क्षेत्रवाद का कारण बन सकता है किसी खास भाषा पर ज्यादा जोर देना : JNU कुलपति

नयी दिल्ली. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने बुधवार को कहा कि किसी खास भाषा या किसी क्षेत्रीय भाषा पर “बहुत जोर” देने से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि भाषा काफी “संवेदनशील” मुद्दा है और कुछ लोग इसका फायदा उठा सकते हैं.

पंडित जेएनयू की पहली महिला कुलपति हैं. उन्होंने एक साक्षात्कार में पीटीआई-भाषा से कहा कि परिसर में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और राजनीतिक आकांक्षाओं वाले विद्यार्थियों को अपनी आकांक्षाएं विश्वविद्यालय के बाहर पूरी करनी चाहिए.
उन्होंने शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का विरोध किए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा की.

उन्होंने कहा, “यह (एनईपी) सिर्फ एक दस्तावेज है. इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसे किसी पर थोपा जा रहा है. मुझे लगता है कि हम इससे अच्छी चीजें ले सकते हैं. और संभव है कि अगली बार आने वाली नयी एनईपी इससे एक कदम बेहतर हो.” उन्होंने नयी शिक्षा नीति में बहुभाषावाद के संबंध में जोर देकर कहा कि सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने को लेकर सावधान रहने की जरूरत है और इसके द्वारा “मजबूत क्षेत्रीय पहचान” का नेतृत्व नहीं किया जाना चाहिए.

नयी शिक्षा नीति ने 34 साल पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 1986 की जगह ली है और इसका मकसद 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) के साथ माध्यमिक स्तर तक शिक्षा का सार्वभौमिकरण करना है. पंडित ने कहा, “एनईपी बहुभाषावाद के लिए है और मैं इसका पूरा समर्थन करती हूं. एक ही चीज है, जिससे कुछ मतभेद है, वह है कि हम भारत की 27 भाषाओं में कैसे पढ़ाने जा रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “वे हमें विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषाओं में पढ़ाने के लिए कहते हैं. फिर लिंक (संपर्क) भाषा क्या होगी … इसको लेकर मैं कुछ चिंतित हूं. मैं तमिलनाडु राज्य से हूं जैसे ही आप मातृभाषा कहते हैं, हमारी बहुत मजबूत राय है .” उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को बहुभाषावाद के ढांचे के अंदर ही क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए.

जेएनयू में सिर्फ 10 प्रतिशत छात्र ‘उपद्रवी’ : कुलपति ने परिसर की राजनीति और हिंसा पर कहा
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने बुधवार को कहा कि विश्वविद्यालय के 90 प्रतिशत छात्र गैर-राजनीतिक हैं और केवल 10 प्रतिशत ही “उपद्रवी” हैं, जो यह सोचते हैं कि वे परिसर में अपना राजनीतिक करियर बना सकते हैं.

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि यह राजनीतिक रूप से सक्रिय परिसर है लेकिन विश्वविद्यालय में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है तथा जो नेता बनना चाहते हैं, उन्हें बाहर जाकर चुनाव लड़ना चाहिए. उनसे हाल में विश्वविद्यालय में हुई झड़पों के बारे में सवाल किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘‘90 प्रतिशत छात्र गैर-राजनीतिक हैं. केवल 10 प्रतिशत ही उपद्रवी हैं. उन्हें लगता है कि जेएनयू में उनका राजनीतिक करियर बन सकता है.’’ कुलपति ने कहा, “जेएनयू राजनीतिक करियर का कब्रिस्तान है. आपको पता है कि पिछली बार क्या हुआ था, जिन्होंने (ऐसी) राजनीति की थी, वे सभी जेल में हैं.”

उन्होंने कहा, “आप क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं? यदि आप नेता बनना चाहते हैं तो बाहर जाकर चुनाव लड़ें. आपको कौन रोक रहा है? भारत एक स्वतंत्र देश है. आप यहां पढ़ाई के लिए आते हैं, आप यहां सीखने के लिए आते हैं. आपका परिवार आप पर निर्भर करता है कि आपको अच्छी नौकरी मिलेगी और आप बाहर जाएंगे.”

शरजील इमाम, उमर खालिद, नताशा नरवाल और देवांगना कालिता सहित जेएनयू के कई छात्रों और पूर्व छात्रों को 2020 के दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े मामले में कथित संलिप्तता को लेकर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था. नताशा नरवाल और देवांगना को बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया था जबकि उमर खालिद और शरजील अब भी जेल में हैं.

कुलपति ने विद्यार्थियों से सक्रिय राजनीति करने और बहस करने का आग्रह किया और हिंसा से दूर रहने की अपील की. उन्होंने कहा, ‘‘जेएनयू में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. जेएनयू एक शोध विश्वविद्यालय है. मैं यह नहीं कह रही कि आपको बहस नहीं करनी चाहिए… बहस करें, चर्चा करें लेकिन एक-दूसरे के साथ मारपीट नहीं करें.’’

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