उनकी ईजाद तकनीक मददगार साबित हो रही है।

 

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