कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका को मिलकर नागरिकों के जीवन को सुगम बनाना चाहिए: राष्ट्रपति

नयी दिल्ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान को देश का सबसे पवित्र ग्रंथ बताते हुए मंगलवार को कहा कि इसकी भावना के अनुसार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का दायित्व मिल-जुलकर नागरिकों के जीवन को सुगम बनाना है. मुर्मू ने संविधान दिवस के अवसर पर यह भी कहा कि देश के संविधान में प्रत्येक नागरिक के मौलिक कर्तव्य स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं जिसमें देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने, सौहार्द्र बढ़ाने एवं महिलाओं की गरिमा बनाकर रखने पर जोर दिया गया है.

संविधान को अंगीकार किए जाने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ”संविधान की भावना के अनुसार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का दायित्व मिल-जुलकर नागरिकों के जीवन को सुगम बनाना है. संसद द्वारा पारित किए गए अधिनियमों से इन आकांक्षाओं को मजबूती मिली है.” उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने देश के सभी वर्गों, विशेष रूप से कमजोर वर्ग के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं जिनसे उनका जीवन बेहतर हुआ है और उन्हें प्रगति के अवसर मिल रहे हैं. मुर्मू ने कहा कि गरीबों को पक्का घर, बिजली, पानी, सड़क के साथ खाद्य सेवा और चिकित्सा सुविधा मिल रही है.

मुर्मू ने कहा कि समग्र और समावेशी विकास के ऐसे अनेक प्रयास हमारे संवैधानिक आदर्शों को आगे बढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के प्रयासों से न्यायपालिका को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास कर रही है. मुर्मू ने कहा, ”हमारा संविधान, हमारे लोकतांत्रिक गणतंत्र की सुदृढ़ आधारशिला है. हमारा संविधान, हमारे सामूहिक और व्यक्तिगत स्वाभिमान को सुनिश्चित करता है.” उन्होंने कहा, ”बदलते समय की मांग के अनुसार नए विचारों को अपनाने की व्यवस्था हमारे दूरदर्शी संविधान निर्माताओं ने बनाई थी. हमने संविधान के माध्यम से सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के अनेक बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया है.” उन्होंने संविधान सभा के अध्यक्ष एवं प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और संविधान के रचनाकार डॉ बाबासाहब भीमराव आंबेडकर के योगदान का भी उल्लेख किया.

मुर्मू ने कहा, ”बाबासाहब आंबेडकर की प्रगतिशील और समावेशी सोच की छाप हमारे संविधान पर अंकित है. संविधान सभा में बाबासाहब के ऐतिहासिक संबोधनों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि भारत, लोकतंत्र की जननी है.” राष्ट्रपति ने संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों के योगदान का भी स्मरण किया.

उन्होंने कहा, ”हमारी संविधान सभा में हमारे देश की विविधता को अभिव्यक्ति मिली थी. संविधान सभा में सभी प्रान्तों और क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति से, अखिल भारतीय चेतना को स्वर मिला था. मेरा मानना है कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित आदर्श एक दूसरे के पूरक हैं.” राष्ट्रपति ने कहा, ”समग्र रूप से, ये सभी आदर्श ऐसा वातावरण उपलब्ध कराते हैं जिसमें हर नागरिक को फलने-फूलने, समाज में योगदान देने, तथा साथी नागरिकों की मदद करने का अवसर मिलता है.”

राष्ट्रपति ने कहा, ”हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का निर्देश दिया है. आज एक अग्रणी अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ हमारा देश विश्वबंधु के रूप में यह भूमिका बखूबी निभा रहा है.” मुर्मू ने कहा, ”देश के आर्थिक एकीकरण के लिए स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के रूप में किया गया है. वर्ष 2018 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है.” उन्होंने कहा कि महिला नीत विकास को यथार्थ रूप देने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया गया जिससे महिला सशक्तीकरण के नए युग की शुरुआत हुई है.

मुर्मू ने देश में दंड के स्थान पर न्याय की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए तीन नए आपराधिक कानूनों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का भी जिक्र किया. उन्होंने देशवासियों से संवैधानिक आदर्शों को अपने आचरण में ढालने, मूल कर्तव्यों का पालन करने तथा वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के राष्ट्रीय लक्ष्य के प्रति समर्पण के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया.

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