बंगबंधु से मूर्तिभंजन तक: बांग्लादेश में उथल-पुथल के बाद मुजीबुर रहमान की विरासत पर विवाद

ढाका: जब बांग्लादेश में जनता के विरोध के कारण शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार गिरी, तो कॉलेज के छात्र अलिफ हुसैन को लगा कि अपदस्थ प्रधानमंत्री इसकी हकदार थीं, लेकिन पांच अगस्त को प्रदर्शनकारियों द्वारा ढाका में शेख मुजीबुर रहमान की प्रतिमा को गिराए जाने से वह बहुत व्यथित हो गए।

ढाका में रहने वाले छात्र ने अफसोस जताते हुए कहा, यह बिल्कुल गलत था। उन्होंने हमारे देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, वह राष्ट्रपिता हैं, हमारे बंगबंधु हैं, गुस्से में आकर उनका इतना अपमान कैसे किया जा सकता है। उन्हें आमतौर पर रहमान या मुजीब के नाम से पुकारा जाता था। उनकी विरासत सड़कों, संस्थानों, सार्वजनिक स्थलों, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिए गए उनके जोशीले भाषणों, बांग्लादेशी मुद्रा पर उनके चेहरे और हाल तक मूर्तियों और भित्तिचित्रों के माध्यम से जीवित है।

अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शनों के कारण पिछली सरकार गिर गई और हसीना पांच अगस्त को राजनीतिक उथल-पुथल के बीच देश छोड़कर भारत चली गयीं। उनके जाने के बाद, उन्हें और भी अधिक सार्वजनिक अपमान व आलोचना का सामना करना पड़ा और उनके पिता की विरासत भी सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आ गईं। प्रदर्शनकारियों ने ढाका के मध्य में बिजॉय सरनी में रहमान की विशाल प्रतिमा पर अपना गुस्सा निकाला और उसे गिरा दिया। उनकी मूर्ति गिराये जाने की तस्वीरें स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया चैनलों पर प्रसारित की गयीं।

बंगबंधु – यह उपनाम बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति की विरासत का परिचायक है – को दर्शाने वाले सार्वजनिक भित्तिचित्रों को विकृत कर दिया गया, तथा धानमंडी में उनके घर को, जहां 15 अगस्त 1975 को उनकी और उनके परिवार के अधिकतर सदस्यों की हत्या कर दी गई थी और जिसे बाद में एक स्मारक में बदल दिया गया था, प्रदर्शनकारियों द्वारा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

ढाका विश्वविद्यालय क्षेत्र में, प्रसिद्ध शिक्षक छात्र केंद्र (टीएससी) की इमारत के सामने की ओर दीवार पर पैनलों की एक श्रृंखला में पुराने मोजेक लगे हैं, जिन पर महान हस्तियों और ऐतिहासिक पलों को दर्शाया गया है। इनमें 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना, जिसके परिणामस्वरूप नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ, जैसे दृश्य उकेरे गए थे।

रहमान को दर्शाने वाले मोजेक पैनल को विकृत कर दिया गया है तथा उनके चेहरे पर कालिख पोत दी गई है।
ढाका विश्वविद्यालय परिसर में, बंगबंधु को दर्शाती एक दीवार पर बने विशाल भित्तिचित्र को क्षतिग्रस्त कर दिया गया तथा उस पर कालिख पोत दी गयी।

पांच अगस्त के बाद विश्वविद्यालय क्षेत्र में सार्वजनिक दीवारों पर बनाई गई कई कलाकृतियां हसीना और उनके भारत भाग जाने का मजाक उड़ाती नजर आती हैं और उस जन आंदोलन की प्रशंसा करती हैं, जिसे अब कई बांग्लादेशी ‘36 जुलाई’ का ‘विजय दिवस’ कहते हैं।

देशवासियों द्वारा आदरणीय माने जाने से लेकर उनकी छवियों और स्मारकों को अपमानित किये जाने तक, रहमान की विरासत अब बांग्लादेश के उथल-पुथल के बाद के समाज में काफी विवादित है। युवा प्रदर्शनकारियों को कई लोग ‘जनरेशन जेड’ कह रहे हैं, जिनका जन्म 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद हुआ है, और राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बांग्लादेश के बारे में उनका विचार 1971 से पहले की पीढि़यों के विचार से ह्लअलगह्व है।

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के तहत 1971 के युद्ध में लड़े पूर्व सैनिकों के परिजनों के लिये विवादित आरक्षण को लेकर छात्रों का आक्रोश विरोध प्रदर्शन के तौर पर सामने आया। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री अब्दुल मोइन खान ने बृहस्पतिवार को ढाका में ‘पीटीआई’ को दिये एक साक्षात्कार में कहा, ह्लअगर वह एक वास्तविक नेता होतीं, तो वह देश को उस स्थिति तक नहीं पहुंचातीं। यह पूछे जाने पर कि क्या रहमान की विरासत का अपमान 1971 के मुक्ति संग्राम को कमजोर कर रहा है, उन्होंने कहा, ह्लनहींह्व।

खान ने कहा, यह एक सतत प्रक्रिया है, आपको इसे तैयार करना और सुधारना होता है, मानव समाज किसी भी स्थान पर स्थिर नहीं रहता है। यह (हालिया आंदोलन) किसी भी चीज को कमजोर नहीं कर रहा है।ह्व लेकिन, बांग्लादेशियों के एक वर्ग को यह डर सता रहा है कि ह्लमुजीब की विरासत धीरे-धीरे मिट सकती है या कमजोर हो सकती है। इस तर्क का खंडन समर्थक प्रदर्शनकारियों द्वारा किया जाता है, जिनका दावा है कि ह्लअवामी लीग सरकार द्वारा उन्हें इतिहास में अनुचित स्थान दिया गया और उनके जीवन के कई विवादास्पद पहलुओं को लोगों को नहीं बताया गया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button