प्रेम रक्षित : ‘‘नाटु नाटु’’ को सफल बनाने में दिया बड़ा योगदान

नयी दिल्ली. उम्दा गीत और कानों में रस घोलने वाला संगीत हमेशा से भारतीय सिनेमा का एक अहम हिस्सा रहा है. उस पर नृत्य ‘सोने पर सुहागा’ का काम करता है. कहते हैं कि संगीत की कोई जुबान नहीं होती और नृत्य को किसी जुबान की जरूरत नहीं होती, तभी तो निर्देशक एस एस राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ के लोकप्रिय गीत ‘नाटु नाटु’ को 2023 के गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड समारोह में सर्वश्रेष्ठ ‘ओरिजिनल सॉन्ग’ चुना गया.

इस तेलुगु गीत के बोल हमारे देश में ही कम लोगों की समझ में आए होंगे, लेकिन यह सबने महसूस किया कि इस गीत और इसके संगीत में कुछ नया है. इसके अलावा, फिल्म के दोनों कलाकारों रामचरण और जूनियर एनटीआर ने ‘नाटु नाटु’ में जो बेहतरीन नृत्य किया है, उसका इस गीत की लोकप्रियता में बहुत बड़ा योगदान है. यही वजह है कि फिल्म के निर्माता निर्देशक, कलाकारों, गीतकार और संगीतकार के साथ-साथ नृत्य निर्देशक प्रेम रक्षित भी इन दिनों चर्चा में हैं.

‘नाटु’ का मतलब ‘नाचना’ होता है और इस गीत को देख-सुनकर पैर अपने आप थिरकने लगते हैं. इसमें प्रेम रक्षित के नृत्य निर्देशन की जितनी तारीफ की जाए कम है. उनके शानदार नृत्य निर्देशन ने सात समंदर पार भारतीय सिनेमा का डंका बजा दिया. प्रेम रक्षित का जन्म 14 दिसंबर 1977 को तमिलनाडु के चेन्नई में हुआ था. उन्होंने चेन्नई के ही सेंट गैब्रियल हाईस्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी की और बाद में ग्राफिक्स और वीएफएक्स डिजाइन में डिग्री हासिल की. प्रेम रक्षित के परिवार में माता-पिता के अलावा एक छोटा भाई है. उनकी पत्नी का नाम राजलक्ष्मी और बेटे का नाम परीक्षित है.

तेलुगु और तमिल भाषा में 70 से ज्यादा फिल्मों में नृत्य निर्देशन करने वाले प्रेम रक्षित का परिवार एक समय खासा संपन्न हुआ करता था. उनके पिता हीरों के व्यापारी थे और मां गृहिणी थीं. 1993 में किन्हीं कारणों से उनके पिता को अपने पारिवारिक कारोबार से अलग होना पड़ा और वहीं से उनके परिवार के तंगी के दिन शुरू हुए. पिता ने परिवार चलाने के लिए फिल्मों में नृत्य निर्देशक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. वहीं, प्रेम रक्षित एक दर्जी की दुकान पर छोटी-मोटी नौकरी करने लगे.

प्रेम रक्षित ने एक अखबार को दिए साक्षात्कार में बताया कि पिता की कमाई से घर चलाना मुश्किल था, वह खुद भी डांस यूनियन फेडरेशन के सदस्य थे, लेकिन कहीं काम न मिलने से परेशान थे. उन्होंने कहा कि परिवार की तंगहाली से परेशान होकर उन्होंने एक बार तो आत्महत्या करने तक का मन बना लिया था, क्योंकि उन्हें लगा कि अगर वह जान दे देंगे तो फेडरेशन अपने नियम के अनुसार उनके परिवार को 50 हजार रुपये देगी, जिससे उसे काफी मदद मिलेगी.

रक्षित बताते हैं कि वह आत्महत्या का मन बनाकर किसी से साइकिल उधार लेकर चेन्नई के मरीना बीच की तरफ चल पड़े, लेकिन वहां पहुंचकर ख्याल आया कि जिसकी साइकिल लेकर आए हैं, वह उनके परिवार से अपनी साइकिल मांगने आएगा तो क्या होगा? उधारी की साइकिल ने रक्षित को खुदकुशी से रोक दिया.

रक्षित साइकिल लेकर घर पहुंचे तो उनके पिता ने बताया कि उन्हें एक फिल्म में बैंकग्राउंड डांसर के तौर पर काम मिल गया है. इसके बाद धीरे-धीरे उन्हें काम मिलने लगा और उनके दिन बदलने लगे. वर्ष 2004 में आई तेलुगु फिल्म ‘विद्यार्थी’ से उन्होंने नृत्य निर्देशक के तौर पर सिनेजगत में कदम रखा और 2005 में प्रर्दिशत राजामौली की फिल्म ‘छत्रपति’ ने उन्हें मशहूर कर दिया.

मजे की बात यह है कि फिल्म ‘विद्यार्थी’ के बाद उन्हें ज्यादा काम नहीं मिल रहा था और तंगी के दिनों में उन्होंने राजामौली के बच्चों को डांस भी सिखाया था. तब तक राजामौली को यह नहीं पता था कि ‘विद्यार्थी’ का नृत्य निर्देशन रक्षित ने ही किया था. उन्होंने एक दिन हिम्मत करके राजामौली को सच बता दिया. इसके बाद, राजामौली ने उन्हें फिल्म ‘छत्रपति’ के नृत्य निर्देशन का जिम्मा सौंप दिया.

‘छत्रपति’ के नृत्य निर्देशन के बाद रक्षित के काम की हर तरफ तारीफ होने लगी. उन्हें बहुत-सी फिल्मों में बेहतरीन काम के लिए ढेरों अवॉर्ड मिले, लेकिन ‘छत्रपति’ के जरिये राजामौली के साथ उनका जो रिश्ता जुड़ा था, वह आज तक कायम है. इन दोनों का काम इन्हें ऑस्कर पुरस्कार की दौड़ में ले आया है.

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