नौकरियों के सृजन के लिए भारत को लगातार 8% की वार्षिक वृद्धि दर रखने की जरूरत : सुब्रमण्यम
नयी दिल्ली. भारत को गरीबी और असमानता को कम करने तथा पर्याप्त संख्या में नौकरियों के सृजन के लिए निरंतर आधार पर आठ प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने की जरूरत है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) में भारत के कार्यकारी निदेशक कृष्णमूर्ति वेंकट सुब्रमण्यम ने यह बात कही है. भारतीय अर्थव्यवस्था 2023 की अंतिम तिमाही में उम्मीद से बेहतर 8.4 प्रतिशत की दर से बढ़ी है. यह पिछले डेढ़ साल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर का सबसे ऊंचा आंकड़ा है.
ओएमआई फाउंडेशन के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यम ने कहा, ”भले ही हम सात प्रतिशत की दर से बढ़ें, हमें इससे संतुष्ट नहीं होना चाहिए. हमें आठ प्रतिशत और उससे अधिक की दर हासिल करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि देश को बहुत सारा बुनियादी ढांचा बनाने की जरूरत है.” उन्होंने कहा कि आठ प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने से हमारे पास बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा करने की क्षमता होगी. इससे गरीबी और असमानता घटेगी.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर-दिसंबर में वृद्धि दर पिछले तीन वर्षों की 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर से अधिक है. इसके चलते चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाकर 7.6 प्रतिशत करने में मदद मिली है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने घरेलू खपत में सुधार और निजी पूंजीगत व्यय में वृद्धि के आधार पर अगले वित्त वर्ष में वृद्धि दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. सुब्रमणयम ने कहा कि भारत ने राजकोषीय घाटे को तीन प्रतिशत पर लाने और ‘ऋण से जीडीपी अनुपात’ को 66 प्रतिशत से नीचे लाने का जो लक्ष्य तय किया है वह पश्चिमी मॉडल की नकल है. संभवत: भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह तार्किक नहीं है.