छत्तीसगढ़ राज्य की ये 13 विधानसभा सीटों पर रहेगी सबकी नजर…

रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा की कुल 90 सीटों के लिए होने जा रहे चुनाव के दौरान 13 सीटों पर होने वाले मुकाबले सबसे अधिक ध्यान आर्किषत करेंगे क्योंकि इनमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख नेता शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य की ये 13 विधानसभा सीटें इस प्रकार हैं :

1. पाटन — मुख्यमंत्री भूपेश बघेल वर्तमान में दुर्ग जिले के इस ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसकी सीमा राजधानी रायपुर से लगती है। 1993 से अब तक बघेल पाटन सीट से पांच बार चुने गए हैं। 2008 में वह अपने दूर के भतीजे, भाजपा के विजय बघेल से हार गए थे।

भाजपा ने एक बार फिर इस सीट से दुर्ग लोकसभा सीट से सांसद विजय बघेल को मैदान में उतारा है। बघेल कुर्मी जाति से हैं, जो राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग का एक प्रभावशाली समुदाय है। इस निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी संख्या में कुर्मी आबादी है।

2. राजनांदगांव — राजनांदगांव जिले की यह शहरी सीट वर्तमान में भाजपा के उपाध्यक्ष और तीन बार के मुख्यमंत्री रमन ंिसह के पास है। 2018 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा था, जो भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गई थीं। वह ंिसह से 16,933 वोटों से हार गईं।

छह बार के विधायक रमन ंिसह ने 2008 से तीन बार यह सीट जीती है। भाजपा ने इस बार किसी भी नेता को अपने मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश नहीं किया है।

3. अंबिकापुर — उत्तरी छत्तीसगढ़ की यह आदिवासी बहुल सीट वर्तमान में उपमुख्यमंत्री टीएस ंिसह देव के पास है। पूर्व शाही परिवार के वंशज, तीन बार विधायक रहे ंिसह देव ने 2008 में पहली बार यह सीट जीती थी।

जैव विविधता से समृद्ध हसदेव-अरण्य क्षेत्र में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित कोयला खदानों के खिलाफ स्थानीय ग्रामीणों, मुख्य रूप से आदिवासियों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। ंिसहदेव प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सामने आए थे। इसके बाद राज्य ने केंद्र से हसदेव क्षेत्र के सभी कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द करने का आग्रह किया। विरोध प्रदर्शन से इस सीट पर कांग्रेस की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है।

4. कोंटा (अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित) — अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट दक्षिण छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में है। यह वर्तमान में उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लखमा के पास है, जो राज्य के सबसे प्रभावशाली आदिवासी नेताओं में से एक हैं। यहां ज्यादातर कांग्रेस, भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया है। लखमा 1998 से लगातार पांच बार कोंटा से जीत चुके हैं।

5. कोंडागांव (अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित) — दक्षिण छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में आने वाली यह सीट वर्तमान में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के पास है।

मरकाम ने 2013 और 2018 में यहां से भाजपा की प्रमुख आदिवासी महिला नेता और पूर्व मंत्री लता उसेंडी को हराया था। उसेंडी को हाल ही में भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया था। माना जाता है कि मरकाम के मुख्यमंत्री बघेल के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं, अत: उनको जुलाई में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।

6. रायपुर शहर दक्षिण — यह शहरी निर्वाचन क्षेत्र भाजपा के प्रभावशाली नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पास है। सात बार के विधायक, अग्रवाल 1990 से इस सीट पर लगातार जीत रहे हैं। कांग्रेस के नेता कन्हैया अग्रवाल ने 2018 में अग्रवाल को कड़ी टक्कर दी थी। कन्हैया ने बृजमोहन के खिलाफ 60,093 वोट हासिल किए थे। इस चुनाव में भाजपा नेता को 77,589 वोट मिले थे।

7. दुर्ग ग्रामीण — दुर्ग जिले की इस ग्रामीण सीट पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के एक प्रमुख समुदाय साहू की बड़ी आबादी है। यह सीट वर्तमान में मंत्री ताम्रध्वज साहू के पास है, जो एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं। साहू के बारे में माना जाता है कि उन्होंने 2018 में साहू मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

2018 में पार्टी के सत्ता हासिल करने के बाद साहू मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे। साहू ने इससे पहले 2014 में दुर्ग लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी।

8. सक्ती — छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष चरणदास महंत कांग्रेस के एक अन्य प्रमुख ओबीसी नेता हैं जो इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। चार बार के विधायक महंत 2018 में पहली बार इस सीट से चुने गए। वह तीन बार के लोकसभा सांसद भी हैं और केंद्र की पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय राज्य मंत्री थे।

9. कवर्धा — कबीरधाम जिले की यह सीट वर्तमान में प्रमुख मुस्लिम नेता मोहम्मद अकबर के पास है। चार बार के विधायक अकबर ने 2018 में पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ा और पूर्व विधायक भाजपा के अशोक साहू के खिलाफ 59,284 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की। अकबर बघेल सरकार में वन मंत्री हैं।
अकबर को इस बार इस सीट पर कुछ कठिनाई हो सकती है क्योंकि कवर्धा शहर में 2021 में हुई सांप्रदायिक ंिहसा के बाद ध्रुवीकरण होने की आशंका है।

10. साजा — बेमेतरा जिले का यह निर्वाचन क्षेत्र वर्तमान में राज्य के कृषि मंत्री और प्रभावशाली ब्राह्मण नेता रंिवद्र चौबे के पास है। वह सात बार से विधायक हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र में इस साल की शुरुआत में साहू समुदाय के एक व्यक्ति की हत्या और उसके बाद जवाबी कार्रवाई में दूसरे संप्रदाय के दो लोगों की हत्या के चलते सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ। इसकी वजह से ध्रुवीकरण का असर साजा के साथ-साथ कवर्धा में भी चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है।

11. आरंग (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट) — रायपुर जिले के इस निर्वाचन क्षेत्र का वर्तमान में प्रतिनिधित्व शहरी प्रशासन मंत्री शिव कुमार डहरिया करते हैं, जो प्रभावशाली सतनामी संप्रदाय के नेता हैं। राज्य में अनुसूचित जाति की बड़ी आबादी इसी संप्रदाय की है।

डहरिया पहली बार 2003 में पलारी से और फिर 2008 में बिलाईगढ़ सीट से छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए चुने गए थे। इस बार उन्हें जोखिम का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सतनामी संप्रदाय के गुरु बालदास साहेब और उनके समर्थक हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। बालदास ने अपने बेटे खुशवंत दास साहेब के लिए आरंग से टिकट मांगा है।

12. खरसिया — यह सीट उत्तरी छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में आती है, जहां अन्य पिछड़ा वर्ग के अघरिया समुदाय का दबदबा है। उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है।

झीरम घाटी नक्सली हमले में अपने पिता और प्रमुख कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल के मारे जाने के बाद उमेश पटेल 2013 में इस सीट से पहली बार चुने गए थे। नंदकुमार पटेल खरसिया से पांच बार निर्वाचित हुए थे।

13. जांजगीर-चांपा — अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी वाले इस क्षेत्र में हर चुनाव में विधायक बदलने की परंपरा है।
वरिष्ठ भाजपा नेता नारायण चंदेल इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन को हराकर इस सीट से तीन बार (1998, 2008 और 2018) चुने गए थे। देवांगन ने उन्हें 2003 और 2013 में हराया था।

भाजपा की नजर छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी पर

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में 15 साल तक राज्य की सत्ता पर काबिज रही भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था. सत्ता विरोधी लहर के अलावा, भ्रष्टाचार के आरोप, पार्टी संगठन और उसके नेतृत्व वाली सरकार के बीच समन्वय की कमी और अन्य पिछड़ा वर्ग द्वारा कांग्रेस के पक्ष में मतदान करना पांच साल पहले उसकी हार के कुछ प्रमुख कारणों में से एक माना गया था.

2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने संख्या के आधार पर प्रभावशाली अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साहू समुदाय से आने वाले 14 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा लेकिन उनमें से 13 को हार का सामना करना पड़ा. भाजपा ने पिछले साल साहू समाज से आने वाले पार्टी सांसद अरुण साव को अपनी राज्य इकाई का प्रमुख नियुक्त किया. पार्टी का यह कदम इस बार उसके पक्ष में काम कर सकता है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा में 90 सीटें हैं. भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए 21 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है और उनमें से अधिकांश पंचायत निकायों के प्रतिनिधि हैं, जो दर्शाता है कि पार्टी पुराने चेहरों की जगह दूसरे स्तर के नेताओं के साथ चुनावी लड़ाई के लिए कमर कस रही है. पार्टी ने किसी एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश किए बिना सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

छत्तीसगढ़ में भाजपा की ताकत, कमजोरियां, अवसर और खतरे का आकलन.
भाजपा की ताकत –
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता राज्य में पार्टी के पक्ष में काम कर सकती है. 2018 में कांग्रेस से करारी हार झेलने के बाद भाजपा ने मोदी की मजबूत छवि के दम पर 2019 में राज्य की 11 लोकसभा सीटों में से नौ पर कब्जा करके प्रभावशाली वापसी की थी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जिसने 2018 में खुद को भाजपा की राज्य इकाई से दूर कर लिया था इस बार जमीन पर सक्रिय दिख रहा है. भाजपा वर्तमान कांग्रेस शासन के दौरान बेमेतरा और कबीरधाम जिलों में हुई सांप्रदायिक हिंसा और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कथित धर्मांतरण की घटनाओं को सामने रखकर अपनी पारंपरिक हिंदुत्व विचारधारा को पेश करने की कोशिश कर रही है.

भाजपा की कमजोरियां –
राज्य में भाजपा में दूसरे स्तर के मजबूत नेतृत्व का अभाव. भाजपा के गाय और भगवान राम से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक मुद्दे को कांग्रेस ने छीन लिया है. जुलाई 2020 में मुख्यमंत्री बघेल ने दो रुपए प्रति किलोग्राम पर गाय का गोबर खरीदने के लिए गोधन न्याय योजना शुरू की. गांवों में गौठान (गांवों में वे स्थान जहां गायों को दिन के समय रखा जाता है) का निर्माण किया, जिन्हें ग्रामीण औद्योगिक क्षेत्र में रूप में परिर्वितत किया जा रहा है. भगवान राम और माता कौशल्या से संबंधित प्रसंगों की स्मृतियों को जीवित रखने के लिए राज्य सरकार ने ‘राम वन गमन पर्यटन र्सिकट’ परियोजना शुरू की है तथा वनवास के दौरान भगवान राम छत्तीसगढ़ में जिन स्थानों से दक्षिण गए थे उन नौ स्थानों का पर्यटन स्थल के रूप में विकास शुरू किया है. सरकार ने अब तक इनमें से चार स्थानों पर भगवान राम की ऊंची मूर्तियां स्थापित की हैं. राज्य के ग्रामीण हिस्सों में विधानसभा क्षेत्रों के लोग भाजपा से निराश हैं, क्योंकि वह अपने 15 साल के शासन के दौरान उनसे किए गए कुछ वादों को पूरा करने में विफल रही है.

भाजपा के लिए अवसर –
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग और शराब व्यापार में कथित घोटालों को लेकर सत्ताधारी दल कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा है.
राज्य में ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के नेताओं के बीच कथित मतभेद अब नहीं है लेकिन लेकिन तनाव अभी भी बना हुआ है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस के भीतर मचे घमासान से भाजपा को फायदा हो सकता है. भाजपा को उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी (आप) और सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार कांग्रेस के आधार क्षेत्र में सेंध लगा सकते हैं.

भाजपा के लिए चुनौतियां-
राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास वर्तमान में 71 सीटें हैं, जबकि भाजपा की संख्या 13 है. कांग्रेस ने 2018 में 68 सीटें हासिल की थी और उसे 42.8 प्रतिशत वोट मिले थे, जो भाजपा से 10 प्रतिशत अधिक था. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक भाजपा को इस भारी अंतर को पाटने और 46 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार करने की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
भाजपा की राष्ट्रवाद की रणनीति का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया है, जो राज्य में पहली बार हुआ. कांग्रेस का दावा है कि रमन सिंह के 15 साल के शासन के दौरान छत्तीसगढ़ की मूल आबादी को सभी क्षेत्रों में किनारे कर दिया गया और किसी भी ओबीसी, अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के नेताओं को सरकार में प्रमुखता नहीं दी गई. विशेषज्ञों के मुताबिक कांग्रेस सरकार की किसान हितैषी योजनाएं भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं. तीन प्रमुख योजनाएं – राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गोधन न्याय योजना (गोबर खरीद योजनाएं) और राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर कृषि न्याय योजना ने कांग्रेस को राज्य के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद की है. कांग्रेस राज्य में लगातार भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर महंगाई बढ़ाने और यात्री ट्रेनों को लगातार रद्द करने का आरोप लगा रही है. ये सब मुद्दे राज्य में भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं.

छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए अवसरों के साथ चुनौतियां भी कम नहीं

छत्तीसगढ़ में 2003 से 2018 के बीच 15 वर्षों तक शासन करने वाली भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के पास वर्तमान में 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 71 सीटें हैं. पार्टी ने आगामी चुनावों में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार की किसान समर्थक, आदिवासी समर्थक और गरीब समर्थक योजनाओं के दम पर 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. सत्ताधारी दल मुख्यमंत्री बघेल की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में है क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है.

छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस की ताकत, कमजोरियां, अवसर और चुनौतियों को लेकर एक विश्लेषण.
कांग्रेस की ताकत
राजीव गांधी किसान न्याय और गोधन न्याय योजना सहित कई कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, किसानों और ग्रामीण आबादी के लिए योजनाएं, बेरोजगारी भत्ता के अलावा समर्थन मूल्य पर बाजरा तथा विभिन्न वन उपज की खरीद कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं को आर्किषत कर सकती है. मुख्यमंत्री बघेल ने स्थानीय लोगों में अपनी लोकप्रियता बढ़ाते हुए अपनी छवि ‘माटी पुत्र’ के रूप में विकसित की है. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है. पिछले पांच वर्षों में पार्टी ने बूथ स्तर तक अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है. राजीव युवा मितान क्लब योजना से जुड़े करीब तीन लाख युवा, मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में पार्टी की मदद कर सकते हैं. इस योजना का उद्देश्य राज्य के युवाओं को रचनात्मक कार्यों से जोड़ना, नेतृत्व कौशल विकसित करना और उन्हें उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करना है. कांग्रेस ने 2018 के बाद छत्तीसगढ़ में पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की और राज्य में अपनी मजबूती स्थिति का अहसास कराया.

कांग्रेस की कमजोरियां
कांग्रेस की राज्य इकाई में गुटबाजी और अंदरुनी कलह है. पिछले पांच वर्षों में, पार्टी में मुख्यमंत्री बघेल के धुर विरोधी टी.एस. सिंहदेव ने कई बार विद्रोह का झंडा उठाया है. आखिरकार पार्टी को इस साल की शुरुआत में उन्हें उपमुख्यमंत्री नियुक्त करके संतुष्ट करना पड़ा.
वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के भी बघेल के साथ अच्छे संबंध नहीं थे. हालांकि, कुछ महीने पहले ही उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. इन सबके बावजूद पार्टी में अंदरूनी कलह अभी भी बरकरार बताई जाती है. बघेल सरकार राज्य में कोयला परिवहन, शराब बिक्री, जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) कोष के उपयोग और लोक सेवा आयोग भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है. वर्तमान शासन के दौरान राज्य में धर्मांतरण, सांप्रदायिक हिंसा और झड़पों की कुछ घटनाएं हुईं, जिससे विपक्षी दल भाजपा को कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाने का मौका मिला.

कांग्रेस के पास अवसर
पिछले लगभग पांच वर्षों में भाजपा कांग्रेस पर प्रभावी हमला करने में विफल रही है. भाजपा में नेतृत्व का मुद्दा लगातार बना हुआ है. 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष को तीन बार बदला है और पिछले वर्ष विधानसभा में अपने नेता प्रतिपक्ष को भी बदल दिया है. भाजपा ने रमन सिंह को भी लगभग दरकिनार कर दिया है, जो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहे. इनके कार्यकाल में सरकार पर नागरिक आपूर्ति घोटाले और चिट फंड घोटाले का आरोप लगा. राज्य में कांग्रेस लगातार भाजपा पर निशाना साध रही है और दावा कर रही है कि उसके केंद्रीय नेतृत्व को राज्य में पार्टी के अग्रिम पंक्ति के नेताओं पर भरोसा नहीं है. कांग्रेस के खिलाफ जा सकते हैं कुछ मुद्दे छत्तीसगढ़ में शराबबंदी और संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अधूरे वादे विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों के क्रोध का कारण बन सकते हैं. ‘मोदी फैक्टर’ जो भाजपा को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर बढ़त दिलाता है.
आम आदमी पार्टी (आप) और सर्व आदिवासी समाज (आदिवासी संगठनों का एक समूह) के चुनाव में ताल ठोंकने से कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लग सकती है. वर्ष 2018 में चुने गए 68 कांग्रेस विधायकों में से कुल 35 पहली बार चुने गए थे और उनमें से अधिकांश अब अपने प्रदर्शन को लेकर जनता के विरोध का सामना कर रहे हैं.

छत्तीसगढ़ : कांग्रेस का कल्याणकारी योजनाओं पर जोर, भाजपा को सत्ता में वापसी की उम्मीद

छत्तीसगढ़ सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकप्रियता के दम पर सत्ताधारी दल कांग्रेस को उम्मीद है कि प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में उसे फिर से जीत मिलेगी. वहीं भाजपा फिर से सत्ता हासिल करने के लिए प्रयास कर रही है.

छत्तीसगढ़ में आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस सबसे प्रमुख राजनीतिक दल माने जाते हैं. राज्य में कुछ अन्य राजनीतिक दल भी हैं लेकिन उनका प्रभाव कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) भाजपा और कांग्रेस के गढ़ को भेदने की कोशिश कर रही है. छत्तीसगढ़ में 2018 के 90 सदस्यीय विधानसभा के चुनावों के बाद ह्लकमजोरह्व विपक्ष तेजी से कांग्रेस के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में उभर रहा है.

राज्य में एक वर्ष पहले तक कांग्रेस अपनी लोकलुभावन योजनाओं और ‘छत्तीसगढि.यावाद’ के दम पर आराम से एक बार फिर सरकार बनाने की स्थिति में दिख रही थी. पिछले कुछ महीनों में हालांकि परिदृश्य बदलता दिख रहा है. राज्य में भाजपा कथित घोटालों, तुष्टिकरण की राजनीति और ‘धर्मांतरण’ को लेकर बघेल सरकार के खिलाफ लगातार हमला कर रही है. भाजपा अब चुनावी रणनीति के तहत सरकार को भ्रष्टाचार और कुशासन के मुद्दों पर घेरने की कोशिश कर रही है.

भाजपा अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है. वहीं पार्टी के स्टार प्रचारक राज्य में अपनी यात्राओं के दौरान कई मुद्दों, विशेषकर भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस सरकार पर खुलकर हमले कर रहे हैं. कुछ महीने पहले तक भाजपा की राज्य इकाई जो गुटबाजी से ग्रस्त दिखाई दे रही थी पिछले कुछ महीनों में आक्रामक हो गई है.

राज्य में चुनाव के करीब आते ही भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह ने यहां कई बैठकें की है तथा प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में अच्छी भीड़ ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है. पिछले तीन महीनों में अपनी चार रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कोयला, शराब, गोबर खरीद और जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) फंड के उपयोग सहित हर क्षेत्र और सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार तथा कथित घोटालों को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है.

प्रधानमंत्री ने भाजपा के सत्ता में आने पर भर्ती परीक्षा आयोजित करने वाले राज्य लोक सेवा आयोग (पीएससी) में कथित घोटाले की जांच कराने का भी वादा किया है. राज्य में हो रहे इस विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप भी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. आप को 2018 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी.

वहीं आदिवासी समुदायों की संस्था ‘सर्व आदिवासी समाज’ के चुनाव मैदान में आने से इस बार का चुनाव दिलचस्प हो सकता है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सत्ताधारी दल को नुकसान हो सकता है. राज्य में आदिवासियों के हितों के लिए काम करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) भी चुनाव मैदान में है. राज्य की आबादी में लगभग 32 प्रतिशत हिस्सेदारी जनजातीय समुदाय की है.

राज्य में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले ही कांग्रेस, भाजपा और आप के शीर्ष नेताओं ने रैलियों को संबोधित करने और अपनी चुनावी रणनीतियों के लिए राज्य का लगातार दौरा किया है. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 के चुनाव कांग्रेस ने भारी जीत दर्ज करके भाजपा के 15 साल लंबे शासन को समाप्त कर दिया था.

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 68 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा 15 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही.
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा स्थापित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) को पांच सीटें मिली थीं और उसकी सहयोगी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी.

कांग्रेस को 2018 में 43.04 प्रतिशत मत मिले थे, जो भाजपा (32.97 प्रतिशत) से लगभग 10 प्रतिशत अधिक था. सत्ताधारी दल ने 2018 के बाद पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में जीत के साथ राज्य में अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है. वर्तमान में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 71 है. वहीं भाजपा के पास 13, जेसीसी(जे) के पास तीन और बसपा के पास दो सीटें हैं. एक सीट रिक्त है.

ओबीसी और ग्रामीण मतदाताओं पर अच्छी पकड़ रखने वाले मुख्यमंत्री बघेल की लोकप्रियता तथा किसानों, आदिवासियों और गरीबों पर केंद्रित सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के दम पर कांग्रेस 2023 में 75 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है. राज्य में महीनों तक बघेल के साथ कथित मनमुटाव में रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव को जून में उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने और जुलाई में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे मोहन मरकाम को मंत्रिमंडल में शामिल करने के कांग्रेस के कदम को चुनाव से पहले अंदरूनी कलह को कम करने के प्रयासों के रूप में देखा गया.

राज्य में किसानों, भूमिहीन मजदूरों, बेरोजगार युवाओं और पशु मालिकों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाओं को कांग्रेस द्वारा बड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने का प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. वहीं भाजपा के राष्ट्रवाद के मुकाबले बघेल ने क्षेत्रीय गौरव को बढ़ावा देने की कोशिश भी यहां चर्चा का विषय है. कांग्रेस अक्सर भाजपा पर रमन सिंह के नेतृत्व में अपने 15 साल के शासन के दौरान ‘छत्तीसगढि.या लोगों’ की उपेक्षा करने का आरोप लगाती रही है.

इधर भाजपा खोई हुई सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए राज्य में कथित भ्रष्टाचार, धर्मांतरण और शराब पर प्रतिबंध सहित अन्य अधूरे चुनावी वादों को लेकर सत्ताधारी दल को घेर रही है. भाजपा ने कांग्रेस सरकार पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि यह ‘भूपेश-अकबर-ढेबर’ (राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अकबर और रायपुर के महापौर ऐजाज ढेबर के संदर्भ में) की सरकार है.

विपक्षी दल ने यह भी आरोप लगाया है कि आदिवासी बहुल इलाकों में धर्मांतरण हो रहा है तथा दावा किया कि सरकार उन पर अंकुश लगाने में विफल रही है. राज्य में भाजपा ने अब तक 21 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जबकि सत्ताधारी दल कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है.

दोनों प्रमुख दलों ने कहा है कि वे सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चुनाव लड़ेंगे, न कि किसी एक राजनेता के चेहरे पर. विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में कांग्रेस की सहयोगी आप ने भी अब तक 22 उम्मीदवारों की घोषणा की है, जिससे संकेत मिलता है कि गठबंधन राज्य में काम नहीं करेगा. केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी क्षेत्रीय संगठन जेसीसी (जे) के वोट हासिल करके सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, जिसे 2020 में इसके संस्थापक अजीत जोगी की मृत्यु के बाद लगभग हाशिये पर पहुंच गया है.

जोगी के संगठन को पिछले चुनावों में 7.6 प्रतिशत मत मिले थे और उन्होंने पांच सीटें जीती थीं, जो राज्य में किसी क्षेत्रीय पार्टी द्वारा अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन था. इसके गठबंधन सहयोगी बसपा को 2018 चुनावों में 4.27 प्रतिशत वोट और दो सीटें मिलीं. इस बार मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से हाथ मिलाया है, जिसका कुछ क्षेत्रों में प्रभाव है. सर्व आदिवासी समाज (एसएएस) ने ‘हमर राज’ नाम से एक राजनीतिक संगठन बनाया है और घोषणा की है कि वह 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगा, जिसमें अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के लिए आरक्षित सभी 29 सीटें शामिल होंगे. आप और एसएएस दोनों कांग्रेस के ग्रामीण तथा आदिवासी मतदाता वाले क्षेत्रों में सेंध लगा सकते हैं.

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