सिसोदिया को नहीं मिली जमानत; अदालत ने कहा, गवाहों को कर सकते हैं प्रभावित

नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शहर की आबकारी नीति से जुड़े उस मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया को मंगलवार को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि उपमुख्यमंत्री तथा आबकारी मंत्री के पद पर रहने के कारण वह एक ”हाई प्रोफाइल” व्यक्ति हैं जो गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं.

अदालत ने कहा कि चूंकि कथित घोटाले के वक्त सिसोदिया ”उच्च पद पर आसीन” थे तो वह यह नहीं कह सकते कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी. उच्च न्यायालय ने कहा कि उनकी पार्टी अब भी राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में है तो 18 विभाग संभाल चुके सिसोदिया का अब भी प्रभाव है और चूंकि ज्यादातर गवाह सरकारी सेवक हैं तो उन्हें प्रभावित किए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने 43 पृष्ठ के फैसले में कहा, ”याचिकाकर्ता (सिसोदिया) संबंधित अवधि के दौरान सरकार में सबसे महत्वपूर्ण पदाधिकारियों में से एक था. इस स्तर पर याचिकाकर्ता यह नहीं कह सकता कि उसकी कोई भूमिका नहीं थी. उपमुख्यमंत्री तथा आबकारी मंत्री होने के कारण वह उच्च पद पर आसीन था. मौजूदा मामले में ज्यादातर गवाह सरकारी सेवक हैं.”

उन्होंने कहा, ”अब भी याचिकाकर्ता की पार्टी सत्ता में है अत: इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता कि याचिकाकर्ता एक हाई प्रोफाइल व्यक्ति है और वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है. अत: सीबीआई की यह आशंका कि याचिकाकर्ता गवाहों पर विपरीत असर डाल सकता है, इससे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.” सिसोदिया को मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 26 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था. उच्च न्यायालय ने कहा कि सिसोदिया के खिलाफ लगे आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं.

अदालत ने कहा, ” दलीलों के मद्देनजर आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं कि आबकारी नीति ‘साउथ ग्रुप’ के इशारे पर उन्हें अनुचित लाभ देने के लिए गलत इरादे से बनाई गई थी. इस तरह के कृत्य याचिकाकर्ता के कदाचार की ओर इशारा करते हैं जो वास्तव में एक लोक सेवक था और बेहद उच्च पद पर आसीन था.” अदालत ने कहा कि वर्तमान सुनवाई में न तो आबकारी नीति की जांच की गई और न ही आर्थिक नीति बनाने के संबंध में सरकार के अधिकार की. अदालत ने सरकार के प्रशासनिक फैसलों की भी जांच नहीं की है.

न्यायाधीश ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुरूप इस अदालत का मानना है कि याचिकाकर्ता जमानत का हकदार नहीं है. अदालत ने कहा, ”इस अदालत को इसमें कोई शक नहीं है कि नीतियों पर फैसला लेने का अधिकार शासकीय/निर्वाचित सरकार का है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार किसी विशेषज्ञ समिति की सिफारिश स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है.”

उसने कहा, ”सरकार नीतियों के लिए जवाबदेह है और नीतियां बनाना उसका कर्तव्य है जो उनकी समझ से जनता के कल्याण के लिए सबसे अच्छी होती हैं.” उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘आप’ नेता आरोपों की गंभीरता और अपने पद के मद्देनजर जमानत देने के लिए आवश्यक ‘ट्रिपल टेस्ट’ में भी नाकाम हुआ है.

‘ट्रिपल टेस्ट’ के तहत किसी आरोपी को तभी जमानत दी जा सकती है जब यह तय हो कि वह देश छोड़कर नहीं भागेगा, गवाहों को प्रभावित नहीं करेगा और सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा. न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ”हालांकि, याचिकाकर्ता ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है लेकिन वह फिर भी गवाहों को प्रभावित कर सकता है. इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए याचिकाकर्ता जमानत का हकदार नहीं है.” सीबीआई ने अब रद्द की जा चुकी दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 में कथित भ्रष्टाचार के सिलसिले में कई दौर की पूछताछ के बाद सिसोदिया को गिरफ्तार किया था.

सिसोदिया ने अदालत में निचली अदालत के 31 मार्च के आदेश को चुनौती दी थी. अदालत ने सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि सिसोदिया इस मामले में आपराधिक साजिश के प्रथम दृष्टया सूत्रधार थे और उन्होंने दिल्ली सरकार में अपने तथा अपने सहयोगियों के लिए करीब 90-100 करोड़ रुपये की अग्रिम रिश्वत के कथित भुगतान से संबंधित आपराधिक साजिश में ”सबसे महत्वपूर्ण व प्रमुख भूमिका” निभाई.

सिसोदिया अभी इस नीति के धन शोधन से जुड़े एक मामले में न्यायिक हिरासत में हैं. इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें नौ मार्च को गिरफ्तार किया था. मामले में उनकी जमानत याचिका को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था, जिसे उन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी है. उस पर सुनवाई लंबित है.

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