महुआ मोइत्रा खतरा नहीं; तृणमूल के कुशासन ने राजनीति में आने को विवश किया: ‘राजमाता’ अमृता रॉय

कोलकाता. पश्चिम बंगाल में कृष्णानगर लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार ‘राजमाता’ अमृता रॉय ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार महुआ मोइत्रा को अपने लिए खतरा मानने से इनकार करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार के ”कुशासन और भ्रष्टाचार” ने उन्हें राजनीति में आने के लिए विवश किया.

रॉय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के नियम अधिसूचित करने के केंद्र सरकार के फैसले की यह कहते हुए सराहना की कि यह निर्णय मतुआ समुदाय सहित उन सभी समुदायों के लोगों के लिए लाभप्रद साबित होगा, जो धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए पड़ोसी देशों से भारत आए हैं.

महाराजा कृष्णचंद रॉय के शाही परिवार से संबंध रखने वाली और ‘राजबाड़ी की राजमाता’ की संज्ञा से सुशोभित रॉय ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये साक्षात्कार में कहा कि पश्चिम बंगाल की जनता राज्य सरकार के कुशासन और भ्रष्टाचार के आरोपों से उब चुकी है.
उन्होंने कहा, ”राजनीति में शामिल होना एक सोचा-समझा निर्णय था. मैं एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति हूं, लेकिन मैं अनुरोध पर भाजपा में शामिल हुई हूं, क्योंकि यह एक अच्छा राजनीतिक मंच है. बंगाल में रहने वाले सभी लोग तृणमूल के कुशासन से तंग आ चुके हैं. लोग तृणमूल से खुश नहीं हैं.” रॉय ने दावा किया कि उन्होंने जहां कहीं भी प्रचार किया उन्होंने पाया कि राज्य की जनता भ्रष्टाचार और कुशासन के कारण किस प्रकार अपने अधिकारों से वंचित हैं.

उन्होंने कहा, ”मैं राज्य के लोगों के विकास के लिए काम करना चाहती हूं. लोगों ने बहुत सारी उम्मीदों के साथ तृणमूल कांग्रस को वोट दिया था, लेकिन वे अब निराश हैं. आप कह सकते हैं कि इस निराशा ने मुझे राजनीति में आने के लिए मजबूर किया है. एक महिला और एक नागरिक के तौर पर मैंने सोचा कि राज्य की स्थिति को देखते हुए मेरी भी भूमिका है.” पेशे से फैशन डिजाइनर रॉय ने दावा किया कि प्रचार के दौरान उन्हें जिस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है, उससे उन्हें यह विश्वास है कि वह तृणमूल की महुआ मोइत्रा को हराकर भारी अंतर से जीत हासिल करेंगी.

‘राजमाता’ ने कहा, “मैं अपने प्रतिद्वंद्वी को खतरा नहीं मानती क्योंकि मुझे जो प्रतिक्रिया और प्यार मिल रहा है, वह कृष्णानगर के लोगों के बीच मेरी स्वीकार्यता को दर्शाता है.” राजमाता के परिवार का कृष्णानगर क्षेत्र में काफी सम्मान है. सीएए के कार्यान्वयन और मतुआ बहुल अपने निर्वाचन क्षेत्र में इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “सीएए उन हिंदुओं की मदद करेगा, जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न के कारण पड़ोसी देशों से भागना पड़ा था.”

गत 13 मार्च को अधिसूचित किये गये सीएए के नियमों के अनुसा,र सरकार अब वैसे उत्पीड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई- को भारत की नागरिकता प्रदान करना शुरू कर देगी, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भागकर भारत पहुंचे हैं. संदेशखालि मामले पर रॉय ने कहा कि ऐसी “शर्मनाक घटनाएं” राज्य की जमीनी स्थिति को दर्शाती हैं. उन्होंने कहा कि अगर वह चुनाव जीतती हैं तो महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य उनका मुख्य केंद्रबिंदु होगा.

उन्होंने कहा, “कृष्णानगर में अच्छे अस्पताल नहीं हैं. आपको अच्छा इलाज हासिल करने के लिए कोलकाता या कल्याणी (उसी जिले में) जाना होगा.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को रॉय से फोन पर बातचीत की. रॉय की शादी महाराजा कृष्णचंद्र रॉय के 39वें वंशज सौमिश चंद्र रॉय से हुई है.

प्रधानमंत्री से बातचीत को लेकर पार्टी की ओर से साझा किये गये विवरण के अनुसार, भाजपा नेत्री रॉय ने प्रधानमंत्री से कहा कि उनके परिवार को गद्दार कहा जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि कृष्णचंद्र रॉय ने लोगों के लिए काम किया और “सनातन धर्म” को बचाने के लिए अन्य राजाओं से हाथ मिलाया. ‘राजमाता’ बृहस्पतिवार को भी अपने उस रुख पर कायम रहीं कि बंगाल के तत्कालीन राजा कृष्णचंद्र रॉय ने 1757 में प्लासी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों का साथ दिया था, क्योंकि नवाब सिराजुद्दौला एक अत्याचारी था और उसके शासन के दौरान सनातन धर्म खतरे में था.

चुनाव मैदान में पहली बार उतरने वाली अमृता रॉय की इस टिप्पणी ने विवाद पैदा कर दिया है, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस यह प्रचार कर रही है कि तत्कालीन महाराजा ने एक सैन्य जनरल मीर जाफर का पक्ष लिया था, जिसने 1757 की प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला को हराने में अंग्रेजों को मदद की थी और बाद में राजा बने. रॉय ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि तृणमूल को आधारहीन टिप्पणी करने से पहले इतिहास पढ.ना चाहिए.

उन्होंने कहा, ”आरोप है कि महाराजा कृष्णचंद्र राय ने अंग्रेजों का पक्ष लिया था. सवाल यह है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? ऐसा सिराजुद्दौला के अत्याचार के कारण हुआ. अगर महाराजा कृष्णचंद्र रॉय ने ऐसा नहीं किया होता, तो हिंदू धर्म और बांग्ला भाषा राज्य में नहीं बची होती.ह्व महाराजा कृष्णचंद्र रॉय का जन्म 1710 में हुआ था और उन्होंने 1783 तक शासन किया था. नादिया के इतिहास में वह एक प्रमुख व्यक्ति थे जिन्हें सिराजुद्दौला का विरोध करने और दुर्गा पूजा एवं जगधात्री पूजा जैसे सार्वजनिक त्योहारों को बढ.ावा देने के लिए जाना जाता है. उनके 55 वर्षों के शासन ने बंगाल के प्रशासनिक सुधारों पर भी अमिट छाप छोड़ी.

तृणमूल ने एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया है, जिसमें दावा किया गया है कि कृष्णचंद्र रॉय ने मीर जाफर, जगत सेठ और अन्य के साथ गठबंधन किया था और सिराजुद्दौला के खिलाफ लड़ाई में अंग्रेजों का पक्ष लिया था. रॉय ने कहा, ”सिराजुद्दौला के अत्याचार के कारण सनातन धर्म खतरे में था. महाराजा कृष्णचंद्र रॉय ने बंगाल और हिंदू धर्म को बचाया.” रॉय ने तृणमूल पर ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया. कृष्णानगर लोकसभा सीट पर चौथे चरण में 13 मई को मतदान होगा.

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