मणिपुर हिंसा: न्यायालय ने राज्य सरकार को ताजा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मणिपुर सरकार को जातीय हिंसा प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी वाली एक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.

इस बीच, राज्य सरकार ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से कहा कि हालात में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, इसलिए अब कफ्र्यू की अवधि 24 घंटे में घटा कर पांच घंटे कर दी गई है. पीठ ने मुद्दे पर याचिकाओं की सुनवाई 10 जुलाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा, ”हमें केवल यह बताइए कि पुनर्वास शिविरों, कानून व्यवस्था और हथियारों की बरामदगी के सिलसिले में क्या कदम उठाये गये हैं.”

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. पीठ ने कहा, ”इसमें पुनर्वास शिविरों, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाए गए कदम और हथियारों की बरामदगी जैसे विवरण होने चाहिए.” एक संक्षिप्त सुनवाई में, शीर्ष विधि अधिकारी ने सुरक्षा बलों की तैनाती और कानून व्यवस्था की हालिया स्थिति का विवरण दिया.

मेहता ने कहा, ”राज्य में स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. जहां कहीं समस्या है उससे निपटा जा रहा है. पुलिस के अलावा, इंडियन रिजर्व बटालियन, मणिपुर राइफल्स, कमांडो, सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) की 114 कंपनियां और सेना की 184 टुकड़ियां तैनात की गई हैं…355 राहत शिविर स्थापित किये गये हैं.” उन्होंने कहा कि कुकी समूहों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेज. को चाहिए कि वह मामले को ”सांप्रदायिक रंग” नहीं दें.

गोंजाल्वेज. ने दलील दी कि उग्रवादी एक समाचार कार्यक्रम में पहुंचे और कहा कि वे ”कुकी समूहों का सफाया कर देंगे” लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने आरोप लगाया कि कुकी समूहों के खिलाफ हिंसा ”सरकार द्वारा प्रायोजित” थी. न्यायालय ने मेइती समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील की इन दलीलों का भी संज्ञान लिया कि कुछ कुकी उग्रवादियों के पास असाउल्ट राइफल हैं और केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर अवश्य जवाब देना चाहिए. पीठ ने विधि अधिकारी से इस पहलू पर भी निर्देश लेने को कहा.

मेहता ने कहा, ”मैं (स्थिति) रिपोर्ट का उल्लेख कर सकता हूं, या नहीं कर सकता हूं…लेकिन मैं निर्देश लूंगा और न्यायालय को इस पर जानकारी दूंगा…उग्रवादियों की संख्या नहीं गिनी जा सकती.” सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि राज्य सकरार अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी, जिसके बाद पीठ ने याचिका अगले सोमवार के लिए सूचीबद्ध कर दी.

शीर्ष अदालत के पास मणिपुर की स्थिति को लेकर कई याचिकाएं हैं. इनमें सत्तारूढ. भाजपा के एक विधायक द्वारा दायर याचिका शामिल है, जिसमें मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है. एक अन्य याचिका में पूर्वोत्तर राज्य में हुई हिंसा की जांच एसआईटी (विशेष जांच दल) से कराने की मांग की गई है. यह याचिका एक गैर सरकारी संगठन ने दायर की है.

गैर सरकारी संगठनों में से एक, ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ ने मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सैन्य सुरक्षा और उन पर हमला करने वाले सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने 20 जून को याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि यह कानून और व्यवस्था का मुद्दा है जिसे प्रशासन को देखना चाहिए.

एनजीओ की ओर से पेश गोंजाल्वेज. ने कहा कि प्रदेश सरकार के आश्वासन के बावजूद राज्य में जातीय हिंसा में 70 आदिवासी मारे गए हैं. सॉलीसिटर जनरल ने तत्काल सुनवाई के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था कि सुरक्षा एजेंसियां हिंसा रोकने और सामान्य स्थिति बहाल करने की पूरी कोशिश कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश से संबंधित मुख्य मामला शीर्ष अदालत द्वारा 17 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. राज्य में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में 120 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था.

मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं. मणिपुर उच्च न्यायालय के 27 मार्च को दिए गए आदेश में राज्य सरकार को बहुसंख्यक समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र के पास सिफारिश भेजने को कहा गया था.

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