न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेजा

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं को सोमवार को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया और कहा कि यह मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों से संबंधित है, जिसका एक-दूसरे पर प्रभाव है.

पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि यदि उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हल किया जाता है, तो यह उचित होगा. इस प्रकार, हम मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश देते हैं.’’ उच्चतम न्यायालय ने मामले को 18 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई का सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाएगा, जैसा कि संविधान पीठ के समक्ष पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान किया जाता रहा है.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से आग्रह किया कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर दोनों पक्षों की दलीलों में कटौती नहीं की जाये, क्योंकि इस फैसले का पूरे समाज पर प्रभाव पड़ेगा. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं का केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विरोध किया है. उसने दावा किया है कि वे (समलैंगिक विवाह को मान्यता देना) पर्सनल लॉ और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के बीच नाजुक संतुलन के ‘‘पूर्ण विनाश’’ का कारण बनेंगे.

केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि एक रिश्ते को कानूनी मंजूरी देना अनिवार्य रूप से विधायिका का कार्य है. इसने कहा कि अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाती है, तो इस मुद्दे का गोद लेने जैसे कानून पर प्रभाव पड़ सकता है. पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘यह जरूरी नहीं है कि समलैंगिक जोड़े द्वारा गोद लिया हुआ बच्चा समलैंगिक हो.’’

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने समलैंगिक जोड़ों के शादी करने के अधिकारों को मान्यता देने का अनुरोध किया है, और निजता के अधिकार तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा जताते हुए याचिकाकर्ताओं ने जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार, गरिमा के अधिकार एवं अन्य से जुड़े व्यापक संवैधानिक अधिकारों पर जोर दिया है. पीठ ने कहा कि उसके समक्ष उठाए गए मुद्दों में से एक ट्रांसजेंडर जोड़ों के विवाह के अधिकार से भी संबंधित है.

लोगों के निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं पर शादी की संस्था नीतिगत विषय: रीजीजू

केंद्र द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का उच्चतम न्यायालय में विरोध करने के एक दिन बाद, विधि एवं कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने सोमवार को कहा कि सरकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोगों की गतिविधियों में “हस्तक्षेप” नहीं करती है लेकिल विवाह की संस्था से जुड़ा मामला नीतिगत विषय है.

उच्चतम न्यायालय में केंद्र के रुख से जुड़े एक सवाल के जवाब में रीजीजू ने कहा, “सरकार किसी व्यक्ति के निजी जीवन व उसकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं कर रही है. इसलिए कोई भ्रम नहीं होना चाहिए. जब शादी की संस्था से जुड़ा कोई मुद्दा आता है तो यह नीतिगत विषय है.” उन्होंने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा, “नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तिगत गतिविधियों को सरकार कभी बाधित या विनियमित नहीं करती है. आपको इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए. एक स्पष्ट अंतर है.”

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