राकांपा व भाजपा के नेता 2019 में शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते थे : संजय राउत

मुंबई. शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (शिवसेना-यूबीटी) के नेता संजय राउत ने रविवार को दावा किया कि महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार में शामिल दलों राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता 2019 में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते थे.

राउत ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान यह भी दावा किया कि अजित पवार, दिलीप वालसे पाटिल और सुनील तटकरे जैसे राकांपा नेताओं ने मुख्यमंत्री पद के लिए शिंदे के नाम का विरोध करते हुए कहा था कि वे उनके जैसे कनिष्ठ और अनुभवहीन व्यक्ति के अधीन काम नहीं करेंगे.

राज्यसभा सदस्य ने कहा, ”कांग्रेस और राकांपा ने कहा था कि उनके पास कई वरिष्ठ नेता हैं और गठबंधन का नेता ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो अनुभवी एवं वरिष्ठ हो और सभी को साथ लेकर चल सके.” राउत ने कहा कि इसी प्रकार शिवसेना (उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली अविभाजित शिवसेना) के (सरकार गठन के लिए महा विकास आघाडी के हिस्से के तौर पर) कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिलाने से पहले, भाजपा के देवेंद्र फडणवीस, गिरीश महाजन और सुधीर मुनगंटीवार जैसे नेताओं ने शिवसेना से कहा था कि वे नहीं चाहते कि शिंदे मुख्यमंत्री बनें.” अजित पवार और फडणवीस वर्तमान में मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं.

राउत ने कहा, ”शिंदे को पहले ही शिवसेना विधायक दल के नेता के रूप में नामित किया गया था, लेकिन भाजपा ने कहा था कि वह नहीं चाहती कि शिंदे गठबंधन के मुख्यमंत्री बनें.” शिवसेना (यूबीटी) नेता ने कहा, ”शिंदे को विधायक दल का नेता नियुक्त किया गया था और वह मुख्यमंत्री उम्मीदवार हो सकते थे, लेकिन कोई भी उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहता था.” राउत ने कहा कि राकांपा-शरदचंद्र पवार (राकांपा-एसपी) प्रमुख शरद पवार और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लगा कि गठबंधन को ऐसा नेता चुनना चाहिए जिन्हें तीनों दलों का समर्थन प्राप्त हो.

ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 2019 के राज्य विधानसभा चुनावों के बाद अपनी पुरानी सहयोगी भाजपा से नाता तोड़ लिया था. बाद में ठाकरे ने राकांपा (तब अविभाजित) और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर राज्य सरकार बनाई. शिंदे ने 2022 में शिवसेना के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की जिसके कारण पार्टी बंट गई और इसके बाद उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई. अजित पवार और आठ अन्य राकांपा विधायकों ने भी सरकार के साथ पिछले साल हाथ मिला लिया और शरद पवार द्वारा गठित राकांपा भी विभाजित हो गई.

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