आदिवासी नृत्य महोत्सव: मां सरस्वती के वंदन के साथ लोक रागिनी मंच से नृत्य की शानदार प्रस्तुति

रायपुर. छत्तीसगढ़ी संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत अपने इष्ट देव की आराधना से होती है. उसी प्रकार मां सरस्वती के वंदन के साथ लोक रागिनी मंच से नृत्य की शानदार प्रस्तुति. संस्कृति भी अनेकता में एकता की तरह है उसी का एक सुंदर समागम आज राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आखरी दिन में देखने का एक सुनहरा अवसर मिल रहा है. यह प्रस्तुति एक ऐसी बड़ी नदी की तरह है जिसमें अनेक छोटी नदियां समाहित होकर उसे समृद्ध करती हुई आगे बढ़ती है.

छत्तीसगढ़ी गीतों के संगम जिसमें सुआ नृत्य, रिलो, रेला, राउत नाचा आदि अनेक गीत समहित है उसकी सुंदर प्रस्तुति की शुरुआत मां देवी सरस्वती की आराधना से की जा रही है. छत्तीसगढ़ी लोक कला, लोक संस्कृति धार्मिक आस्थाओं से भी जुड़ी है. आदिवासी स्वंय को आदिशक्ति का धरोहर मानते हैं. सुदूर जंगल में आदिवासी ससांस्कृतिक छटा की, नृत्य के माध्यम से अद्भुत प्रस्तुति माँ दंतेश्वरी बूढ़ादेव की आराधना के साथ. मां दंतेश्वरी छत्तीसगढ़ की देवी देवताओं में एक प्रसिद्ध सिद्ध पीठ है जिसकी आराधना हमारे आदिवासी भाई बहन ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़वासी करते हैं.

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