ज्ञानवापी मस्जिद मामले में याचिका की सुनवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह में करेगी शीर्ष अदालत

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामला: हिन्दू पक्ष की भी दलीलें हुई पूरी, अगली सुनवाई 25 जुलाई को

नयी दिल्ली/वाराणसी. उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह हिन्दू श्रद्धालुओं की ओर से दायर दीवानी मुकदमे की स्वीकार्यता के सिलसिले में ज्ञानवापी मस्जिद समिति की आपत्तियों पर वाराणसी जिला न्यायाधीश के निर्णय का इंतजार करेगा. न्यायालय ने अदालती-आदेश के आधार पर किये गये सर्वे के दौरान ज्ञानव्यापी मस्जिद परिसर में मिले ‘शिवंिलग’ की पूजा की अनुमति देने और ‘शिवंिलग’ के जीवनकाल के निर्धारण के लिए उसकी कार्बन डेंिटग कराने के संबंध में दो रिट याचिकाओं की सुनवाई से भी इनकार कर दिया.

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि वह विवादित स्थल के सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति को वैध ठहराने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति की अपील को अक्टूबर के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए स्थगित कर रही है.

पीठ ने कहा कि उसे इस तथ्य से अवगत कराया गया है कि जिला न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई अब भी जारी है और मुकदमे की स्वीकार्यता के विषय पर आदेश-सात, नियम-11 के तहत दायर अर्जी का परिणाम आने तक मस्जिद समिति की अपील को लंबित रखा जाए.

पीठ ने सुनवाई के दौरान अंजÞुमन इंतजामिया मस्जिद प्रबंधन समिति, वाराणसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजÞेफा अहमदी से कहा कि वह आदेश-सात, नियम-11 के तहत मुकदमे की स्वीकार्यता के विषय पर दायर अर्जी का परिणाम आने तक मस्जिद समिति की अपील को लंबित रखेगी.

न्यायालय ने कहा, ‘‘देखिए, सब कुछ वाराणसी के जिला न्यायाधीश के समक्ष सीपीसी के आदेश-सात, नियम-11 के तहत दायर अर्जी पर निर्भर करता है. यदि जिला न्यायाधीश आपत्तियों को सही ठहराता है तो कुछ शेष नहीं बचता, लेकिन यदि वह आपत्तियों को खारिज कर देता है तो संबंधित पक्ष कानून के तहत उपाय तलाश सकते हैं. कमीशन की रिपोर्ट का जहां तक संबंध है तो आप अदालत के समक्ष यह मुद्दा उठा सकते हैं कि इसे (रिपोर्ट को) साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जाना चाहिए.’’ अहमदी ने स्वीकार किया कि कानून के तहत उपाय मौजूद है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि कोर्ट-कमिश्नर की नियुक्ति को बरकरार रखने वाला उच्च न्यायालय का आदेश पारित नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘‘यह विषैले पेड़ के फल के समान है. सर्वे कराने का आदेश स्पष्टतया अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर था. यदि मैं यह साबित कर दूं कि आयोग के गठन का आदेश गैर-कानूनी है, तो रिपोर्ट को खारिज करना होगा. मेरे मामले में, आयोग की रिपोर्ट के आदेश देने की स्थिति नहीं थी.’’ वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि अदालत को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कमीशन की रिपोर्ट का क्या परिणाम हुआ है और नमाज का पूरा स्थल सील कर दिया गया है.

अहमदी ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने कहा था कि कोर्ट-कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश हानिरहित है. वर्षों से जारी यथास्थिति को हटा दिया गया. इसके कारण पूजास्थल की प्रकृति बदल गयी. यह केवल एक मामला नहीं है, बल्कि ऐसा हर जगह हो रहा है. इस आदेश के बाद पूरे देश में दूरगामी परिणाम हुए हैं और इसी तरह की अर्जियां दायर की जा रही हैं.’’ वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन ने अहमदी की दलील का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि वह (अहमदी) दीवानी मुकदमे पर दलील दे रहे हैं न कि जनहित याचिका पर, और उन्हें अपनी बहस विषय-वस्तु पर केंद्रित करनी चाहिए.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि न्यायालय निचली अदालत को यह निर्देश दे सकता है कि वह आपत्तियों पर विचार करते वक्त आयोग की रिपोर्ट पर ध्यान न दे. अहमदी ने कहा कि कोर्ट-कमिश्नर की नियुक्ति को बरकरार रखने वाला उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त किया जाना चाहिए. पीठ ने तब मामले को अक्टूबर के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया और कहा कि वह हिन्दू श्रद्धालुओं की ओर से दायर दीवानी मुकदमे की स्वीकार्यता के सिलसिले में ज्ञानवापी मस्जिद समिति की आपत्तियों पर वाराणसी जिला न्यायाधीश के निर्णय का इंतजार करेगा.

शीर्ष अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिन्दू श्रद्धालुओं की ओर से दायर दीवानी मुकदमे को 20 मई को सीनियर सिविल जज के पास से वाराणसी के जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया था. साथ ही कहा था कि मामले की ‘जटिलता’ और ‘संवेदनशीलता’ को देखते हुए यह बेहतर होगा कि 25-30 साल अनुभव वाले कोई वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी इसकी सुनवाई करें.

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामला: हिन्दू पक्ष की भी दलीलें हुई पूरी, अगली सुनवाई 25 जुलाई को

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला अदालत में हिन्दू पक्ष की दलीलें बृहस्पतिवार को पूरी हो गयीं. अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 25 जुलाई की तारीख नियत की है. हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता शिवम गौड़ ने बताया कि वादी राखी सिंह की तरफ से दलीलें पूरी हो गयी हैं. उत्तर प्रदेश सरकार, जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नरेट की तरफ से सरकारी अधिवक्ता महेन्द्रनाथ पांडेय ने भी दलीलें रख दी हैं. उन्होंने बताया कि अब अगली सुनवाई की तारीख पर मुस्लिम पक्ष अपना प्रतिवाद रखेगा. इस मामले में अब दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलें रख चुके हैं.

गौड़ ने बताया, ”उपासना स्थल अधिनियम, वक्फ अधिनियम और काशी विश्वनाथ अधिनियमन को लेकर, जो हमने दलीलें पूर्व में अदालत के समक्ष रखी थी, उसी को आज पूरा किया है. हमने अदालत से कहा है कि हमारा मुकदमा पूरी तरह से सुनवाई योग्य है.” गौरतलब है कि श्रंगार गौरी की नियमित पूजा और विग्रहों की सुरक्षा के आदेश देने के आग्रह वाली एक याचिका वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में दायर की गयी थी.

अदालत ने गत 26 अप्रैल को ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर में वीडियोग्राफी-सर्वे करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल करते हुए निचली अदालत के इस आदेश को वर्ष 1991 के उपासना स्थल अधिनियम के विरुद्ध बताते हुए सर्वे पर रोक लगाने का आग्रह किया था. हालांकि, न्यायालय ने सर्वे पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. लेकिन मामले की सुनवाई जिला अदालत में स्थानांतरित करने के आदेश दिये थे.

ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान हिन्दू पक्ष ने मस्जिद के वजूखाने में कथित शिवंिलग मिलने का दावा किया था. इसी आधार पर हिन्दू पक्ष ने कथित शिवंिलग की पूजा करने की मांग उठायी थी. सर्वे की रिपोर्ट 19 मई को अदालत में दाखिल की गयी थी. मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी का मामला वर्ष 1991 के उपासना स्थल अधिनियम के खिलाफ है, लिहाजा यह मामला अदालत में सुनवाई करने लायक नहीं है. जिला अदालत में इसी पर सुनवाई हो रही है कि यह प्रकरण सुनवाई के योग्य है या नहीं.

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