गहलोत की इस जादूगरी से पायलट के CM बनने का सपना फिर हो सकता है चूर, पल-पल बदल रहा सियासी हवा का रुख

अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। सबकी नजर उनपर टिकी है कि एक बार फिर गहलोत क्या जादूगिरी दिखाते हैं। सीएम गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष के रेस में शामिल होने के साथ ही राजस्थान में अगला सीएम अब कौन होगा, इसकी चर्चा जोरो पर है।

अशोक गहलोत ने स्वीकार किया कि वे कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में नामांकन भरने जा रहे हैं। ऐसे में राजस्थान में सियासी हवा अब रुख बदलने लगी है। गहलोत के बाद अगला सीएम कौन होगा, इसको लेकर गुटबाजी तेज है।

सीएम को लेकर सचिन पायलट के नाम पर सबसे अधिक चर्चा है। आलम यह है कि कल तक जो नेता मुख्यमंत्री गहलोत की तारीफ करते नहीं थकते, वो अब सचिन पायलट के पाले में खिसकते नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी के एक व्यक्ति और एक पद की भी जोर-शोर से दुहाई दी जाने लगी है। अब एक बार फिर कांग्रेस में गुटबाजी साफ नजर आ रही है।

अध्यक्ष रहते हुए भी गहलोत सीएम के पद पर रह सकते हैं काबिज
वहीं अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री होंगे या नहीं ये फैसला कांग्रेस आलाकमान को ही करना है। हालांकि, राजस्थान में जिस प्रकार का सियासी माहौल बना हुआ है, ऐसा लगता है कि फैसला एक-दो दिन में ही हो जाएगा। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव का नतीजा 17 अक्टूबर को आना है। इसलिए नतीजा आने तक तो राजस्थान की बागडोर मुख्यमंत्री गहलोत के ही हाथ में है। ये भी कहा जा रहा है कि अगर गहलोत अध्यक्ष बनते है तो सीएम पद छोड़ने के लिए सोनिया गांधी से कुछ समय मांग सकते हैं। अगर ये होता है तो गहलोत 2023 तक के लिए इसको खींच सकते हैं, जो अभी की स्थिति में संभव हो सकता है। आलाकमान अशोक गहलोत की बात पर हामी भर सकता है क्योंकि कांग्रेस पंजाब वाली गलती फिर से दोहराना नहीं चाहेगी।

गहलोत पर कांग्रेस फैसला थोप नहीं सकती
अगर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के सियासी कद को देखा जाए तो गहलोत पायलट पर भारी पड़ते हैं। सियासी संकट के समय गहलोत ने हर बार साबित किया है कि वे एक कुशल राजनीतिज्ञ हैं। वे गांधी परिवार के करीबी हैं और कांग्रेस में उनकी मजबूत पकड़ है। ऐसे में उनपर कुछ थोपा नहीं जा सकता। अगर वे कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो राजस्थान का सीएम सीट छोड़ने के लिए कांग्रेस को गहलोत को मनाना पड़ेगा। संभव है कि गहलोत मान भी जाए।

बगावत के कारण गहलोत के करीबी को मिल सकती है सत्ता
वहीं सूत्रों की माने तो सचिन पायलट की बगावत कांग्रेस आलाकमान भूला नहीं है। पायलट की अदावत ने उनकी पार्टी के अंदर विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा जरूर कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि अगर कांग्रेस को राजस्थान में गहलोत का विकल्प ढूंढना पड़ा तो कोशिश रहेगी कि विद्यायक दल किसी तीसरे नेता को अपना मुखिया चुने। ऐसे में पूरी संभावना है कि सीएम गहलोत के विश्वासपात्र को मौका दिया जाएगा।

निर्दलीय विधायक अब पायलट खेमे में
राजस्थान सरकार के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के बयान को भी देखे तो ये एक बार फिर से स्पष्ट होता है कि अगला बजट भी गहलोत ही पेश करने वाले है। अगर ये होता है तो राजस्थान में मार्च 2023 तक बदलाव की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है। हालांकि, राजस्थान में सरकार के साथ मौजूद निर्दलीय विधायक गहलोत से खफा नजर आ रहे हैं। उन्होंने अब पायलट के नाम का राग अलापना शुरू कर दिया है। राजेंद्र गुढ़ा ने भी सचिन पायलट को ही सीएम बनाए जाने की मांग की है।

तीन डिप्टी सीएम बनाकर भी सीएम बने रह सकते हैं गहलोत
राजनीतिक जानकारों की माने तो उनके अनुसार अभी किसी परिवर्तन की गुंजाइश नजर नहीं आती है। कारण स्पष्ट है कि गुजरात चुनाव और दूसरा कारण है कि जब मुख्यमंत्री गहलोत ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे तो सभी बड़े फैसलों पर गहलोत की रजामंदी जरूरी होगी। वो खुद ही आलाकमान होंगे। इस परिस्थिति में अगर एक व्यक्ति एक पद की बात चलती है तो गहलोत के पास मौजूद कई विकल्पों में एक होगा कि वो मुख्यमंत्री रहते हुए तीन उप मुख्यमंत्री बना कर सभी समाज को साधने का काम करे। ऐसे में गुर्जर समाज से एक, जाट समाज से एक और राजपूत या ब्राह्मण समाज से भी चेहरों को आगे लाया जा सकता है।

पायलट सीएम बने तो संदेश जाएगा कि गहलोत कमजोर पड़ गए
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष और पायलट मुख्यमंत्री होते है तो राजस्थान में कांग्रेस पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो संभव है कि संदेश जाए कि गहलोत कमजोर पड़ गए। दोनों में शुरू से ही राजनीतिक दूरियां रही हैं।

अशोक गहलोत की जादूगरी को लेकर सभी अचंभित रहते हैं। कहते हैं कि चेहरे पर विनम्र मुस्कान लिए सीएम गहलोत के मन में क्या चल रहा है, कोई भांप नहीं सकता है। हर बार उन्होंने सियासी संकट पहले भांपकर सरकार बचाई है। इसे गहलोत की जादूगरी कहे या गहलोत की तेज किस्मत, जो भी गहलोत के सामने मुख्यमंत्री बनने की चाह लेकर आया है, वो चुनाव हार गया। फिर चाहे वो बीडी कल्ला हो, सीपी जोशी हो। इस बार देखना है कि अंतिम समय तक सीएम गहलोत कौन सी जादूगरी दिखाते हैं।

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