अध्यादेश बताता है कि मोदी सरकार का उच्चतम न्यायालय में विश्वास नहीं है : केजरीवाल

मुंबई. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को दावा किया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं पर नियंत्रण से जुड़ा केंद्र का अध्यादेश इस बात का परिचायक है कि मोदी सरकार का उच्चतम न्यायालय में भरोसा नहीं है. मुंबई में शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से उनके आवास पर हुई मुलाकात के बाद केजरीवाल ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर राज्य सरकारों को गिराया जा रहा है.

वहीं, उद्धव ने केजरीवाल से मुलाकात के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधते हुए कहा कि हम उन ताकतों को हराने के लिए एक साथ आए हैं, जो लोकतंत्र के खिलाफ हैं. केजरीवाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं के नियंत्रण से जुड़े केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) की लड़ाई में शिवसेना (यूबीटी) का समर्थन मांगने के लिए उद्धव से मिले.

उन्होंने कहा कि उद्धव ने राज्यसभा में (सेवा पर नियंत्रण संबंधी केंद्र के अध्यादेश से जुड़े) विधेयक के खिलाफ मतदान करने का भरोसा दिलाया है. केजरीवाल ने दावा किया, “यह राज्यसभा में सेमी-फाइनल की तरह होगा. अगर (अध्यादेश संबंधी) विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं होता है, तो मोदी सरकार 2024 में सत्ता में नहीं आएगी.” राज्यसभा में शिवसेना (यूबीटी) के तीन सांसद हैं.

उद्धव से मुलाकात के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, ‘आप’ के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और राघव चड्ढा तथा दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी भी केजरीवाल के साथ थीं. यह इस साल केजरीवाल की उपनगरीय बांद्रा में उद्धव के निजी आवास ‘मातोश्री’ की दूसरी यात्रा थी.

उद्धव के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने आरोप लगाया कि राज्य सरकारों को गिराने के लिए केंद्र जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रहा है. उन्होंने महाराष्ट्र में पिछले साल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार के गिरने का जिक्र किया.

‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक ने कहा, “दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण से जुड़ा केंद्र का अध्यादेश इस बात का परिचायक है कि मोदी सरकार उच्चतम न्यायालय पर विश्वास नहीं करती है. यह इस बात का परिचायक है कि शीर्ष अदालत हमारे (केंद्र के) खिलाफ फैसला कैसे दे सकती है.” केजरीवाल का समर्थन करते हुए उद्धव ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का आदेश लोकतंत्र के लिए अहम है.

उन्होंने कहा, “हम उन ताकतों को हराने के लिए एक साथ आए हैं, जो लोकतंत्र के खिलाफ हैं. अगर हमने इस बार भी ट्रेन छोड़ दी, तो देश में कोई लोकतंत्र नहीं रह जाएगा. हमें देश और संविधान की रक्षा के लिए एक साथ आना होगा.” केजरीवाल ने आरोप लगाया कि अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए सभी अधिकार वापस ले लिये. उन्होंने कहा, “एक लोकतंत्र में सत्ता चुनी हुई सरकार के हाथों में होनी चाहिए, क्योंकि वह लोगों के प्रति जवाबदेह होती है.” ‘आप’ प्रमुख ने दावा किया कि भाजपा न तो लोकतंत्र और न ही उच्चतम न्यायालय में विश्वास करती है.

उन्होंने कहा कि भाजपा ने दिल्ली में ‘ऑपरेशन लोटस’ चलाया और जब यह नाकाम रहा, तो केंद्र सरकार अध्यादेश ले आई.
केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिये बगैर कहा, “उन्हें अहंकार हो गया है. और, जब कोई बहुत अहंकारी हो जाता है, तो वह बहुत स्वार्थी हो जाता है. ऐसे अहंकार और स्वार्थ के साथ जीने वाला व्यक्ति देश नहीं चला सकता.” उन्होंने कहा, “यह अकेले दिल्ली के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र के लिए, संविधान और संघवाद के लिए लड़ाई है.”

भाजपा पर निशाना साधते हुए केजरीवाल ने आरोप लगाया, “उनके नेता और मंत्री न्यायधीशों को अपशब्द कहते हैं. वे न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाते हैं और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को देशद्रोही कहते हैं. उन्होंने संदेश दिया है कि हम अध्यादेश लाएंगे और शीर्ष अदालत के फैसलों को पलट देंगे.” संवाददाता सम्मेलन में मान ने कहा कि लोकतंत्र खतरे में है, क्योंकि चुने हुए लोगों के बजाय कुछ चुनिंदा लोग सरकार चला रहे हैं.

पंजाब के मुख्यमंत्री ने दावा किया, “राजभवन भाजपा के मुख्यालय और राज्यपाल स्टार प्रचारक बन गए हैं.” केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन जुटाने के लिए देशभर की यात्रा के तहत केजरीवाल और मान ने मंगलवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की थी.

केंद्र सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और दानिक्स कैडर के अधिकारियों के तबादले तथा उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के वास्ते 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई थी. इससे एक हफ्ते पहले ही उच्चतम न्यायालय ने पुलिस, लोक सेवा और भूमि से संबंधित विषयों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सौंप दिया था. किसी अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद की मंजूरी मिलना आवश्यक होता है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में इस अध्यादेश से संबंधित विधेयक पेश कर सकती है.

Related Articles

Back to top button